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सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों को नहीं मिला

आज झारखंड में राजनीतिक अदूरदर्शिता का खामियाजा वहां के गरीब लोगों को उठाना पड़ रहा है. आर्थिक गतिविधियों में ठहराव के कारण वहां के लोग रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर पलायन करने को मजबूर हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से लोग वंचित हैं. आदिवासियों की स्थिति बेहतर होने के बजाय बदतर हो गयी […]

आज झारखंड में राजनीतिक अदूरदर्शिता का खामियाजा वहां के गरीब लोगों को उठाना पड़ रहा है. आर्थिक गतिविधियों में ठहराव के कारण वहां के लोग रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर पलायन करने को मजबूर हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से लोग वंचित हैं. आदिवासियों की स्थिति बेहतर होने के बजाय बदतर हो गयी है.

एक बात साफ है कि राजनीतिक बदलाव से ही आर्थिक और सामाजिक बदलाव आते हैं. उम्मीद थी कि बिहार से अलग होने के बाद झारखंड का विकास सही तरीके से होगा. लेकिन 14 वर्षो के सफर को देख कर कहा जा सकता है कि झारखंड विकास के मामले में पिछड़ता गया है. दरअसल झारखंड की विडंबना रही है कि वहां कभी भी स्थायी सरकार नहीं बन पायी है, जबकि साथ बने उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ इस मामले में अपवाद रहे. वैसे भी नये राज्य बनने से पहले भी उत्तराखंड विकास सूचकांक के मामले में बेहतर स्थिति में था. लेकिन राजनीतिक स्थिरता के कारण वहां बेहतर विकास कार्य हुए हैं. उसी प्रकार छत्तीसगढ़ में भी स्थायी सरकार और मजबूत नेतृत्व के कारण बेहतर विकास हुआ है. छत्तीसगढ़ बिजली के मामले में काफी आगे निकल चुका है. साथ ही वहां की सरकार ने गरीबों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध कराने में कामयाबी हासिल की है.

आखिर झारखंड प्रचुर संसाधनों के बावजूद क्यों पिछड़ा? इसका सीधा जवाब है राजनीतिक अस्थिरता और कमजोर नेतृत्व. राजनीतिक अस्थिरता और कमजोर नेतृत्व के कारण न सिर्फ विकास प्रभावित होता है, बल्कि प्रशासकीय कामकाज भी प्रभावित होता है. साथ ही इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है. राज्य में कमजोर नेतृत्व के कारण ही संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद विकास नहीं हो पाया है. पहले मध्य प्रदेश भी बीमारू राज्यों की श्रेणी में आता था, लेकिन मजबूत नेतृत्व के कारण आज मध्य प्रदेश विकास की नयी ऊंचाइयां छू रहा है. उद्योग और कृषि विकास के मामले में राज्य काफी आगे निकल चुका है.

यह नेतृत्व को तय करना होता है कि राज्य के समुचित विकास के लिए कैसी नीतियां बनें और उनका क्रियान्वयन कैसे हो. झारखंड में लचर सरकारों के कारण नीतियां सिर्फ कागजों पर बनीं और जमीनी स्तर पर उनका क्रियान्वयन नहीं हो पाया. अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो पिछड़े से पिछड़ा राज्य भी विकास कर सकता है. लेकिन इसके लिए बुनियादी चीजों जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. झारखंड में आज शिक्षा व्यवस्था की स्थिति काफी दयनीय है. बच्चों का स्कूलों में सिर्फ नामांकन दर बढ़ाने की बजाय उनकी उपस्थिति पर ध्यान देने की जरूरत है. आज भी ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों की स्थिति अच्छी नहीं है.

मेरा मानना है कि झारखंड सरकार को अपनी बुनियादी जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए था. जैसे छत्तीसगढ़ ने सबसे पहले सड़कों के विकास पर जोर दिया. बुनियादी सुविधाएं बेहतर होते ही वहां निवेश का माहौल बना. साथ ही वहां की सरकार ने घाटे में चल रहे उपक्रमों का निजीकरण किया और कई योजनाओं को पीपीपी मॉडल पर चलाया. झारखंड में इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया. इससे आर्थिक गतिविधियों में कमी आयी. झारखंड की अधिकांश सरकारों ने इंफ्रास्ट्रर को बेहतर किये बिना सिर्फ बड़ी पूंजी को आकर्षित करने पर जोर दिया. सैकड़ों एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये, लेकिन कोई भी धरातल पर नहीं उतर पाया. यह कहना कि माओवादी समस्या के कारण झारखंड का समुचित विकास नहीं हो पाया, सही नहीं है. माओवादी समस्या छत्तीसगढ़ में भी है. लेकिन सरकार इस समस्या से कैसे निबटती है, यह मायने रखता है. झारखंड में कमजोर नेतृत्व के कारण गवर्नेस का स्तर काफी खराब हो चुका है. खराब गवर्नेस के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ आम लोगों को नहीं मिल पा रहा है. माओवाद और खराब गवर्नेस के कारण आज झारखंड विकास के मामले में काफी पिछड़ चुका है, जबकि झारखंड अपने संसाधनों के बल पर देश का अव्वल राज्य बनने की क्षमता रखता है. लेकिन वहां संसाधनों का प्रयोग विकास में कम राजनेताओं के स्वार्थो को पूरा करने में हुआ.

आज झारखंड में राजनीतिक अदूरदर्शिता का खामियाजा वहां के गरीब लोगों को उठाना पड़ रहा है. आर्थिक गतिविधियों में ठहराव के कारण वहां के लोग रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर पलायन करने को मजबूर हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से लोग वंचित हैं. आदिवासियों की स्थिति बेहतर होने के बजाय बदतर हो गयी है. जबकि वहां उद्योग के साथ ही कृषि क्षेत्र के विकास की अपार संभावनाएं है. कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों का विकास कर ग्रामीण क्षेत्र की तसवीर बदली जा सकती है. उम्मीद है कि आनेवाले चुनाव में वहां की जनता एक स्थायी और मजबूत सरकार का चयन करेगी और जिन उम्मीदों के आधार पर झारखंड का गठन हुआ था, उसे पूरा करने की दिशा में नयी सरकार सार्थक पहल करेगी. झारखंड को एक मजबूत और दूरदर्शी नेतृत्व की जरूरत है. आर्थिक विकास से ही सामाजिक विकास को गति मिलेगी और झारखंड एक सशक्त राज्य के तौर पर उभरने में सफल होगा.

(आलेख बातचीत पर आधारित)

सुमिता काले

अर्थशास्त्री

(इंडिकस एनालिटिक्स)

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