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‘सद्दाम हमारे लिए बड़ा ख़तरा है’

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे टोनी ब्लेयर का इराक़ हमले में अमरीका का साथ देने का फैसला ब्रिटेन की विदेश नीति के पिछले पचास वर्षों के दौरान हुए सबसे विवादास्पद फैसलों में से एक है. इसी फैसले के कारण इराक़ हमले की जांच कर रहे चिलकॉट जांच आयोग के सामने ब्लेयर को दो बार पेश होना […]

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ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे टोनी ब्लेयर का इराक़ हमले में अमरीका का साथ देने का फैसला ब्रिटेन की विदेश नीति के पिछले पचास वर्षों के दौरान हुए सबसे विवादास्पद फैसलों में से एक है. इसी फैसले के कारण इराक़ हमले की जांच कर रहे चिलकॉट जांच आयोग के सामने ब्लेयर को दो बार पेश होना पड़ा.

इस जांच आयोग की रिपोर्ट में ब्लेयर और तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के बीच हुए पत्राचार का भी उल्लेख है. इस पत्राचार से इस हमले की काफी ‘तहें’ खुलती हैं.

जानकारों का मानना है कि इस पत्राचार में इस हमले को लेकर बनाए गए आधार की सच्चाई सामने आती है.

चिलकॉट जांच आयोग के साथ-साथ जब से साल 2001 से 2007 के बीच ब्लेयर और बुश के बीच पत्राचार का खुलासा हुआ है तब से इराक़ हमले से जुड़े तथ्यों व बुश और ब्लेयर के संबंधों के नए आयाम सामने आएं हैं.

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‘हमें सद्दाम से निपटने की ज़रूरत है’

‘…मुझे कोई शक नहीं है कि हमें सद्दाम से निपटने की ज़रूरत है लेकिन हम इराक़ पर अगर अभी हमला करेंगे तो अरब देश, रूस और संभवत: आधा यूरोपीय यूनियन हमसे अलग हो जाएगा. इस सब का पाकिस्तान पर जो असर पड़ेगा उसको लेकर मुझे खासा डर है. इसके बावजूद मुझे भरोसा है कि हम सद्दाम को लेकर बाद में एक बेहतर रणनीति बना सकते हैं…’ (11 अक्टूबर 2001, बुश को ब्लेयर के लिखे ख़त का अंश)

इस ख़त से एक बात साफ़ हो जाती है कि ब्लेयर और बुश खुले आम सद्दाम हुसैन पर तब बात कर रहे हैं जब 9/11 की घटना को घटे महीना भर ही हुआ है.

‘सत्ता परिवर्तन से नाम होगा’

इस ख़त में ब्लेयर इराक़ में सत्ता परिवर्तन की रणनीति पर अपने सुझाव रख रहे हैं.

ब्लेयर लिखते हैं कि, ‘हमें तब तक सैन्य कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जब तक वह बेहद ज़रूरी न हो और हमारा अंतरर्राष्ट्रीय समर्थन कमज़ोर न पड़े. अगर सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाना हमारा मुख्य लक्ष्य है तो बेहतर होगा कि हम सीरिया या ईरान और इराक़ तीनों पर एक साथ हमला न करें. मैं इनमें पहले दो देशों को मौका देने की वकालत करूंगा हालांकि इन दोनों पर ऐसा करना खासा आसान मामला है. अगर हम अफ़गानिस्तान में सत्ता परिवर्तन कर नाम कमा लेते हैं तो हमें इराक़ पर अपना तर्क रखने में मदद मिलेगी’. (4 दिसंबर 2001, बुश को ब्लेयर के लिखे ख़त का अंश)

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‘कुछ भी हो तुम्हारे साथ हूं’

‘कुछ भी हो मैं तुम्हारे साथ हूं… सद्दाम से मुक्ति पाना एक सही कदम है. वह हमारे लिए बड़ा ख़तरा है. उसका जाना इस क्षेत्र को आज़ाद करेगा. उसकी सत्ता उत्तरी कोरिया को छोड़कर दुनिया की सबसे अमानवीय और क्रूर सत्ता है. लेकिन इस सब के बीच सबसे पहला सवाल यह है कि उसको हटाने के लिए तुम्हें गठबंधन करने की ज़रूरत पड़ेगी. अमरीका, इसे ब्रिटेन की मदद से अकेले अंजाम दे सकता है… लेकिन मान लो इराक़ियों को लगा कि उन पर हमला हुआ है और उन्होंने इसका विरोध किया तब…’

28 जुलाई 2002 को बुश को ब्लेयर के लिखे ख़त का यह अंश छह पन्नों के नोट का हिस्सा है. इस ख़त को ‘व्यक्तिगत और गोपनीय’ का ठप्पा लगा कर भेजा गया था.

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चिलकॉट के अनुसार व्यक्तिगत होने के बावजूद इस ख़त में ब्रिटेन सरकार का पक्ष हमले से आठ महीने पहले रख दिया गया था.

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ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ब्लेयर पर पहले से यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने इस हमले में शामिल होने के लिए गुप्तचर एजेंसियों की सूचनाओं का ‘बढ़ा-चढ़ाकर’ कर पेश किया और उसका ‘दुरुपयोग’ किया.

ब्लेयर के प्रवक्ता लगातार इन आरोपों से इंकार करते रहे हैं.

ब्लेयर खुद भी कई अवसरों पर अपने इस फ़ैसले का बचाव करते रहे हैं. हालांकि उन्होंने इराक़ में जन तबाही के हथियारों के इस्तेमाल पर ‘ग़लतियों’ के लिए माफ़ी भी मांगी लेकिन उन्होंने लड़ाई शुरू करने के अपने फ़ैसले पर कोई अफ़सोस नहीं जताया.

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उन्होंने माना था कि युद्ध की वजह से तथाकथित इस्लामिक स्टेट के उदय के दावों में ‘कुछ सच्चाई’ है.

लेकिन उन्होंने कहा था कि सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने के लिए ‘माफ़ी मांगना मुश्किल’ है.

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