13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

लाखों की दवाएं मुफ्त बांटते हैं मेडिसिन बाबा

नयी दिल्ली : कभी आपने सोचा है कि इस्तेमाल के बाद बची जो दवा आप फेंक देते हैं वो किसी जरुरतमंद के काम आ सकती है. इसी सोच के साथ मेडिसिन बाबा लोगों से ऐसी दवाएं इकट्ठा करके गरीब मरीजों की मदद करते हैं. 77 वर्षीय ओंकारनाथ उर्फ मेडिसिन बाबा का दावा है कि वह […]

नयी दिल्ली : कभी आपने सोचा है कि इस्तेमाल के बाद बची जो दवा आप फेंक देते हैं वो किसी जरुरतमंद के काम आ सकती है. इसी सोच के साथ मेडिसिन बाबा लोगों से ऐसी दवाएं इकट्ठा करके गरीब मरीजों की मदद करते हैं.

77 वर्षीय ओंकारनाथ उर्फ मेडिसिन बाबा का दावा है कि वह हर महीने ढ़ाई से तीन लाख रुपये तक की दवाएं दान में दे देते हैं. वह लोगों के घरों से इस तरह की अनुपयोगी दवाएं इकट्ठी करते हैं जिनकी एक्सपायरी नहीं हुई है और जो किसी के काम आ सकती हैं. संस्थाएं और लोग उन्हें खरीदकर भी दवाएं तथा चिकित्सा से संबंधित अन्य सामग्री जैसे ऑक्सीजन सिलेंडर, बेड, व्हील चेयर आदि दान में देते हैं. वह दक्षिण पश्चिम दिल्ली के मंगलापुरी में किराये के कमरे से अपने इस अभियान को चला रहे हैं.

मेडिसिन बाबा ने बताया कि उन्हें इस तरह का मेडिसिन बैंक चलाने की प्रेरणा पांच साल पहले लक्ष्मीनगर में मेट्रो के एक निर्माणाधीन पुल के गिर जाने के हादसे के बाद मिली जिसमें दो मजदूरों की मौत हो गयी थी और कई लोग घायल हो गये थे. तब उन्होंने देखा और महसूस किया कि कई मरीज धन के अभाव में दवाएं नहीं खरीद पाये. साल 2004 की विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन 65 करोड़ भारतीयों को जरुरी दवाएं उपलब्ध नहीं हो पातीं.

हालांकि ओंकार नाथ बताते हैं कि इस काम में तकनीकी और कानूनी पेचदगी भी है क्योंकि बिना डॉक्टरी परामर्श के दवाएं सीधे मरीज को नहीं दी जा सकतीं. इस पेचीदगी को दूर करने के लिए वह कुछ अस्पतालों और संस्थाओं के माध्यम से गरीब मरीजों को दवाएं देते हैं जिस काम में डॉक्टरों का सीधा सहयोग होता है.

मेडिसिन बाबा ने बताया कि वह सरकार के कुछ मंत्रियों से इस तरह की अवधारणा को कानून के दायरे में लाकर और भी मेडिसिन बैंक खोलने की योजना पर काम करने की मांग कर चुके हैं.

वह आरएमएल अस्पताल, एम्स, दीनदयाल अस्पताल, लेडी हार्डिंग आदि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के पर्चे में लिखी दवाएं डॉक्टरों को ही दिखाकर जरुरतमंदों को उपलब्ध कराते हैं. अहिंसा फाउंडेशन के सहयोग से काम कर रहे ओंकार नाथ कुछ संस्थाओं और एनजीओ को भी दवाएं दान देते हैं.

खुद करीब 10 साल की उम्र से विकलांगता ङोल रहे ओंकार नाथ हर रोज 5 से 7 किलोमीटर पैदल चलते हैं. लाल या नारंगी कुर्ता पजामा, जिस पर उनका पूरा परिचय लिखा मिल जाएगा, पहने हुए मेडिसिन बाबा दिल्ली के कई इलाकों में आज भी चिल्ला-चिल्लाकर दवाएं इकट्ठी करते हैं. उनके मुताबिक दवाएं बेचने के आरोप भी लगते रहे हैं लेकिन वह अपना काम जारी रखते हैं.

बची दवाइयां दान में, ना कि कूड़ेदान में’ के ध्येय वाक्य के साथ काम कर रहे ओंकार नाथ ने कहा, सोचा था कि आसान काम है लेकिन ऐसा नहीं है. बहुत मुश्किल काम है लेकिन मैं रका नहीं बल्कि काम को और बढ़ा रहा हूं. एक ब्लड बैंक में मेडिकल सहायक के तौर पर काम कर चुके ओंकारनाथ बताते हैं कि पूरे भारत से और कई दूसरे देशों से भी इस परोपकार के काम में लोग उनसे संपर्क करते रहते हैं और दवाएं भी भेजते हैं.

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में कुछ महीने पहले आई आपदा के बाद राहत कार्यों के तहत उन्होंने खुद वहां के कुछ क्षेत्रों में दवायें पहुंचाई और आगे भी उस राज्य में 2-3 साल तक दवाएं पहुंचाना जारी रखेंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें