दक्षा वैदकर
मेरे घर और ऑफिस के रास्ते के बीच एक बंगला आता है. पिछले कुछ दिनों से उसमें दीवाली की वजह से कुछ ज्यादा ही काम हो रहा है. कभी मजदूर बाउंड्री वॉल पेंट करते दिखते हैं, तो कभी दरवाजों को कलर करते नजर आते हैं. ऐसा लगता है मानो उस घर का हर सदस्य चाहता है कि उसका घर दीवाली के दिन सबसे ज्यादा खूबसूरत दिखे, इसलिए वे शॉपिंग भी खूब कर रहे हैं. दरवाजों पर तोरण लगा रहे हैं. आंगन में आकाश कैंडिल भी लगा रहे हैं.
उस घर को देख कर कोई भी यही कहेगा कि वाह, इन्होंने घर को कितना सुंदर सजाया है. लेकिन आपको यह जान कर दुख होगा कि वह परिवार अपने घर से निकलने वाला सारा फालतू सामान और कचरा घर के पास खाली पड़े प्लॉट में ही फेंक देता है. कुछ सामान तो घर के सदस्य इतनी दूर से फेंकते हैं कि वह सड़कों पर बिखर जाता है. यहां जमा हुई गंदगी की वजह से मवेशी भी वहां आने लगे हैं. ढेरों मक्खियां वहां हैं. लोग वहां से गुजरते वक्त नाक पर रूमाल रख कर जाते हैं. लेकिन उस परिवार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. उनका मकसद तो केवल अपना घर साफ करना है.
आपको भी अपने आसपास ऐसे कई लोग दिख जायेंगे, जो रोजाना ऐसा करते हैं. हो सकता है कि आप खुद भी यही गलती कर रहे हों. अगर ऐसा है, तो इसे तुरंत रोकें. इस दीवाली कसम खायें कि आप न ही खुद घर का कचरा सड़क पर डालेंगे और न ही दूसरों को ऐसा करने देंगे. दोस्तों, अपने शहर को भी घर की ही तरफ साफ-सुथरा रखना हमारी जिम्मेवारी है.
जब हम शॉपिंग करने के लिए इतनी दूर चल कर जा सकते हैं, खाना खाने के लिए रेस्टोरेंट तक जा सकते हैं, तो फिर कचरा फेंकने के लिए गली के एक कोने में रखे डस्टबिन तक क्यों नहीं जा पाते? ढेर सारा कचरा सड़क पर देख कर हम सोचते हैं, ‘यार, कितना गंदा शहर है. जहां देखो, वहां कचरा और बदबू है.’ दूसरी तरफ हम सोचते हैं कि इतने सारे कचरे में मैंने अगर एक और मिला दिया, तो इससे क्या हो जायेगा? यही मानसिकता हमें बदलनी पड़ेगी.