धोखाधड़ी करनेवाली चिट फंड कंपनियों के प्रमुखों पर
कोलकाता : चिटफंड कंपनी सारधा समूह के बंद होने के बाद राज्य में जैसे हाहाकार मच गया. कथित तौर पर हजारों-हजारों लोग धोखाधड़ी के शिकार बने. इतना ही नहीं चिटफंड कंपनी के मायाजाल में फंसकर पाई-पाई जुटाकर धन निवेश करने वाले गरीब लोगों के आत्महत्या करने का मामला भी प्रकाश में आया.
राज्य में चिटफंड कंपनियों द्वारा धोखाधड़ी का मामला नया नहीं है. ऐसी कई घटनाएं 80 के दशक से अभी तक हो चुकी हैं. चिटफंड कंपनियों के फैलते मायाजाल पर राजनीतिज्ञों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग गया है.
बिना राजनीतिक सह के ऐसी फर्जी कंपनियों का फूल-फल पाना शायद नामुमकिन है. बहरहाल चिटफंड कंपनी सारधा समूह की घटना के बाद कंपनी के प्रमुख समेत अन्य कुछ लोगों की गिरफ्तारी हुई, लेकिन सवाल है कि उनकी गिरफ्तारी से धोखाधड़ी के शिकार बने हजारों मासूम लोगों को इंसाफ मिल पायेगा? ऐसे लोगों में वे भी शामिल हैं जिन्होंने अपने जीवन की पूरी कमाई उक्त कंपनी में जमा की लेकिन कंपनी की हाल जानने के बाद उन्हें आत्महत्या को मजबूर होना पड़ा.
तो ऐसी कंपनियों के मालिकों या प्रमुख या फिर धोखाधड़ी में शामिल लोगों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला क्यों नहीं दर्ज हो? शनिवार को प्रभात खबर और जन संसार की ओर से आयोजित जनसंवाद में परिचर्चा का विषय चिटफंड का मायाजाल रखा गया.
परिचर्चा में मौजूद विशिष्ट लोगों में ज्यादा ने चिटफंड कंपनी के प्रमुख पर गैर इरादतन हत्या का मामला चलने की मांग की ताकि इन कंपनियों के झांसे में आने के बाद आत्महत्या करने वाले लोगों को न्याय तो मिले. साथ ही ऐसी कंपनियों के प्रमुखों के मन में कानूनी भय बना रहे. परिचर्चा का संचालन प्रभात खबर, कोलकाता संस्करण के स्थानीय संपादक तारकेश्वर मिश्र ने किया.
आइये जानते हैं परिचर्चा के दौरान वक्तव्य रखने वाले विशिष्ट लोगों के विचार : प्रदीप जीवराजका (अधिवक्ता) : चिटफंड नाम कानून में परिभाषित है और नियोजित भी है. वर्ष 1982 में देश में चिटफंड एक्ट पारित हुआ था. पूरे विश्व में स्मॉल सेविंग का कॉनसेप्ट है. देश में सबसे पहले तमिलनाडू में चिटफंड कंपनियों को लेकर कानून बनाया गया था. केरल में सुनियोजित तरीके से चिटफंड कंपनियों का कारोबार होता है.
बंगाल में चिटफंड कंपनियों के लिए केंद्रीय कानून ही अनुमोदित है.चिटफंड कंपनियों का रजिस्टर्ड होना र्जुरी है लेकिन बंगाल में ऐसा नहीं है. आश्चर्य की बात है कि पूरे बंगाल में महज एक कंपनी के रजिस्टर्ड होने की बात सामने आयी है.
चिटफंड कंपनियों के लिए कानून हैं. वे निवेशकों की जमा करायी जाने वाली राशि को दूसरी कंपनी में निवेश नहीं कर सकती हैं. यही वजह है कि बिना रजिस्टर्ड कंपनियां खुद को इनवेस्टमेंट कंपनी के तौर पर रजिस्ट्रेशन करवातीं हैं. बहरहाल चिटफंड कंपनी के नाम पर धोखाधड़ी करने वाली कंपनियों के खिलाफ केंद्र व राज्य सरकार को सजग होना र्जुरी है.
प्रदीप कुमार ड्रोलिया (विधि विशेषज्ञ) : चिटफंड का फायदा आम लोगों को नहीं मिल पा रहा है बल्कि उसकी आड़ में कंपनियों द्वारा धोखाधड़ी की जा रही है. सेबी का सीधे तौर पर चिटफंड कंपनियों पर कंट्रोल नहीं है. कुछ हद तक कंट्रोल आरबीआइ के पास होता है. कोई भी व्यक्ति ज्यादा लाभ की बात सोचता है.
सारधा समूह जैसी चिटफंड कंपनियों के पास जब तक रुपये आते हैं तब तक सबकुछ ठीक चलता है लेकिन रुपये आने बंद होते ही मामला बिगड़ जाता है. सारधा कांड की बात की जाये तो सरकार आरोपियों को सजा दिलाये लेकिन नुकसान सह रहे लोगों की भरपाई भी र्जुरी है.
सीताराम अग्रवाल (वरिष्ठ पत्रकार): ताश के तिरकी खेल की तरह ही चिटफंड के नाम पर धोखाधड़ी का धंधा चल रहा है. ऐसी कंपनियों के दलाल राजनीति से जुड़े लोग हैं. चिटफंड कंपनी सारधा समूह की बात की जाये तो भुक्तभोगियों के लिए राज्य सरकार द्वारा बनाये राहत कोष पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
500 करोड़ रुपये राहत कोष का कॉनसेप्ट ही गलत है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ज्यादा से ज्यादा सिगरेट पीने का बयान दिया जो स्वीकार योग्य नहीं है.
जीतेंद्र धीर (कवि) : सत्ता की यदि राजनीति नहीं होती तो राज्य में चिटफंड कंपनी सारधा समूह जैसा मामला नहीं होता. असल में ऐसी चिटफंड कंपनियों को देश में चलाया जाना क्या उचित हैं? इस मुद्दे पर सेबी की भूमिका पर भी संशय है.
चिटफंड कंपनियों के शिकार बने कई मासूमों के आत्महत्या करने की घटनाएं काफी गंभीर हैं. इन घटनाओं को देखते हुए कानूनी रूप से दोषी चिटफंड कंपनियों के प्रमुखों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला भी चलाया जाना चाहिए.
शाहिद हुसैन शाहिद (शायर) : चिटफंड कंपनियों को चलाने के लिए युवाओं को भ्रमित किया जाता है. इसके शिकार हुए हजारों की तादाद में मासूम लोग बनते हैं. अब चिटफंड कंपनी सारधा समूह की बात कर ली जाये तो दक्षिण 24 परगना जिले में एक महिला ने अपनी बेटी की शादी के लिए 30 हजार रुपये कंपनी में निवेश किया था.
उक्त कंपनी के दिवालिया के बाद उसके आत्महत्या की बात सामने आयी. तो साहब यह तो सरासर हत्या है. ऐसी कंपनियों के प्रमुख ही इसके जिम्मेदार हैं. साथ ही कहीं न कहीं राजनीति से जुड़े लोग भी इसके हिस्सेदार हैं.
कुसुम जैन (कवियत्री) : बंगाल में चिटफंड कंपनियों का फैलने वाला मायाजाल काफी गंभीर मसला है. इन मामलों पर अंकुश लगाने के लिए एक वृहद आंदोलन की र्जुरत है और इसमें बुद्धिजीवियों का योगदान अहम हो सकता है. इस आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखना होगा. तभी समाधान संभव है.
बनवारी शर्मा (समाजसेवी) : चिटफंड कंपनी के नाम से ही पता लग रहा है कि ऐसी कंपनियां चिटिंग कर रही हैं. इसमें राजनीति से जुड़े लोगों की भी अहम भूमिका हैं. आश्चर्य की बात है कि ज्यादातर चिटफंड कंपनियों के मुख्य कार्यालय बंगाल में हैं जबकि यहां रजिस्टड्र चिटफंड कंपनी की संख्या मात्र एक है. जब रक्षक ही भक्षक हो जायें तो क्या होगा? ऐसे कंपनियों पर लगाम कसने के लिए केंद्र को कड़े कानून बनाने की सख्त र्जुरत है.
सेराज खान वातिश (प्रसिद्ध कहानीकार) : गांवों में बैकिंग सिस्टम मजबूत नहीं है. यही वजह है कि सारधा समूह जैसी चिटफंड कंपनियों को वहां पांव पसारने का मौका मिलता है. इसकी जिम्मेदार सरकार है. सारधा समूह का मामला आम लोगों से जुड़ा हुआ है. इस मुद्दे पर केंद्र व राज्य सरकार सजग हों.
परिचर्चा में प्रेम कपूर, स्वतंत्र पत्रकार ललित कुमार यादव, अशोक झा, मोहम्मद अफसार, युवा नेता अरविंद कोरी, उषा गुप्ता समेत अन्य गणमान्य लोगों ने भी हिस्सा लिया.
– अमित शर्मा –