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अपने दम पर चुनाव सुधार का करिश्मा

।। रेहान फजल ।। भारतीय अफसरशाही-12 : टीएन शेषन 90 के दशक का सबसे चर्चित नाम पिछले बीस सालों में टीएन शेषन से ज्यादा नाम शायद ही किसी नौकरशाह ने कमाया है. 90 के दशक में तो भारत में एक मजाक प्रचलित था कि भारतीय राजनेता सिर्फ दो चीजों से डरते हैं. एक खुदा और […]

।। रेहान फजल ।।

भारतीय अफसरशाही-12 : टीएन शेषन 90 के दशक का सबसे चर्चित नाम

पिछले बीस सालों में टीएन शेषन से ज्यादा नाम शायद ही किसी नौकरशाह ने कमाया है. 90 के दशक में तो भारत में एक मजाक प्रचलित था कि भारतीय राजनेता सिर्फ दो चीजों से डरते हैं. एक खुदा और दूसरे टीएन शेषन से और जरूरी नहीं कि उसी क्रम में! शेषन ने भारतीय नौकरशाही की कई अवधारणाओं को बदल डाला. इस श्रृंखला में आज पेश है यह अंतिम कड़ी.

शेषन के आने से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त एक आज्ञाकारी नौकरशाह होता था, जो वही करता था जो उस समय की सरकार चाहती थी. शेषन भी एक अच्छे प्रबंधक की छवि के साथ भारतीय अफसरशाही के सर्वोच्च पद कैबिनेट सचिव तक पहुंचे थे. उनकी प्रसिद्धि का कारण ही यही था कि उन्होंने जिस मंत्रालय में काम किया उस मंत्री की छवि अपने आप ही सुधर गयी.

लेकिन 1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद इन्हीं शेषन ने अपने मंत्रियों से मुंह फेर लिया. बल्किउन्होंने बाकायदा एलान किया, ‘आई ईट पॉलिटीशियंस फॉर ब्रेक फास्ट.’ उन्होंने न सिर्फ इसका एलान किया बल्किइसको कर भी दिखाया. तभी तो उनका दूसरा नाम रखा गया, ‘अल्सेशियन.’

चुनाव सुधार का काम : 1992 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी जिला मजिस्ट्रेटों, चोटी के पुलिस अधिकारियों और करीब 280 चुनाव पर्यवेक्षकों को ये साफ कर दिया कि चुनाव की अवधि तक किसी भी गलती के लिए वो उनके प्रति जवाबदेह होंगे. एक रिटर्निग ऑफिसर ने तभी एक मजेदार टिप्पणी की थी, ‘हम एक दयाविहीन इनसान की दया पर निर्भर हैं.’

सिर्फ उत्तर प्रदेश में शेषन ने करीब 50,000 अपराधियों को ये विकल्प दिया कि या तो वो अग्रिम जमानत ले लें या अपने आप को पुलिस के हवाले कर दें. हिमाचल प्रदेश में चुनाव के दिन पंजाब के मंत्रियों के 18 बंदूकधारियों को राज्य की सीमा पार करते हुए धर दबोचा गया. उत्तर प्रदेश और बिहार सीमा पर तैनात नगालैंड पुलिस ने बिहार के विधायक पप्पू यादव को सीमा नहीं पार करने दी. शेषन के सबसे हाई प्रोफाइल शिकार थे हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद.

चुनाव आयोग द्वारा सतना का चुनाव स्थगित करने के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. गुलशेर अहमद पर आरोप था कि उन्होंने राज्यपाल पद पर रहते हुए अपने पुत्र के पक्ष में सतना चुनाव क्षेत्र में चुनाव प्रचार किया था. उसी तरह राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत को भी शेषन का कोपभाजन बनना पड़ा था, जब उन्होंने एक बिहारी अफसर को पुलिस का महानिदेशक बनाने की कोशिश की. उसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश में पूर्व खाद्य राज्य मंत्री कल्पनाथ राय को चुनाव प्रचार बंद हो जाने के बाद अपने भतीजे के लिए चुनाव प्रचार करते हुए पकड़ा गया. जिला मजिस्ट्रेट ने उनके भाषण को बीच में रोकते हुए उन्हें चेतावनी दी कि अगर उन्होंने भाषण देना जारी रखा तो चुनाव आयोग को चुनाव रद्द करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी.

संतोष के लिए लिखी आत्मकथा : चुनाव आयोग में उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद मसूरी की लाल बहादुर शास्त्री अकादमी ने उन्हें आइएएस अधिकारियों को भाषण देने के लिए बुलाया. शेषन का पहला वाक्य था, ‘आपसे ज्यादा तो एक पान वाला कमाता है.’ उनकी साफगोई ने ये सुनिश्चित कर दिया कि उन्हें इस तरह का निमंत्रण फिर कभी न भेजा जाये. शेषन अपनी आत्मकथा लिख चुके हैं लेकिन वो इसे छपवाने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि उनका मानना है कि इससे कई लोगों को तकलीफ होगी. उनका कहना है, ‘मैंने ये आत्मकथा सिर्फ अपने संतोष के लिए लिखी है.’ शेषन 1955 बैच के आइएएस टॉपर हैं.

भारतीय नौकरशाही के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के बावजूद वो चेन्नई में यातायात आयुक्त के रूप में बिताये गये दो सालों को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय मानते हैं. उस पोस्टिंग के दौरान 3000 बसें और 40,000 हजार कर्मचारी उनके नियंत्रण में थे. एक बार एक ड्राइवर ने शेषन से पूछा कि अगर आप बस के इंजन को नहीं समझते और ये नहीं जानते कि बस को ड्राइव कैसे किया जाता है, तो आप ड्राइवरों की समस्याओं को कैसे समझ पायेंगे. शेषन ने इसको एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने न सिर्फ बस की ड्राइविंग सीखी बल्किबस वर्कशॉप में भी काफी समय बिताया. उनका कहना है, ‘मैं इंजनों को बस से निकाल कर उनमें दोबारा फिट कर सकता था.’ एक बार उन्होंने बीच सड़क पर ड्राइवर को रोक कर स्टेयरिंग संभाल ली और यात्रियों से भरी बस को 80 किलोमीटर तक चलाया.

चुनाव में पहचान-पत्र : यह शेषन का ही बूता था कि उन्होंने चुनाव में पहचान-पत्र का इस्तेमाल आवश्यक कर दिया. नेताओं ने उसका यह कह कर विरोध किया कि ये भारत जैसे देश के लिए बहुत खर्चीली चीज है. शेषन का जवाब था कि अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाये गये तो 1 जनवरी 1995 के बाद भारत में कोई चुनाव नहीं कराये जायेंगे. कई चुनावों को सिर्फ इसी वजह से स्थगित किया गया क्योंकि उस राज्य में वोटर पहचानपत्र तैयार नहीं थे. उनकी एक और उपलब्धि थी, उम्मीदवारों के चुनाव खर्च को कम करना. उनसे एक बार एक पत्रकार ने पूछा था, ‘आप हर समय कोड़े का इस्तेमाल क्यों करना चाहते हैं?’ शेषन का जवाब था, ‘मैं वही कर रहा हूं जो कानून मुझसे करवाना चाहता है. उससे न कम न ज्यादा. अगर आपको कानून नहीं पसंद तो उसे बदल दीजिए. लेकिन जब तक कानून है मैं उसको टूटने नहीं दूंगा.’

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