दो दिनों पहले चाईबासा जेल से 15 कैदी भाग गये. दो भागने के क्रम में पुलिस की गोली से मारे गये. अब खबर आ रही है कि खुफिया विभाग ने लगभग दो माह पहले ही सूचना दी थी कि ऐसी घटना घट सकती है. इसके बावजूद लापरवाही हुई. झारखंड में ऐसी घटना पहले भी घट चुकी है. यहां की जेलों में कई बड़े नक्सली बंद हैं. कई बड़े अपराधी बंद हैं. इसलिए, पेशी के लिए लाते-ले जाते वक्त पूरी सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए.
लेकिन जेल अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं लेते. यह घटना पूरी सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलता है. जेलों में जैमर लगे हैं, लेकिन काम नहीं करते. ऐसे जैमर किस काम के? जब कैदी भाग रहे थे, किसी ने अलार्म नहीं बजाया. साफ है कि या तो जेल के अधिकारी प्रशिक्षित नहीं थे, ऐसी घटनाओं का मॉक ड्रिल नहीं किया गया था या फिर लापरवाही बरती गयी. सीनियर अधिकारी जांच में लगे हैं.
रिपोर्ट आये, तब पता चलेगा कि लापरवाही किसकी थी. जेल में कैदियों के पास मोबाइल तक मिल जाता है, जबकि कानूनन वह रख नहीं सकता. सवाल यह उठता है कि मोबाइल जेल के भीतर कैसे जाता है. जेल में तैनात सुरक्षाकर्मियों की मिलीभगत के बगैर यह संभव नहीं हो सकता. यह हर कोई जानता है कि जेल के अंदर बड़े नक्सलियों को, बड़े अपराधियों को हर सुविधा मिलती है.
ये सुविधाएं मुफ्त में नहीं मिलतीं. जेल अधिकारियों को इसकी कीमत भी मिलती है. सभी भले बेईमान न हों, लेकिन जेल में व्याप्त भ्रष्टाचार इसका सबसे बड़ा कारण है. जांच का विषय यह भी है कि जेल में चुनाव के वक्त छापे क्यों नहीं मारे गये. अगर ऐसा हुआ तो मोबाइल क्यों नहीं पकड़े गये? हाल यह है कि जेल में छापामारी होने के पहले सारी सूचना लीक हो जाती है और मोबाइल या अन्य चीजों को छिपा दिया जाता है. सूचना लीक कैसे होती है, यह भी जांच का विषय है. प्रशासन के लिए चिंता की बात यह है कि भागे गये कैदियों को अब तक पकड़ा नहीं जा सका है. इनमें से कई बड़े नक्सली हैं. काफी कोशिशों के बाद कोई बड़ा नक्सली पकड़ में आता है. ऐसी घटनाओं से नक्सलियों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान में शामिल पुलिसकर्मियों का मनोबल गिरता है. बेहतर है कि सरकार जांच जल्दी पूरे कराये और दोषियों को दंडित करे.