जमुई : सरकार के द्वारा लोगों को बेहतर स्वास्थ्य मुहैया कराने में सबसे जरूरी दवाई के वितरण को लेकर सरकारी एवं निजी स्तर पर पक्की व्यवस्था करने का दावा किया जा रहा है, लेकिन लोगों की माने तो वर्तमान में यह व्यवस्था खोखला साबित हो कर रह गया है. जानकारी के अनुसार सदर अस्पताल के ओपीडी एवं आपातकालीन कक्ष में करीब 100 से अधिक प्रकार की दवाई का जिक्र किया गया है.
इसे लेकर अस्पताल प्रबंधन के द्वारा अलग अलग बोर्ड भी लगाया गया है, लेकिन वर्तमान में अस्पताल में आवश्यक दवाओं में से बुखार एवं दर्द की दवा पारासिटामोल एवं कैलशियम की दवा बीते कई दिनों से नहीं है. जिससे लोगों की परेशानी बढ़ गयी है.
निजी दवा दुकानों में रहती है भीड़ : लोगों ने बताया कि गरीब तबके के मरीज सरकारी अस्पताल में इलाज कराने आते हैं. लेकिन यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगता है. चिकित्सक पर्ची के छह में से चार दवा बाहर से लेने की सलाह देते हैं.
तो मरीज सोचता है कि इससे तो बेहतर निजी क्लिनिक में ही दिखाना अच्छा रहता. कम से कम भाग दौड़ से तो बच जाते. दवा वितरण काउंटर में कार्यरत कर्मी ने बताया कि पारासिटामोल एवं कैलशियम सहित अन्य आवश्यक दवा बीते कई दिनों से नहीं है. हालांकि इसे लेकर विभाग को जानकारी दिया गया है.
विभागीय मिलीभगत से फल फूल रहा है निजी दवा दुकान का धंधा : सदर अस्पताल के आसपास दर्जनों दवा दुकान है. जहां हमेशा लोगों की भीड़ रहती है. लोग कहते हैं कि दवा दुकानदार अस्पताल के चिकित्सक एवं अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता से मिले हैं. जिसे लेकर उनके द्वारा निजी दवा दुकान की दवा लिखी जाती है. जब मरीज चिकित्सक से बेहतर इलाज को लेकर अच्छी प्रकार की दवा लिखने को कहते हैं.
तो अक्सर चिकित्सक के द्वारा निजी दवा दुकान की दवा लिखी जाती है. जिससे परिजन को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. लोगों ने बताया कि ऐसे दवा दुकानदार सरकारी नियमों को ताक पर रख कर अपना काम करते हैं. जिससे सरकार को भी आर्थिक नुकसान हो रहा है.
500 दवा दुकान पंजीकृत
स्वास्थ्य विभाग के औषधि नियंत्रण प्रशासन की रिपोर्ट पर गौर करें तो जिले के करीब 18 लाख की आबादी को जीवन रक्षक दवा मुहैया कराने में मात्र साढ़े 500 सौ दवा दुकान ही पंजीकृत हैं. जबकि इनकी संख्या हजार से भी ऊपर की है. जिला औषधि नियंत्रक केके शर्मा ने बताया कि खुदरा एवं थोक दवा के बिक्री को लेकर विभाग के अलग-अलग नियम है.
डीआइओ श्री शर्मा ने बताया सर्वप्रथम खुदरा बिक्री को लेकर दुकानदार को दुकान के अलावा अपना आवासीय प्रमाण पत्र, मैट्रिक की शैक्षणिक योग्यता, चरित्र प्रमाण पत्र तथा एक फार्मासिस्ट के सभी आवश्यक प्रमाण पत्र विभाग को देना पड़ता है.
उन्होंने बताया कि दवा व्यवसाय जनहित कार्य से जुड़ा है. इसे लेकर औषधि प्रशासन की टीम कागजात सहित स्थल का भी जांच करता हैं. सही पाये जाने पर ही उन्हें लाइसेंस दिया जा रहा है. औषधि नियंत्रक ने बताया कि विभाग के द्वारा समय-समय पर जिले में चल रहे दवा दुकानों का स्थलीय निरीक्षण भी किया जाता है. दोषी पाये जाने पर कार्रवाई भी किया जा रहा है.
हालांकि इसका ब्योरा देने से उन्होंने इंकार किया. लोगों ने बताया कि अस्पताल के बेहतर व्यवस्था को लेकर कई बार जिले सहित प्रमंडल एवं राज्य स्तर के पदाधिकारियों का भी आगमन हुआ है. साथ ही कई राजनेता भी अस्पताल का जायजा ले चुके हैं. लेकिन अब तक व्यवस्था के नाम पर जो सुधार है. वह सबके सामने है.
कहते हैं अस्पताल अधीक्षक
इस बाबत सदर अस्पताल अधीक्षक डा सुरेंद्र प्रसाद सिंह बताते हैं कि अस्पताल में दवा का भंडारण सिविल सर्जन स्तर से होता है. उन्होंने बताया कि दवा की कमी एवं अन्य जरूरी बातें की जानकारी उन्हें दे दिया गया है.