भारत में नृत्य की जड़ें प्राचीन परंपराओं में है. इस विशाल उपमहाद्वीप में नृत्यों की विभिन्न विधाओं ने जन्म लिया है. भारत के कुछ प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य हैं :
कथकली
कथकली नृत्य 17 वीं शताब्दी में केरल राज्य से आया. इस नृत्य में आकर्षक वेशभूषा, इशारों व शारीरिक थिरकन से पूरी एक कहानी को दर्शाया जाता है. इस नृत्य में कलाकार का गहरे रंग का श्रृंगार किया जाता है, जिससे उसके चेहरे की अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से दिखायी दे सके.
मोहिनीअट्टम
मोहिनीअट्टम नृत्य कलाकार का भगवान के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है. इसमें नृत्यांगना सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहन कर नृत्य करती है, साथ ही गहने भी काफी भारी-भरकम पहने जाते हैं. इसमें सादा श्रृंगार किया जाता है.
ओडिसी
ओड़िशा राज्य का यह प्रमुख नृत्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला है. इस नृत्य में सिर, छाती व श्रोणि का स्वतंत्र आंदोलन होता है. भुवनेश्वर स्थित उदयगिरि की पहाड़ियों में इसकी छवि दिखती है. इस नृत्य की कलाकृतियां ओड़िशा में बने भगवान जगन्नाथ के मंदिर पुरी व सूर्य मंदिर कोणार्क पर बनी हुई हैं.
कथक
इस नृत्य की उत्पत्ति उत्तरप्रदेश में हुई, जिसमें राधाकृष्ण की नटवरी शैली को प्रदर्शित किया जाता है. कथक का नाम संस्कृत शब्द कहानी व कथार्थ से प्राप्त होता है. अभी कथक के कई घराने हैं. जैसे, लखनऊ, बनारस, जयपुर.
भरतनाट्यम
यह शास्त्रीय नृत्य तमिलनाडु राज्य का है. पुराने समय में मुख्यत: मंदिरों में नृत्यांगनाओं द्वारा इस नृत्य को किया जाता था. जिन्हें देवदासी कहा जाता था. इस पारंपरिक नृत्य को दया, पवित्रता व कोमलता के लिए जाना जाता है. यह पारंपरिक नृत्य पूरे विश्व में लोकप्रिय माना जाता है.
कुचिपुड़ी
आंध्रप्रदेश राज्य के इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है. इस नृत्य में गीत, चरित्र की मनोदशा एक नाटक से शुरू होती है. इसमें खासतौर से कर्नाटक संगीत का उपयोग किया जाता है. साथ में ही वायलिन, मृदंगम, बांसुरी की संगत होती है. कलाकारों द्वारा पहने गये गहने बेरु गू बहुत हल्के लकड़ी के बने होते हैं.
मणिपुरी
मणिपुरी राज्य का यह नृत्य शास्त्रीय नृत्यरूपों में से एक है. इस नृत्य की शैली को जोगाई कहा जाता है. प्राचीन समय में इस नृत्य को सूर्य के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों की संज्ञा दी गयी है.
एक समय जब भगवान कृष्ण, राधा व गोपियां रासलीला कर रहे थे, तो भगवान शिव ने वहां किसी के भी जाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन मां पार्वती द्वारा इच्छा जाहिर करने पर भगवान शिव ने मणिपुर में यह नृत्य करवाया.