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खर्च की गुणवत्ता सुधारें

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। (अर्थशास्त्री)देश की आर्थिक विकास दर दबाव में है. चंद वर्षो पूर्व हम 9 प्रतिशत की विकास दर को छू रहे थे. आज 6 प्रतिशत भी हासिल कर पाने में संदेह है. मूल समस्या बढ़ते वित्तीय घाटे की है. सरकार की आय कम और खर्च ज्यादा है. इस घाटे की पूर्ति […]

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
(अर्थशास्त्री)
देश की आर्थिक विकास दर दबाव में है. चंद वर्षो पूर्व हम 9 प्रतिशत की विकास दर को छू रहे थे. आज 6 प्रतिशत भी हासिल कर पाने में संदेह है. मूल समस्या बढ़ते वित्तीय घाटे की है. सरकार की आय कम और खर्च ज्यादा है. इस घाटे की पूर्ति के लिए सरकार ऋण के बोझ से दब रही है.

ऋण लेना बुरा नहीं है. ऋण लेकर सरकार हाइवे या स्पेस स्टेशन बनाये, तो ऋण का प्रभाव सकारात्मक होगा. पर, ऋण लेकर सरकारी राजस्व का रिसाव करा दिया जाये, तो ऋण का प्रभाव नकारात्मक हो जाता है. अत: विकास दर पुन: पटरी पर लाने के लिए सरकारी खर्चो की गुणवत्ता सुधारना जरूरी था. इस दिशा में कई कदम उठाये जा सकते थे, जिन पर वित्त मंत्री ध्यान नहीं दे रहे हैं.

सरकारी खर्च की न्यून गुणवत्ता का मुख्य कारण रिसाव है. सरकारी बजट में से रिसाव की रकम विदेश भेजने या इससे सोना खरीद कर रख देने से अर्थव्यवस्था फुस्स हो जाती है. अत: ऐसे कदम उठाने चाहिए कि रिसाव बंद हो. सरकारी तंत्र में रिसाव दो स्तरों पर होता है. एक स्तर मंत्रियों का है. इस पर नियंत्रण चुनावों के माध्यम से होता है, जैसे राजीव गांधी ने बोफोर्स प्रकरण के कारण सत्ता गंवाई थी.

दूसरा स्तर सरकारी कर्मियों का है. इनके भ्रष्टाचार पर चुनाव से नियंत्रण नहीं हो पाता. ईमानदार व्यक्ति सत्ता पा जाये तो भी इस विशाल तंत्र से चौतरफा व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकना उसके लिए कठिन होता है. इनके भ्रष्टाचार को रोकने के कारगर उपाय करने चाहिए. इस दिशा में पहला कदम यह उठाया जा सकता था कि सरकारी विभागों की ऑडिट के लिए स्वतंत्र ऑडिटर नियुक्त किये जायें और इनकी टीम में स्वतंत्र नागरिकों को शामिल किया जाये.

वर्तमान समय में विनोद राय के नेतृत्व में सरकारी ऑडिट ने प्रभावी कदम उठाये हैं. परंतु यह अपवाद है. इससे पहले अधिकतर कैग प्रमुख सुस्त रहे हैं. सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति द्वारा अपने आका के विरुद्घ ही सख्त कदम उठाना सामान्य व्यक्तियों के बस में नहीं होता. अत: स्वतंत्र ऑडिटर नियुक्त किये जाने चाहिए. यह कार्य लोकपाल को दिया जा सकता है.

दूसरा कदम यह हो सकता है कि सरकारी भ्रष्टाचार का पता लगाने के लिए एक अलग पुलिस तंत्र खड़ा किया जाये. अर्थशास्त्र में कौटिल्य लिखते हैं कि सरकारी कर्मियों द्वारा रिसाव का पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना यह पता लगाना कि मछली ने कितना पानी पिया है.

वर्तमान में भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्घ पुलिस द्वारा तब कदम उठाया जाता है, जब कोई शिकायत करे. अधिकतर भ्रष्टाचार तो मिलीभगत से होता है, इसलिए शिकायत नहीं होती है. इस खुफिया तंत्र का कार्य होगा कि स्वयं पहल करके भ्रष्ट सरकारी कर्मियों को ट्रैप करे. तीसरा कदम यह कि हर अफसर के विभाग से संबंधित उपभोक्ताओं का गोपनीय सर्वे कराया जाये. जैसे बिजली के सब स्टेशन से जुड़े उपभोक्ताओं से जूनियर इंजीनियर की कार्यकुशलता का सर्वे कराया जाये. उपभोक्ताओं की सूची में से 100 लोगों का कंप्यूटर द्वारा चयन किया जाये और उन्हें वापसी लिफाफे सहित गोपनीय पत्र भेज कर अधिकारी की कार्यकुशलता के बारे में बताने को कहा जाये.

इस तरह मात्र हजार रुपये के खर्च से भ्रष्ट अधिकारियों का पर्दाफाश हो जायेगा. इस सर्वे के आधार पर उनकी पदोन्नति हो अथवा उन्हें मुअत्तल कर दिया जाये. एक बार मुझे डोनर की तरफ से एक पांच सितारा एनजीओ का मूल्यांकन करने का अवसर मिला. मैंने एनजीओ के 500 सदस्यों को गोपनीय पत्र लिखा. उनके उत्तरों से स्पष्ट हुआ कि एनजीओ को निजी जागीर की तरह चलाया जा रहा था. इन कदमों से सरकारी खर्चो की गुणवत्ता में सुधार आयेगा और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी.

सरकारी खर्चो की गुणवत्ता सुधारने का दूसरा उपाय नीतियों में परिवर्तन है. सरकार को वोट चाहिए. इसके लिए आम आदमी को राहत पहुंचाना जरूरी है. यह स्वागतयोग्य भी है. पर लाभार्थी से मनरेगा में फर्जी कार्य करा कर उन्हें राहत देना जरूरी नहीं है. उत्तम होता कि देश के उद्यमियों को श्रम सब्सिडी देकर उनसे काम कराया जाता. जैसे छोटे उद्योगों द्वारा कार्य पर रखे श्रमिकों का प्रॉविडेंड फंड सरकार द्वारा भरा जा सकता है. या जिन उद्योगों द्वारा अधिक श्रमिकों को रोजगार दिया जा रहा है, उन्हें एक्साइज ड्यूटी में छूट दी जा सकती है.

रोजगार हनन करनेवाली मशीनों, जैसे हार्वेस्टर, पर टैक्स लगाया जा सकता है. इन नीतियों से उद्यमी के लिए अधिक संख्या में श्रमिकों को काम देना लाभप्रद हो जायेगा. तब देश में श्रम सघन उद्योगों में वृद्घि होगी. इससे मनरेगा तथा दूसरे कल्याणकारी कार्यक्रमों पर सरकारी खर्च कम होंगे और वित्तीय घाटा नियंत्रण में आयेगा.

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