दक्षा वैदकर
आजकल लोगों को एक शब्द बोलने की बहुत आदत हो गयी है, ‘मैं बिजी हूं’. घर से किसी का फोन आया, तो कह दिया बिजी हूं.. बाद में कॉल करता हूं. किसी साथी ने पूछा, चाय पीने चलोगे? कह दिया- थोड़ा बिजी हूं.
बच्चों या पत्नी ने पूछा कि बाहर घूमने चलो- कह दिया कि बिजी हूं, जबकि सामनेवाला साफ देख रहा होता है कि हम मोबाइल में चैट कर रहे हैं, गेम खेल रहे हैं, टीवी देख रहे हैं.
हमें यह समझना होगा कि जब हम बोलते हैं, ‘मैं बहुत बिजी है’ हम नेगेटिव एनर्जी पैदा करते हैं क्योंकि इस लाइन का सीधा मतलब यह है कि ‘मैं तुम्हारे लिए उपलब्ध नहीं हूं. तुमने ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे लिए और भी काम हैं.’
बच्चों, पत्नी व दोस्तों के लिए तो हमारे पास समय कभी होता ही नहीं है, कई बार तो हम खुद के लिए भी समय नहीं निकालते. किसी ने पूछा कि फिट रहने के लिए जिम क्यों नहीं जाते? कह दिया- बिजी रहता हूं. वक्त नहीं है.
दोस्तो, हमें सोचना होगा कि हम ऐसा कौन-सा महान काम कर रहे हैं कि परिवार, दोस्तों व खुद के लिए भी वक्त नहीं निकाल पा रहे? आप में से कई लोग कहेंगे कि नौकरी करना जरूरी है.
रुपये कमाना जरूरी है. बच्चों को सारी सुख-सुविधाएं देना जरूरी है. यह सोच ठीक है, लेकिन बेहतर होगा कि हम इस सवाल को परिवार से पूछें. उनसे पूछ कर देखें कि आप लोगों को सुख-सुविधाएं चाहिए या मेरा वक्त. आपके परिवारवाले आपका समय ही मांगेंगे.
जिस तरह क्लाइंट हमें बताता है कि उसे माल कितनी मात्र में चाहिए और हम उसे उसी मात्र में देते हैं. उसी तरह घर वालों से भी पूछें. क्या कभी ऐसा हुआ है कि क्लाइंट ने माल कम मांगा, लेकिन हम उसे अधिक मात्र में माल दिये जा रहे हैं? नहीं न. तो अपने परिवार यानी क्लाइंट को हद से ज्यादा सुख-सुविधाएं क्यों देने के पीछे पड़े हैं.
उनसे पूछे कि उन्हें क्या और कितनी मात्र में चाहिए. तब आपका पता चलेगा कि आपका ये क्लाइंट सुख-सुविधाएं नहीं, आपका वक्त चाहता है. वक्त का मतलब यह नहीं कि आप घर पर मौजूद हों और मोबाइल में लगे रहे. वे क्वालिटी टाइम चाहते हैं.
बात पते की..
– हम अपने परिवार के साथ कितनी देर बैठते हैं, यह उतना मायने नहीं रखता. मायने तो यह रखता है कि आपने दिल से कितनी देर बात की.
– टीवी, कपड़ा, गहने, गाड़ी घर.. ये ऐसी चीजें हैं कि इनकी भूख कभी खत्म नहीं होगी. बेहतर है कि आप कम में खुश रहें, परिवार को महत्व दें.