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मनरेगा के कारण व्यस्त कृषि मौसम में श्रमिकों की कमी

नयी दिल्लीः सरकार ने आज स्वीकार किया कि मनरेगा को लागू करने से कुछ क्षेत्रों में व्यस्त कृषि मौसम के दौरान श्रमिकों की अस्थायी कमी की जानकारी मिली है. हालांकि सरकार ने मनरेगा के लागू होने से खाद्यान्न उत्पादन के प्रभावित होने की बात से इंकार किया है. कृषि मंत्री शरद पवार ने बताया कि […]

नयी दिल्लीः सरकार ने आज स्वीकार किया कि मनरेगा को लागू करने से कुछ क्षेत्रों में व्यस्त कृषि मौसम के दौरान श्रमिकों की अस्थायी कमी की जानकारी मिली है. हालांकि सरकार ने मनरेगा के लागू होने से खाद्यान्न उत्पादन के प्रभावित होने की बात से इंकार किया है.

कृषि मंत्री शरद पवार ने बताया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के बारे में किये गये अध्ययन यह दर्शाते हैं कि इसको लागू करने के परिणामस्वरुप ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी की वृद्धि के साथ साथ शहरी क्षेत्रों की ओर हताशा में किये जाने वाले पलायन में कमी आयी है. उन्होंने कहा, ‘‘व्यस्त कृषि मौसम के दौरान कुछ क्षेत्रों में श्रमिकों की अस्थायी कमी की भी जानकारी मिली है. हालांकि मनरेगा के क्रियान्वयन से खाद्य उत्पादन प्रभावित नहीं हुआ है. यह 2006 में 21 करोड़ 72 लाख टन से 2011.12 में बढ़कर 25 करोड़ 93 लाख टन हो गया.’’ पवार ने टी एन सीमा के इस सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी कि क्या मनरेगा शुरु किये जाने से देश भर में कृषि श्रमिकों की संख्या में भारी कमी आयी है जिससे न केवल खाद्य उत्पादन प्रभावित हुआ है बल्कि छोटे किसानों पर कृषि छोड़ने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है.
उन्होंने कहा कि जनगणना के परिणामों के अनुसार यद्यपि किसानों की संख्या 2001 में 12 करोड़ 73 लाख से 2011 में घटकर 11 करोड़ 87 लाख रह गयी. लेकिन इस दौरान कृषि मजदूरों की संख्या 10 करोड़ 68 लाख से बढ़कर 14 करोड़ 43 लाख हो गयी.

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