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।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।(अर्थशास्‍त्री)सरकार ने बड़े औद्योगिक घरानों को निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना की छूट दे दी है. आज सरकारी कॉलेजों से बड़ी संख्या में इंजीनियरों को तैयार किया जा रहा है, पर उनकी गुणवत्ता कमजोर है. एक तरफ उद्योगों को कुशल इंजीनियर नहीं मिल रहे हैं, तो दूसरी तरफ घटिया इंजीनियर रोजगार […]

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
(अर्थशास्‍त्री)
सरकार ने बड़े औद्योगिक घरानों को निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना की छूट दे दी है. आज सरकारी कॉलेजों से बड़ी संख्या में इंजीनियरों को तैयार किया जा रहा है, पर उनकी गुणवत्ता कमजोर है. एक तरफ उद्योगों को कुशल इंजीनियर नहीं मिल रहे हैं, तो दूसरी तरफ घटिया इंजीनियर रोजगार के लिए तड़प रहे हैं. औद्योगिक घराने अपनी आवश्यकता के अनुरूप अच्छी गुणवत्ता के इंजीनियर तैयार कर सकें, इसलिए इन्हें अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में कॉलेज खोलने की छूट दी गयी है. यह स्वागतयोग्य कदम है.

शंका जतायी जा रही है कि पूर्व में अच्छे विद्यार्थी व टीचर न मिलने के कारण निजी कॉलेजों द्वारा घटिया इंजीनियर पास किये जा रहे थे. नये कॉलेजों की बढ़ी संख्या के लिए अच्छे छात्र व टीचर मिलना संभव होगा? आइआइटी की लगभग 10 हजार सीटों के लिए हर वर्ष लगभग पांच लाख छात्र आवेदन भरते हैं. इनमें शीर्ष 20 प्रतिशत यानी एक लाख छात्रों को दाखिले के लायक माना जा सकता है.

इन एक लाख में कौन अच्छा है, पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना कि गेंदे के खेत में श्रेष्ठ फूल चुनना. तात्पर्य यह कि ये सभी एक लाख आवेदक सक्षम होते हैं. छात्र में मौलिक बौद्धिक क्षमता हो, तो बाकी चीजें शिक्षा के वातावरण पर निर्भर करती हैं. ऊपरी 20 प्रतिशत में किसी भी छात्र को आइआइटी में दाखिला मिल जाये, तो वह श्रेष्ठ इंजीनियर बन सकता है. जबकि उसी छात्र को घटिया कालेज में दाखिला मिले, तो वह नहीं पनपता है.

दूसरी शंका है कि औद्योगिक घरानों का उद्देश्य पैसा कमाना होता है. वे कॉलेजों को भी पैसा कमाने का धंधा बना लेंगे. पूर्व में ही घटिया कॉलेजों से पास हुए इंजीनियरों को रोजगार नहीं मिल रहे. अब घटिया इंजीनियरों की संख्या में वृद्धि होगी. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, परंतु समग्र दृष्टि से यह देश के लिए हानिप्रद नहीं होगा. देखा जाता है कि कई निजी कॉलेजों में छात्र नहीं हैं. सीटें खाली रह रही हैं. कई कालेज बंद होने के कगार पर हैं.

कारण यह कि इन्होंने फीस ऊंची वसूली और शिक्षा घटिया मुहैया करायी. इनके इंजीनियरों को नौकरी नहीं मिली. यह बात संज्ञान में आने से इन कॉलेजों में अब छात्र दाखिला नहीं लेना चाहते हैं. यह बाजार का नियम है. प्रतिस्पर्धा में जो उत्तम होगा, वही जीतेगा. घटिया कालेज बंद हो जायेंगे. हां, इसमें समय लगेगा, कुछ छात्रों का कैरियर बरबाद होगा.

नयी कंपनी के द्वारा लॉन्च की गयी बाइक का सत्य तब ही उजागर होता है, जब कुछ लोग उसे खरीदते हैं. इनके अनुभव के आधार पर दूसरे उस बाइक को खरीदने का निर्णय लेते हैं. बाइक खराब निकलने पर अग्रणी ग्राहकों को घाटा लगता ही है. लेकिन अंत में क्रेताओं को पता लग जाता है कि कौन सी बाइक अच्छी है और समाज का हित होता है. इसी प्रकार कुछ छात्रों को घटिया शिक्षा मिलने से जो घाटा होता है, वह अंतत: समाज के लिए हितकारी होगा.

सरकार के द्वारा इस घाटे को सीमित किया जा सकता है. इंजीनियरिंग कॉलेजों की रेटिंग करा कर इसे प्रकाशित करना चाहिए. होटलों में यह व्यवस्था लागू है. अलग-अलग देशों में सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा होटलों की सितारा रैंकिंग की जाती है. इन रैंकिंग का सरकारी होना जरूरी नहीं है. रैंकिंग में घपलेबाजी भी होती है. फिर भी ग्राहक को प्रथम दृष्ट्या होटल की गुणवत्ता का अनुमान मिल जाता है.

यदि रैंकिंग संस्था घपला करती है तो उसके द्वारा जारी रैंक की विश्वसनीयता शीघ्र समाप्त हो जाती है. इसी प्रकार देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों की रैंकिंग करने के लिए सरकार को दो या तीन स्वतंत्र संस्थाओं को ठेका देना चाहिए. इन रैंकों को प्रकाशित करने से घटिया कॉलेजों में दाखिला लेनेवाले छात्रों को पूर्व में ही चेतावनी मिल जायेगी. साथ ही इंजीनियरिंग डिग्रीधारकों के लिए कॉमन परीक्षा अनिवार्य बना देना चाहिए.

विदेश में दाखिला लेने के लिए सैट तथा जीआरइ नाम से वैश्विक स्तर पर परीक्षाएं करायी जाती हैं. विभिन्न देशों द्वारा दी गयी डिग्री का तुलनात्मक मूल्यांकन करने के लिए जीआरइ के अंकों का सहारा लिया जाता है. इसी प्रकार इंजीनियरिंग कॉलेजों द्वारा अंतिम वर्ष में सीबीएसई की तरह एक परीक्षा अनिवार्य बना देना चाहिए. इससे फर्जी डिग्रियों का पदार्फाश हो जायेगा.

एक समस्या मेधावी गरीब छात्रों की है. प्राइवेट कॉलेजों में ये प्रवेश नहीं ले पायेंगे. समाधान है कि सरकार को बड़ी संख्या में छात्रवृत्तियां और आसान किस्तों पर ऋण देना चाहिए. देश को भारी संख्या में कुशल इंजीनियरों की जरूरत है. इसलिए निजी कॉलेजों का विस्तार सही दिशा में है.

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