* भूटान के चुनाव परिणाम
भूटान में लोकतंत्र ने एक ऐतिहासिक पड़ाव पार कर लिया है. चारों ओर से अस्थिर पड़ोसियों से घिरे भारत के लिए भूटान से आ रही लोकतंत्र के मजबूत होने की खबर वास्तव में राहत देनेवाली है. वर्ष 2008 में पहली बार मताधिकार का प्रयोग करनेवाली इस देश की जनता ने जिस परिपक्वता और उत्साह का परिचय देते हुए देश की अगली सरकार के लिए मतदान किया और सत्ताधारी द्रुक फ्यूनसम शोग्पा (डीपीटी) की जगह विपक्षी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को देश का शासन चलाने का जनादेश दिया, वह अपने भीतर कई संदेशों को छिपाये हुए है.
इन चुनाव नतीजों का पहला संदेश तो यही है कि भूटान में लोकतंत्र के पौधे की जड़ें गहरे तक जम गयी हैं और यह सिर्फ ‘राजा की इच्छा’ मात्र नहीं है, बल्कि इसमें जनता की इच्छा भी शामिल है. हिमालय की गोद में बसे, सात लाख से थोड़ी ही ज्यादा आबादीवाले देश भूटान की 47 सदस्यीय नेशनल एसेंबली के लिए हुए दो–दलीय चुनाव में सत्ताधारी डीपीटी को मिली पराजय भारत के साथ भूटान के संबंधों की महत्ता को भी रेखांकित कर रही है.
वर्ष 2008 में डीपीटी को मिली जीत में ‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’ की अवधारणा का मुख्य योगदान था. दुनियाभर में विकास के वैकल्पिक मॉडल के तौर पर सराही गयी इस अवधारणा ने भूटान को अपनी एक अलग पहचान देने का काम किया. लेकिन 2013 के चुनावों में भारत के साथ रिश्तों के सवाल ने इस मुद्दे को पीछे धकेल दिया.
जुलाई महीने के आरंभ में भारत द्वारा भूटान को एलपीजी, पेट्रोल, केरोसीन तथा चुखा पन–बिजली परियोजना के लिए दी जा रही सब्सिडी खत्म करने के बाद वहां यह बहस तेज हो गयी थी कि क्या भूटान की मौजूदा सरकार चीन की ओर झुकने की कोशिश में भारत के साथ संबंधों को वाजिब तवज्जो नहीं दे रही है! भारत के फैसले के बाद भूटान में गैस सिलिंडर की कीमत लगभग दोगुनी हो गयी.
हालांकि भारत के इस फैसले की आलोचना भी की गयी और कुछ लोगों ने इसे भूटान की बांह मरोड़ने की कोशिश के तौर पर भी देखा, लेकिन वहां की जनता ने पीडीपी के पक्ष में अपना समर्थन देकर यह जता दिया कि उसके लिए जीवन को प्रभावित करनेवाले महंगाई जैसे मुद्दे और भारत के साथ मधुर संबंध की कितनी ज्यादा अहमियत है.
सत्ताधारी दल डीपीटी पर भ्रष्टाचार के आरोपों ने भी उसकी छवि को मलिन किया. भूटान की जनता का संदेश साफ है. वह सिर्फ आदर्शवाद से संतुष्ट होनेवाली नहीं है, बल्कि विकास को जीवन में महसूस करना चाहती है. नयी सरकार के सामने असल चुनौती यही होगी.