-दर्शक-
लगभग एक सप्ताह पूर्व रांची में एक ऐसे गंभीर प्रकरण का भंडाफोड़ हुआ, जिसकी जड़ें राज्य के कोने-कोने और व्यवस्था के पुरजे-पुरजे तक फैली है. नकली दवा बेचने का इतना सशक्त जाल और तंत्र बरसों से फल-फूल रहा था, पर जनता की गाढ़ी कमाई से अर्जित सरकारी कोष की बदौलत अय्याशी करनेवाले अफसरों को जीवन के साथ हो रही इस सौदेबाजी की गंध नहीं थी. नकली दवाएं बनती थीं, राज्य सरकार करोड़ों में खरीदती थी और पूरे सूबे में इसका वितरण होता था.
यह काम एक ऐसा व्यक्ति कर रहा था, जिसके खिलाफ दवा-अधिकारियों की रपट थी. उस पर जाली काम करने का आरोप था. बरसों पूर्व सार्वजनिक क्षेत्र की एक बजी इकाई में भी इस व्यक्ति ने नकली दवाओं की आपूर्ति की थी, फिर भी उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई. उलटे उसके कामकाज के फैलाव, धंधे की बढ़ोत्तरी और व्यवसाय बढ़ाने में राज्य के दो मंत्री, विधायक और अनेक अफसर सहायक थे.
जिस राज्य में अध्यापकों को समय से तनख्वाहें नहीं मिलतीं, फंड के अभाव में अत्यावश्यक कार्य नहीं हो पा रहे, वहां एक जाली काम करनेवाले व्यक्ति को तत्काल करोड़ों रुपये भुगतान के लिए विभागीय मंत्री आदेश देते है, विधायक सिफारिश करते हैं, तो क्या इस नाजायज संबंध का कारण समझ में नहीं आता? इससे भी गंभीर प्रकारण है. राजनीतिक दलों का जन्म ही होता है, इस पावन उद्देश्य के तहत कि वे जनहितों की पहरेदारी का काम करेंगे, पर रांची के राजनीतिक दल ऐसे गंभीर मुद्दों पर न सिर्फ खामोश रहते हैं, बल्कि जनविरोधी ताकतों को मदद करते हैं. मामला चाहे बिजली पानी संकट का हो, या नर्सिंग होम में बच्चों की हेराफेरी का या नकली दवाओं द्वारा लोगों की जान लेने का, रांची के राजनीतिक दल मूक दर्शक ही रहे है. पड़ोस के बंगाल में अगर ऐसी घटना हुई होती तो आज दोषी मंत्री, विधायक या अफसर जन आक्रोश से बचने के लिए मुंह छिपाते घूमते फिरते. यहां उलटी स्थिति है. इन दलों के अनेक स्थानीय नेता ऐसी ताकतों के शक्ति स्रोत है.
अगर बड़े पैमाने पर छानबीन हो या गहराई से जांच हो, तो पता चलेगा कि नकली दवाओं के सेवन से कितने निर्दोंष लोग बेमौत मरे हैं, इन ‘हत्याओं’ के जिम्मेदार लोगों को अगर व्यवस्था पनाह देती है, जिसके प्रमाण उजागर स्पष्ट होते हैं, फिर भी समाज का मुखर वर्ग चुप रहता है, तो यह अपराध है. सूबे का स्वास्थ्य राज्य मंत्री ऐसे व्यक्ति को पद देकर साम्मानित करता है, दूसरा मंत्री व विधायक तत्काल उसे पैसा भुगतान कराने में मदद करता है और वह सैकड़ों निपराध लोगों की जान लेकर भी आराम से घूम-फिर रहा है.
आज बाबरी मसजिद प्रकरण पर बोलते-बतियाते अनेक लोग मिलेंगे. पर वह यह नहीं जानते कि जब देश की आम जनता मूक दर्शक बन गयी थी, तभी बाहरी ताकतों ने हमें गुलाम बनाया था. आज मौत के सौदागर आपके जीवन को अपनी मुट्ठी में लेकर घूम रहे हैं, पर आप-हम खामोश-दर्शक हैं, यह स्थिति कहां ले जायेगी, क्या यह भी कोई भविष्यद्रष्टा बतायेगी?