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एकादशी पर ना करें ये काम
पापांकुशा एकादशी तिथि का व्रत रख रहे हैं या परिवार में कोई रह रहा है तो दशमी तिथि से ही चावल और तामसिक भोजन से दूरी बनाकर रखनी चाहिए. दशमी पर सात तरह के अनाज, इनमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन सातों अनाजों की पूजा एकादशी के दिन की जाती है. पापांकुशा एकादशी पर ईश्वर का भजन और स्मरण रखने का विधान है. व्रत करने वालों को क्रोध, अहंकार, झूठ, फरेब आदि चीजों से दूर रहना चाहिए. साथ ही इस दिन सोना, तिल, गाय, अन्न, जल आदि चीजों का दान करना बहुत शुभ माना गया है.
पापांकुशा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 05 अक्टूबर, दोपहर 12 बजे से शुरू होगी, जो अगले दिन 06 अक्टूबर, गुरुवार को सुबह 09 बजकर 40 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार, पापांकुशा एकादशी व्रत 06 अक्टूबर को रखा जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की होगी और उपवास रखा जाएगा.
पापांकुशा एकादशी का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि पापांकुशा एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति का कल्याण होता है. जीवन में धन-दौलत, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. एकादशी का व्रत भगवान श्री हरि को समर्पित है. बता दें कि पापांकुशा एकादशी का व्रत कठोर तपस्या के समान है. इसका व्रत रखने से व्यक्ति कतो मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पापांकुशा एकादशी व्रत पूजा विधि
एकदाशी तिथि को प्रातः उठकर स्नानादि करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें. फिर कलश स्थापना करके उसके पास में आसन पर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद धूप-दीप और फल, फूल आदि से भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें.एकदाशी व्रत का पारण हमेशा अगले दिन द्वादशी तिथि को किया जाता है. द्वादशी तिथि को प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजन करें. फिर सात्विक भोजन बनाकर किसी ब्राह्मण को करवाएं और दान दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें. इसके बाद शुभ मुहूर्त में आप भी व्रत का पारण करें.
पापाकुंशा एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था. उसने अपनी सारी जिंदगी, हिंसा,लूट-पाट, मद्यपान और झूठे भाषणों में व्यतीत कर दी. जब उसके जीवन का अंतिम समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने की आज्ञा दी. यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है.
मृत्यु भय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा. महर्षि ने दया दिखाकर उससे पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने को कहा. इस प्रकार पापाकुंशा एकादशी का व्रत-पूजन करने से क्रूर बहेलिया को भगवान की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति हो गई.
पापाकुंशा एकादशी का महत्व
महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापाकुंशा एकादशी का महत्व बताया. भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है. इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए. इस दिन सिर्फ फलाहार ही किया जाता है. इससे शरीर स्वस्थ व मन प्रफुल्लित रहता है.
पापाकुंशा एकादशी व्रत की पूजा विधि
इस व्रत के प्रभाव से अनेकों अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है. इसलिए पापाकुंशा एकादशी व्रत का बहुत महत्व है. इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
1. इस व्रत के नियमों का पालन एक दिन पूर्व यानि दशमी तिथि से ही करना चाहिए. दशमी पर सात तरह के अनाज, इनमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन सातों धान्य की पूजा एकादशी के दिन की जाती है.
2. एकादशी तिथि पर प्रात:काल उठकर स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
3. संकल्प लेने के पश्चात घट स्थापना करनी चाहिए और कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखकर पूजा करनी चाहिए. इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए.
4. व्रत के अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन और अन्न का दान करने के बाद व्रत खोलें.
पापांकुशा एकादशी के व्रत से होती है स्वर्ग की प्राप्ति
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि यह एकादशी पापों का नाश करती है इसलिए इसको पापांकुशा एकादशी कहा जाता है. जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करता है वह सभी सुखों को भोगकर स्वर्ग की प्राप्ति करता है. मानव को बरसों तक कठोर तप करने से जो फल मिलता है वह श्रीहरी को इस दिन नमस्कार करने से मिल जाता है. जो मानव अपने जीवन में अज्ञानतावश अनेकों पापा करते हैं, परन्तु साथ ही भगवान विष्णु की वंदना करते हैं, वो मृत्यु के बाद नरक नहीं जाते हैं. श्रीहरी की शरणागत होने वाले को यम का भय नहीं रहता है और उसको यम की यातना भी भोगना नहीं पड़ती है.