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संजीवनी औषधि

मनुष्य के चारों तरफ भी आभामंडल का भंडार है. जिस व्यक्तिका आभामंडल जितना अधिक शक्तिशाली होता है, वह व्यक्ति दूसरे व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को उतना ही अधिक प्रभावित करता है. उदाहरण के लिए, किसी कमरे में कोई चार-पांच व्यक्ति हंस-खेल रहे हों और उसी समय कोई प्रचंड क्रोधी व्यक्ति उन सबके बीच आ जाये, तो […]

मनुष्य के चारों तरफ भी आभामंडल का भंडार है. जिस व्यक्तिका आभामंडल जितना अधिक शक्तिशाली होता है, वह व्यक्ति दूसरे व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को उतना ही अधिक प्रभावित करता है.
उदाहरण के लिए, किसी कमरे में कोई चार-पांच व्यक्ति हंस-खेल रहे हों और उसी समय कोई प्रचंड क्रोधी व्यक्ति उन सबके बीच आ जाये, तो उसके प्रवेश करते ही कमरे का वातावरण तत्क्षण बदल जायेगा. ऐसा क्रोधी व्यक्ति अगर किसी भीड़ में चला जाता है, तो उससे प्रभावित होकर शांति से खड़े लोग भी क्रोधित हो जाते हैं और तोड़-फोड़ करने लगते हैं.
ऐसा उस व्यक्ति के स्वभाव से उत्पन्न निगेटिव आभा के कारण होता है. उपयरुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जो अपनी प्राणशक्ति अथवा प्राण-ऊर्जा को जितना अधिक गहरा बनाता है, वह व्यक्ति उतना ही अधिक प्रभावशाली आभामंडल से मंडित होता है. इस प्रकार का व्यक्ति ही अपने प्रभाव में दूसरे को खींच पाता है. अत: प्राणायाम के माध्यम से अपनी-अपनी प्राणवायु को अधिक-से-अधिक बढ़ाने का सफल प्रयास करें. ध्यातव्य है कि प्राण ही परमात्मा है और इस प्राण का पोषण प्राणायाम के माध्यम से होता है.
जिस प्रकार बाहर के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम किया जाता है, उसी प्रकार भीतर के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्राणायाम अनिवार्य है. इसे संजीवनी औषधि कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
आचार्य सुदर्शन

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