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सहमति से बने सीमा रेखा

।। अफसर करीम ।। (रिटायर्ड मेजर जनरल) पिछले दिनों लद्दाख के पास चुमार में भारतीय सीमा में घुस कर चीनी सेना ने उत्पात मचाया. खबरों के मुताबिक चीनी सैनिकों ने वहां के लोगों को धमकी दी और सुरक्षा कैमरों को तोड़ दिया. ऐसी घटना इसलिए हुई क्योंकि चीन और भारत दोनों इस इलाके पर अपना–अपना […]

।। अफसर करीम ।।

(रिटायर्ड मेजर जनरल)

पिछले दिनों लद्दाख के पास चुमार में भारतीय सीमा में घुस कर चीनी सेना ने उत्पात मचाया. खबरों के मुताबिक चीनी सैनिकों ने वहां के लोगों को धमकी दी और सुरक्षा कैमरों को तोड़ दिया. ऐसी घटना इसलिए हुई क्योंकि चीन और भारत दोनों इस इलाके पर अपनाअपना दावा करते रहे हैं. ऐसी घटना की तह में जाने पर पता चलता है कि सैन्य अड्डों और निगरानी वाले सीमा क्षेत्रों में चीन की बारबार हो रही दखल की जड़ें वर्तमान में नहीं, बल्कि इतिहास में हैं.

आजादी के पहले भारत से तुर्कमेनिस्तान का व्यापार होता था. व्यापार के लिए व्यापारी लद्दाख और अक्साई चिन के रास्ते से होते हुए चीन के काश्गर शहर तक जाते थे. अक्साई चिन एक विवादित क्षेत्र है. वहां एक वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) है, जो कश्मीर के कुछ क्षेत्रों को अक्साई चिन क्षेत्र से अलग करती है. गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन, सीमा विवाद के दो बड़े मसले हैं, जिसे लेकर भारतचीन सीमाओं पर तकरार की घटनाएं होती रहती हैं.

दरअसल अक्साई क्षेत्र में 1950 में भारत ने अपनी सीमा निर्धारित की थी, जो चीन को नागवार गुजरा था और उसने तबसे उस पर कब्जा जमा रखा है. तभी से अक्साई चिन पर भारत अपना दावा करता रहा है और इसे जम्मूकश्मीर का उत्तरपूर्वी हिस्सा मानता है. अक्साई चिन जम्मूकश्मीर के क्षेत्रफल के तकरीबन पांचवें हिस्से के बराबर है. दोनों देशों के अपनेअपने दावों को लेकर सैनिक कारगुजारियां होती रहीं. इसके लिए हमने 1962 की लड़ाई भी लड़ी.

चीन अरुणाचल क्षेत्र को अपना मानता है और उसे हथियाने की कोशिशों में लगा रहता है, लेकिन हम उसे नहीं देनेवाले. अक्साई चिन की तरह वह इस पर भी कब्जा जमाना चाहता है. इसलिए ऐसी हरकतें करता रहता है. जाहिर है कि जब तक देशों की सीमाएं निर्धारित नहीं की जाएंगी, सीमा विवादों का निपटारा नहीं होगा. और जब तक दोनों देश अपनाअपना दावा पेश करते रहेंगे, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी.

भारत का मीडिया सिर्फ चीनी घुसपैठ पर शोर करता रहता है, जबकि हकीकत यह है कि हमारी सेना भी कभीकभार सीमा पर झगड़ों की वजह बनती है. अतीत में कुछ सीमा क्षेत्रों में भारतीय सेना भी अंदर तक दाखिल हुई है, जहां चीनी सेना पहले से मौजूद थी. ऐसी स्थिति में दोनों ओर से गोलीबारी या फिर हक जताने की बातें तो सामने आयेंगी ही.


हमारे
समय में, जब मैं वहां था, तब सीमाओं के दोनों तरफ से कभीकभी फायरिंग हो जाती थी और झगड़े भी हो जाते थे, लेकिन कुछ समय बाद में दोनों देशों ने एक समझौता किया कि उनकी सेनाएं ऐसा नहीं करेंगी, लेकिन वास्तव ऐसा नहीं हो पाता है. ऐसा संभव भी नहीं है, क्योंकि जब तक सीमाओं का सहीसही निर्धारण नहीं होगा, और दावे पेश किये जाते रहेंगे, तब तक सेनाओं के झगड़े होते रहेंगे.

लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में भारत और चीन दोनों की सेनाओं की ओर से हमारे समय में इंडिया गेट और चाइना गेट का निर्माण किया गया था. इसका मकसद था सैन्य सौहार्द, लेकिन बाद में विवादों के चलते दोनों गेटों को तोड़ दिया गया. चुमार क्षेत्र को भी हम अपना समझते हैं, लेकिन चीन अपना दावा करता है. हमारे पास अब तक कोई ऐसी नीति नहीं बनी है, जिससे कि मैप मार्किग हो और सीमा विवादों का निपटारा हो सके.


जहां
तक भारत और चीन की सैन्य नीति का सवाल है, तो सीमा विवाद और सीमा क्षेत्रों में घुसपैठ की घटनाओं को लेकर अब तक भारत और चीन के बीच 16 राउंड की बैठकें हो चुकी हैं. लेकिन अब भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है. हमें चाहिए कि हम तमाम सीमा विवादों के निपटारे के लिए अपनाअपना दावा छोड़ें और एक निश्चित बॉर्डर लाइन के तहत समझौता करें. निश्चित सीमा का निर्धारण होना ही चाहिए और यह सेना को ही डील करना होगा.

जहां तक सरकारों की बात है, तो उन्हें इसमें मुख्य और सार्थक भूमिका निभाने की जरूरत है. सिर्फ बैठकों से काम नहीं होने वाला, बल्कि यह ठोस निर्णय करना होगा. अब उन्हें सीमा विवादों को निपटाने के लिए सहयोगपूर्ण समझौते करने होंगे. अपनाअपना दावा पेश करते रहने से तो सिवाय झगड़े के किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता. हम अपनी ओर से एक बाउंड्री लाइन खींच कर उस पर समझौता नहीं कर सकते, बल्कि समझौता आपसी सहमति की एक नयी बाउंड्री लाइन के लिए होनी चाहिए.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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