शिक्षा और शिक्षकों को लेकर बिहार आजकल चर्चा में है जहां फ़र्ज़ी प्रमाणपत्रों का सहारा लेकर शिक्षक बनने के कई मामले सामने आ रहे हैं.
राज्य में जब प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की बड़े पैमाने पर भर्ती शुरू हुई तब कई लोगों को लगा कि इससे राज्य में शिक्षा का स्तर बेहतर होगा. लेकिन क्या वाक़ई ऐसा हुआ?
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बिहार में साल 2003 में अनुबंधित शिक्षकों की भर्ती के लिए नियुक्ति के नियमों में ढील दी गई और कोई प्रतियोगी परीक्षा नहीं ली गई.
जो लोग शिक्षक बनना चाहते थे, उन्हें अपने शैक्षणिक प्रमाणपत्रों को सिर्फ़ सत्यापित कराना था.
तब कई लोग फ़र्ज़ी प्रमाणपत्रों के सहारे नौकरी पाने में कामयाब हो गए थे.
ऐसे लोगों की संख्या 20,000 से अधिक बताई जा रही है जिनमें से 779 को जांच के बाद बर्ख़ास्त कर दिया गया है.
शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी राम शरणागत ने बीबीसी को बताया कि उन्हें 52,000 शिक्षकों के ख़िलाफ़ शिकायतें मिली हैं.
वहीं राज्य के शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल का कहना है, ”हम पूरी पड़ताल करेंगे और उनकी नौकरी जाएगी जिन्होंने फ़र्ज़ी प्रमाणपत्र दिए हैं.”
बढ़ता भ्रष्टाचार
बिहार में यह अपनी तरह का पहला मामला नहीं है. दिसंबर 2008 में भी लगभग 15,000 शिक्षकों को फ़र्ज़ी प्रमाणपत्रों की वजह से बर्ख़ास्त किया गया था.
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राज्य में शिक्षा से जुड़ी और भी अड़चने हैं. जैसे राज्य में 60,000 से अधिक प्राथमिक स्कूलों में कोई पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक नहीं है.
पिछले ही महीने कैमूर ज़िले में 50 से अधिक प्रधानाध्यापकों को निलंबित किया गया है क्योंकि उन्हें सरकारी धन के दुरुपयोग का दोषी पाया गया है.
बीते साल 10,000 से अधिक शिक्षकों को बर्ख़ास्त किया गया था क्योंकि वह एक अनिवार्य परीक्षा पास नहीं कर पाए थे.
परीक्षा में सवाल कुछ ऐसे थे – भारत के राष्ट्रपति का क्या नाम है, सूर्य के सबसे नज़दीक कौन सा ग्रह है?
आंकड़े यह भी बताते हैं कि राज्य में लगभग 2800 प्राथमिक स्कूलों में एक भी क्लासरूम नहीं है.
औसत से भी कम साक्षरता दर
भारत की औसत साक्षरता दर 74 प्रतिशत है. वहीं बिहार की साक्षरता दर 63 प्रतिशत है.
राज्य में औसतन 63 छात्रों पर केवल एक शिक्षक है.
जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 40 है यानी प्रत्येक 40 छात्रों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक होना ही चाहिए.
अनुबंधति शिक्षकों के एक संगठन के प्रमुख पूरन कुमार का कहना है कि बिहार में 85,000 शिक्षकों को मार्च से वेतन नहीं मिला है.
वह कहते हैं, ”फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के लिए आप किसी को चार-पांच साल काम करने के बाद बर्ख़ास्त कैसे कर सकते हैं.”
जगजीवन राम सामाजिक शोध एवं संसदीय अध्ययन संस्थान के निदेशक श्रीकांत कहते हैं, ”शिक्षकों को उनकी प्रतिभा और शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की अच्छे से जांच-पड़ताल के बाद ही नियुक्त करना चाहिए था.”
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