सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐसी याचिका पर सुनवाई करने की हामी भरी है जो कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों के साथ काम कर रहे जवानों को पत्थरबाज़ों के हमले से बचाने पर आधारित है.
याचिका में सवाल उठाया गया है कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने आख़िर क्यों पत्थर फेंकने वाले युवाओं के ख़िलाफ़ दर्ज 9000 एफ़आईआर को वापस लिया है.
आख़िर क्या है मामला?
सीआरपीएफ़ के पूर्व नायक सूबेदार अनुज मिश्रा की बेटी काजल मिश्रा और सैन्य अधिकारी लेफ़्टिनेंट कर्नल केदार गोखले की बेटी प्रीति गोखले ने 37 पेज लंबी याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी.
इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से ये दरख्वास्त की गई थी कि वह केंद्र सरकार समेत दूसरे सभी पक्षों को वे दिशानिर्देश जारी करें जिससे जम्मू-कश्मीर में अराजक तत्वों की गतिविधियों से अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाहन करते हुए सशस्त्र सुरक्षाबलों के मानव अधिकारों का हनन न हो.
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई समेत जस्टिस संजीव खन्ना ने इस मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर सरकार और एनएचआरसी को नोटिस जारी करते हुए इस याचिका पर विस्तृत टिप्पणी करने को कहा है.
37 पेज लंबी इस याचिका में सुरक्षाकर्मियों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले सुरक्षा के अधिकार को सुनिश्चिचत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई है.
प्रीति गोखले ने सुप्रीम कोर्ट को शुक्रिया करते हुए कहा, "मैं बहुत खुश हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी याचिका स्वीकार कर ली है. मेरी सुप्रीम कोर्ट से बस यही प्रार्थना है कि वह स्टोन पेल्टिंग मुद्दे पर दिशानिर्देश जारी करे."
वहीं, काजल मिश्रा ने कहा है, "डिफ़ेंस सेक्टर के लोग एक बेहद ही ख़तरनाक जगह पर अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं. उन्हें पत्थरबाज़ों से बचाया जाना चाहिए. वे देश के सभी लोगों के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कर रहे हैं. मैं खुश हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग पक्षों को नोटिस जारी किया और उनसे प्रतिक्रिया मांगी है."
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