मित्रो,
गांव-पंचायत के विकास का रास्ता प्रखंड स्तर के कार्यालयों से फूटता है. पंचातीराज व्यवस्था में पंचायती राज संस्थाएं लोकतंत्र की बुनिवादी संस्थाएं हैं. यानी जनतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार पंचायतों से शुरू होती है. उसी प्रकार गांव-पंचायत के विकास, कल्याण, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे सभी तरह के सरकारी कार्यक्रम और योजनाओं को धरातल पर प्रखंड स्तर के कार्यालयों के जरिये उतारा जाता है. गांव-पंचायत के विकास की सरकारी योजनाओं के निर्धारण में भी इन्हीं कार्यालयों की बड़ी भूमिका होती है. इसलिए आम हो या खास, हर किसी के लिए यह जानना जरूरी है कि प्रखंड स्तर पर सरकार के किस-किस तरह के कार्यालय हैं, किस-किस तरह की संस्थाएं हैं तथा उनके अधिकारी कौन होते हैं? उन अधिकारियों के पास क्या अधिकार है और उनका कर्तव्य क्या है? किस कार्यालय के अधीन क्या-क्या योजनाएं और कार्यक्रम है और उनका कार्यान्वयन कैसे होना है? आपका किस तरह का काम किस अधिकारी को करना है? इसकी जानकारी जरूरी है. इस जानकारी के अभाव में जनता को अपने छोटे-छोटे काम के लिए भी परेशान होना पड़ता है और इसका लाभ बिचौलिया उठाते हैं. सूचना का अधिकार और सेवा का अधिकार लागू होने के बाद भी प्रखंड स्तर के कार्यालयों में अपना काम कराना और योजनाओं का सही-सही लाभ ले पाना सहज नहीं हुआ है. दूसरी ओर जनता को इसकी जानकारी नहीं रहने के कारण अधिकारी और कार्यालय के कर्मचारी भी कम परेशान नहीं होते. इसलिए हम इस स्तंभ में आपको प्रखंड स्तर के सरकारी कार्यालयों एवं अधिकारियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों, उनके कार्यान्वयन के तरीके तथा उन मामलों में सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने के बारे में जानकारी दे रहे हैं. इसकी शुरुआत हम समन्वित बाल विकास परियोजना यानी आइसीडीएस से कर रहे हैं.
जानिए सीडीपीओ को
बाल विकास परियोजना पदाधिकारी यानी सीडीपीओ को आप जानते होंगे. राज्य के सभी प्रखंडों में बाल विकास परियोजना का कार्यालय है. इस कार्यालय की मुखिया सीडीपीओ होती है. यह बीडीओ-सीओ की तरह राजपत्रित पदाधिकारी का पद है और इसका चयन राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता है. बिहार में सरकार ने 15-15 साल पहले इस पद को केवल महिलाओं के लिए आरक्षित किया था, लेकिन पिछले साल सरकार ने अपनी इस नीति में बदलाव किया और पुरुषों को भी इस पद पर बहाल करने का निर्णय लिया. यह समाज कल्याण विभाग के अधीन है. समाज कल्याण विभाग की समेकित बाल विकास सेवा (आइसीडीएस) के सभी कार्यक्रमों का गांव से प्रखंड स्तर तक संचालन सीडीओ के जिम्मे हैं. जहां सीडीपीओ का पद खाली है, वहां पास के दूसरे प्रखंड के सीडीपाओ या उसी प्रखंड के बीडीओ या सीओ को उसका प्रभार दिया जाता है.
समेकित बाल विकास परियोजना
समिन्वत बाल विकास योजना या एकीकृत बाल विकास योजना (जिसे संक्षेप में हम संक्षिप्त में आइसीडीएस कहते हैं) के अंतर्गत 0-6 वर्ष तक के बच्चों के संपूर्ण विकास, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को स्वस्थ रखने, उनके पोषण कार्यक्रम चलाये जाते हैं. शुरुआती बालपन की देखरेख और पोषण संबंधी सरकार के सभी कार्यक्रम इसी के तहत संचालित होते हैं. छह साल तक के बच्चों को स्कूल जाना शुरू करने के पूर्व तक आंगनबाड़ी केंद्रों में उन्हें अक्षर ज्ञान कराना भी इस कार्यक्रम का उद्देश्य है. समेकित बाल विकास सेवा यानी आइसीडीएस की शुरुआत बच्चों के पोषण और शिक्षा संबंधी जरूरतों को सरकारी स्तर पर पूरा करने के लिए की गयी. यह सेवा दो अक्तूबर 1975 को शुरू हुई. यह कार्यक्रम दुनिया भर में बच्चों के लिए चलाया जाने वाला सबसे अनूठे कार्यक्रमों में एक है.
राज्य में कितने सीडीपीओ
समेकित बाल विकास सेवा के तहत बिहार में 544 बाल विकास परियोजनाएं चल रही हैं. यानी राज्य में 544 सीडीपीओ हैं. इनके अधीन राज्य में 80,211 आंगनबाड़ी केंद्र हैं.
जानिये इन कार्यकमों को
समेकित बाल विकास सेवा के तहत छह वर्ष तक के बच्चे, गर्भवती महिलाएं तथा धात्री माताएं इन सेवाओं को प्राप्त करने का अधिकार रखती हैं :
पोषण : पोषण कार्यक्रम का उद्देश्य है छह साल के बच्चों, गर्भवती और धात्री महिलाओं को कुपोषण से बचाना, ताकि वे पोषित जनसंख्या तैयार करने में मदद कर सकें. आप आंगनबाड़ी केंद्र पर इस प्रकार की सेवा
टीकाकरण : गर्भवती महिलाओं और बच्चों का टीकाकरण इसलिए किया जाता है, ताकि उन्हें रोगों से बचाया जा सके. इससे बच्चे को जन्म देने वाली माताओं और नवजात शिशु के मरने की दर में कमी आये. जन्म से छह साल की उम्र तक बच्चों को टीका लगा कर उन्हें पोलियो, डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस, टीबी और खसरा इन छह प्रकार की बीमारी से बचाया जा सके.
स्वास्थ्य जांच : स्वास्थ्य जांच के तहत छह साल के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं की आंगनबाड़ी केंद्रों तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों द्वारा नियमित स्वास्थ्य जांच की जाती है और जरूरी दवा भी दी जाती है. यह सेवा पूरी तरह मुफ्त है.
रेफरल सेवा : नियमित स्वास्थ्य जांच के दौरान स्वास्थ्य कार्ड भी बनाया जाता है. इसमें हर बार वजन लेकर उसे अंकित किया जाता है. इस दौरान अगर किसी बच्चे में पोषण की कमी पायी जाती है या उसे बीमार पाया जाता है, तो उसे रेफरल सेवा दी जाती है. इसमें उसे अतिरिक्त पोषण तत्व, दवा आदि दी जाती है. जरूरत पड़ने पर उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या उप स्वास्थ्य केंद्र भेजा जाता है, ताकि उसे हर हाल में कुपोषण और बीमारी से बचाया जा सके. यह सेवा भी मुफ्त है.
स्कूल-पूर्व अनौपचारिक शिक्षा : तीन से छह साल तक के बच्चों को स्कूल-पूर्व शिक्षा देनी है. उन्हें अक्षर ज्ञान कराना है. इसका उद्देश्य स्कूल और शिक्षा प्रति उनमें शुरू से अभिरुचि पैदा करना.
पोषण व स्वास्थ्य शिक्षा : इसके तहत 15 से 45 साल की महिलाओं को पोषण और स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाती है, ताकि वह अपने परिवार व बच्चों कसे स्वस्थ रख सके.
कैसे प्राप्त करें
इन योजनाओं का लाभ आप भी अपने बच्चों और परिवार की महिलाओं को दिला सकते हैं. इसके लिए आप आंगनबाड़ी केंद्र या बाल विकास परियोजना कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं. इन योजनाओं का लाभ आपको दिलाने के लिए आपके क्षेत्र की सीडीपीओ जवाबदेह है. अगर आंगनबाड़ी सेविका आपको सुविधा देने में आनाकानी करती हैं तो इसकी लिखित शिकायत सीडीपीओ से करें.
समाज कल्याण विभाग का ढांचा
समेकित बाल विकास कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए सरकार के इतने अधिकारी हैं :
शासन स्तर
समाज कल्याण आयुक्त
सचिव / प्रधान सचिव
विशेष सचिव
अवर सचिव
निदेशालय स्तर पर
निदेशक
संयुक्त निदेशक
उप निदेशक
सहायक निदेशक
जिला स्तर पर
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डीपीओ)
उप विकास आयुक्त(डीडीसी)
प्रखंड स्तर पर
बाल विकास परियोजना पदाधिकारी (सीडीपीओ)
महिला पर्यवेक्षिका
ग्राम स्तर पर
आंगनबाड़ी सेविका
आंगनबाड़ी सहायिका
सेवाएं, जो आपके लिए हैं
पूरक पोषण
रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण
स्वास्थ्य की नियमित जांच
रेफरल अस्पताल में मिलने वाली सभी सेवाएं
स्कूल-पूर्व अनौपचारिक शिक्षा
पोषण व स्वास्थ्य शिक्षा
इन्हें भी जानें
राष्ट्रीय पोषण नीति, 1993 : यह नीति देश की जनसंख्या की पोषण संबंधी स्थिति बताती है. यह महिलाओं, किशोरियों और बच्चों के पोषण स्तर में सुधार के लिए व्यापक रणनीति की जरूरत तय करती है. यह नीति इस बात पर जोर देती है कि देश में सर्वाधिक कुपोषित आबादी बच्चों की है. इसलिए समेकित बाल विकास सेवा के बड़े विस्तार से उनकी पोषण संबंधी स्थिति में सुधार लाने की जरूरत है.
शिशु दुग्ध प्रतिस्थापन, दूध पिलाने की बोतल और शिशु आहार (उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का नियमन), अधिनियम, 1992 और 2003 (संशोधित) : इसका उद्देश्य शिशुओं के दूध, दूध पिलाने के बोतल और आहार के उत्पादन, उनकी आपूर्ति और वितरण को कानून के दायरे में लाना है. इसके जरिये दुग्ध प्रतिस्थापन, दूध पिलाने की बोतलों की बिक्र ी और आपूर्ति के विज्ञापन को प्रतिबंधित किया गया है. शिशुओं के लिए डब्बा बंद दूध बनाने वाली कंपनी को डब्बे पर इस तरह का संदेश लिखना जरूरी है कि ‘मां का दूध शिशुओं के लिए सर्वोत्तम है’, ताकि माताओं में अपने शिशुओं को स्तनपान कराने की जागरूकता का प्रसार हो. इसमें शिशु के दूध में मिलावट करने या उसकी गुणवत्ता में किसी भी तरह की कमी करने वाली कंपनी के खिलाफ कड़े दंड का भी प्रावधान है.