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जानें पूजा सामग्री
सावन मास की सोमवार को भगवान शिव की पूजा के लिए फूल, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री शामिल करें.
चौघड़िया
प्रातः:06:00 से 07:30 अमृत
प्रात:07:30 से 09:00 तक काल
प्रातः 09.00 से 10.30 तक शुभ
प्रातः10:30 से 12:00 रोग
दोपहरः 01.30 से 03.00 तक उद्वेग
शामः 03.00 से 04.30 तक चर
शामः 04.30 से 06.00 तक लाभ
ये बरतें सावधानियां
शिवजी की पूजा करते समय कुछ सावधानियों को बरतना जरूरी होता है. शिवजी की पूजा में केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. माना जाता है कि केतकी के फूल चढ़ाने से भगवान शिवजी नाराज हो जाते हैं. इसके अलावा, तुलसी को कभी भी भगवान शिवजी को अर्पित नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही शिवलिंग पर कभी भी नारियल का पानी नहीं चढ़ाना चाहिए.
इस दिन जल्दी उठकर स्नान करें.
मंदिर जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करें.
माता पार्वती और नंदी को भी गंगाजल या दूध चढ़ाएं.
पंचामृत से रुद्राभिषेक करें, बिल्व पत्र अर्पित करें.
शिवलिंग पर धतूरा, भांग, आलू, चंदन, चावल चढ़ाएं और सभी को तिलक लगाएं.
प्रसाद के रूप में भगवान शिव को घी शक्कर का भोग लगाएं.
धूप, दीप से गणेश जी की आरती करें.
आखिर में भगवान शिव की आरती करें और प्रसाद बांटें.
जानें सावन सोमवार का महत्व
सोमवार का दिन चन्द्र ग्रह का दिन होता है और चन्द्रमा के नियंत्रक भगवान शिव हैं. इस दिन पूजा करने से न केवल चन्द्रमा बल्कि भगवान शिव की कृपा भी मिल जाती है. कोई भी व्यक्ति जिसको स्वास्थ्य की समस्या हो, विवाह की मुश्किल हो या दरिद्रता छायी हो, अगर सावन के हर सोमवार को विधि पूर्वक भगवान शिव की आराधना करता है तो तमाम समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है.
इन बातों का रखें खास ख्याल
शंख भगवान विष्णु को बहुत ही प्रिय हैं, लेकिन शिव जी ने शंखचूर नामक असुर का वध किया था, इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है.
भगवान शिव को कनेर और कमल के अलावा लाल रंग के अन्य कोई फूल प्रिय नहीं हैं. शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध माना गया है.
शास्त्रों के अनुसार शिव जी को कुमकुम और रोली नहीं लगाई जाती है.
शिवजी की पूजा में हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है. हल्दी का उपयोग मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधन में किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी नहीं चढ़ाई जाती.
नारियल पानी से भगवान शिव का अभिषेक नहीं करना चाहिए, क्योंकि नारियल को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है. इसलिए सभी शुभ कार्य में नारियल का प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है. वहीं, भगवान शिव पर अर्पित होने के बाद नारियल पानी ग्रहण योग्य नहीं रह जाता है.
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
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दूसरी सोमवारी पर बन रहा बुधादित्य योग
सावन मास की दूसरी सोमवारी को शिव पूजन का विशेष महत्व रहेगा. हिंदू धर्म के अनुसार 27 नक्षत्र हैं. इसमें तीसरे नक्षत्र का नाम भगवान शिव के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय के नाम पर रखा गया है. इस नक्षत्र के स्वामी सूर्य और राशि के स्वामी शुक्र हैं. सोमवार को इन सब के बीच सूर्य कर्क राशि में बुध ग्रह के साथ बुधादित्य योग बना रहे हैं. वहीं, शुक्र सिंह राशि में मंगल के साथ युति बना रहे हैं, जो अनंत फल देने वाला हो जाता है. इसलिए इस सोमवार का व्रत और शिव पूजन विशेष महत्व रहेगा.
सावन सोमवार का महत्व
सावन सोमवार का बहुत अधिक महत्व होता है. सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है. सोमवार का व्रत करने से भगवान शंकर की विशेष कृपा मिलती है. सावन का महीना भगवान शिव को अतिप्रिय होता है, जिस वजह से इस माह के सोमवार का महत्व सबसे अधिक होता है.
साधना की कर सकते हैं शुरुआत
इस दिन सिर पर भस्म का तिलक लगाएं. सोमवार के दिन किसी साधना की शुरुआत करना चाहिए. यदि कुंडली में चंद्र ग्रह शनि के साथ है तो यह विष योग माना जाता है. उपाय के साथ ही सावन सोमवार व्रत रखना चाहिए. यदि चंद्र छठे, सातवें और आठवें भाव में हो तो भी उपाय के साथ ही सावन सोमवार व्रत रखना चाहिए.
भगवान शिव की पूजा की सामग्री
सावन मास की सोमवार को भगवान शिव की पूजा के लिए फूल, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री शामिल करें.
सावन सोमवार व्रत पूजा विधि
सुबह जल्दी उठें और स्नान कर साफ सुथरे कपड़े धारण करें.
पूजा स्थल को साफ कर वेदी स्थापित करें.
इसके बाद व्रत का संकल्प लें
सुबह शाम भगवान शिव की पूजा करें
तिल के तेल का दीपक जलाएं और भगवान शिव को फूल अर्पित करें.
भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें.
शनि चालीसा का पाठ करें.
शिवलिंग का जलाभिषेक करें और सुपारी, पंच अमृत, नारियल एवं बेल की पत्तियां चढ़ाएं.
सावन व्रत कथा का पाठ जरूर करें.
शिव की आरती उतारें और भोग लगाएं.
पूजा समाप्ति के बाद व्रत खोलें.
सावन की दूसरी सोमवारी पर खास संयोग
सावन मास की दूसरी सोमवारी कृतिका नक्षत्र में प्रारंभ हो रही है और इस दिन कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि है. इस दिन बेहद खास संयोग बन रहा है. सोमवार के देवता चंद्र, कृत्तिका नक्षत्र का स्वामी सूर्य व राशि शुक्र है और नवमी तिथि की देवी हैं माता दुर्गा. इस बार का सोमवार शिवजी के साथ माता पार्वती की पूजा के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस दिन सूर्यपूजा का भी महत्व रहेगा.
जानें तिथि, ग्रह स्थिति और शुभ मुहूर्त
श्रावण कृष्ण पक्ष नवमी दिन 10 बजकर 11 मिनट के उपरांत दशमी तिथि हो जाएगी
श्री शुभ संवत-2078,शाके-1943, हिजरी सन-1442-43
सूर्योदय-05:25
सूर्यास्त-06:35
सूर्योदय कालीन नक्षत्र-कृतिका उपरांत रोहिणी, वृद्धि-योग, ग-करण
सूर्योदय कालीन ग्रह विचार-सूर्य-कर्क, चंद्रमा -वृष, मंगल-सिंह, बुध-कर्क, गुरु-कुंभ, शुक्र-सिंह, शनि-मकर, राहु-वृष, केतु-वृश्चिक
चौघड़िया
प्रातः:06:00 से 07:30 अमृत
प्रात:07:30 से 09:00 तक काल
प्रातः 09.00 से 10.30 तक शुभ
प्रातः10:30 से 12:00 रोग
दोपहरः 01.30 से 03.00 तक उद्वेग
शामः 03.00 से 04.30 तक चर
शामः 04.30 से 06.00 तक लाभ