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बांग्ला साहित्य और रवींद्रनाथ विषय पर परिचर्चा

रांची: देश में बंगाली, पंजाबी, मुसलमान, तमिल, कन्नड़ सहित विभिन्न जाति व धर्मो के लोग रहते हैं, पर देश में दिनोंदिन भारतीयों की कमी होती जा रही है. आज हम केवल अपनी जाति व धर्म तक ही सिमट कर रह गये हैं. उक्त बातें बुधवार को विश्व बंग साहित्य सम्मेलन रांची शाखा द्वारा आयोजित बांग्ला […]

रांची: देश में बंगाली, पंजाबी, मुसलमान, तमिल, कन्नड़ सहित विभिन्न जाति व धर्मो के लोग रहते हैं, पर देश में दिनोंदिन भारतीयों की कमी होती जा रही है. आज हम केवल अपनी जाति व धर्म तक ही सिमट कर रह गये हैं.

उक्त बातें बुधवार को विश्व बंग साहित्य सम्मेलन रांची शाखा द्वारा आयोजित बांग्ला साहित्य और रवींद्रनाथ विषय पर परिचर्चा के दौरान वक्ताओं ने यूनियन क्लब सभागार में कही. वक्ताओं ने कहा कि आज शिक्षा के अवमूल्यन के साथ बच्चों में नैतिकता की भी कमी है.

माता-पिता बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर व वैज्ञानिक तो बनाना चाहते हैं, पर कोई भी अपने बच्चे को किसान बनाने की शिक्षा नहीं दे रहा है. नतीजा है कि वही बच्चे बड़े होकर अपनी जड़ से कटते जा रहे हैं. इसके लिए हमें आज रवींद्र नाथ की शिक्षा पद्धति को अपनाना होगा. इसके तहत कविगुरु ने बच्चों को इंजीनियर व डॉक्टर बनाने से अधिक किसान बनाने पर बल दिया.

परिचर्चा को रवींद्र भारती विवि के डॉ वरुण कुमार, वर्धमान विवि के डॉ उदय चंद्र दास, विश्व भारती विवि के प्रो मृणाल कांति मंडल, डॉ अतनू शासमल, दिल्ली विवि के अमिताभ चक्रवर्ती, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के डॉ नमिता भट्टाचार्य, डॉ विंदू लाहिड़ी ने संबोधित किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता शाखा के अध्यक्ष चित्तरंजन लाहा ने किया.

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