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कार्तिक पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि: 30 नवंबर 2020
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 29 नवंबर 2020 को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 30 नवंबर 2020 को दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक
वाराणसी के राज घाट पर स्नान करते श्रद्धालु
झारखंड के पवित्र नदी में डूबकी लगाते श्रद्धालु
प्रयागराज में कार्तिक पूर्णिमा' पर आज गंगा नदी में प्रार्थना करने और पवित्र डुबकी लगाने के लिए भक्त त्रिवेणी संगम पर एकत्रित कर रहे है स्नान और दान
Prayagraj: Devotees gather at Triveni Sangam to offer prayers and take holy dip in river Ganga on 'Kartik Purnima' today. pic.twitter.com/nt30NtpxfA
— ANI UP (@ANINewsUP) November 30, 2020
कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर अयोध्या में सरयू नदी के तट पर राम की पैड़ी में 51,000 मिट्टी के दीपक प्रज्वलित किए गए
Ayodhya: 51,000 earthen lamps illuminated at Ram Ki Paidi on the banks of river Saryu as devotees celebrate Kartik Purnima
— ANI UP (@ANINewsUP) November 29, 2020
"I'm very happy to be part of this event. I'm fasting and praying to Lord Rama on this occasion," says a devotee pic.twitter.com/sT8PZYJuAJ
कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर अयोध्या में सरयू नदी के तट पर राम की पैड़ी में 51,000 मिट्टी के दीपक प्रज्वलित किए गएआज सभी देवी-देवता काशी में आते है दिवाली मनाने
आज कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि है. इस दिन का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धूल जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन देवता अपनी दिवाली कार्तिक पूर्णिमा की रात को ही मनाते हैं. इसलिए, यह सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान और दान को अधिक महत्व दिया जाता है
आज दीप दान करने का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप दान करने का विशेष महत्व है. देवताओं की दिवाली होने के कारण इस दिन देवताओं को दीप दान किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दीप दान करने पर जीवन में आने वाले परेशानियां दूर हो जाती है.
कार्तिक पूर्णिमा पर वाराणसी शहर के चेत सिंह घाट पर आयोजित लेजर शो
Varanasi: Laser show held at Chet Singh Ghat of the city on the occasion of Kartik Purnima pic.twitter.com/5T68KymXhL
— ANI UP (@ANINewsUP) November 29, 2020
कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि
शाम के समय लक्ष्मी नारायण जी की आरती करने के बाद तुलसी जी की आरती करें और साथ ही दीपदान भी करें. घर की चौखट पर दीपक जलाएं. कोशिश करें कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन किसी ब्राह्मण, गरीब या जरूरतमंद को भोजन करवाएं.
आज करें श्रीहरि की पूजा
कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रीहरि की उपासना करने की परंपरा है. ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रीहरि की सच्चे मन से पूजा-भक्ति करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है.
कार्तिक पूर्णिमा के मंत्र Kartik Purnima Mantra
ॐ सों सोमाय नम:।
ॐ विष्णवे नमः।
ॐ कार्तिकेय नमः।
ॐ वृंदाय नमः।
ॐ केशवाय नमः।
घी का दीपक जलाएं
गंगा/नदी में स्नान कर पूजापाठ और दान करने के बाद मंदिरों में घी का दिया जलाएं. ऐसा करने से देवता प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद देते हैं.
जानिए इस दिन का महत्व
इस दिन श्रीहरि की पूजा में तुलसी अर्पित करना लाभदायक होता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन घरों में तुलसी के पौधे के आगे दीपक जलाना और भगवान विष्णु की पूजा करने से लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है. कार्तिक मास आरोग्य प्रदान करने वाला, रोगविनाशक, सद्बुद्धि प्रदान करने वाला तथा मां लक्ष्मी की साधना के लिए सर्वोत्तम है.
ऐसे मिलेगी सुख-समृद्धि
गंगा/नदी में स्नान कर पूजापाठ और दान करने के बाद मंदिरों में घी का दिया जलाएं। ऐसा करने से देवता प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद देते हैं.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा करने से मिलेगा धन और वैभव
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूरी विधि और मन से भगवान की आराधना करने से घर में धन और वैभव बना रहता है. साथ ही मनुष्य को सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है. इस पवित्र दिन विधि विधान से पूजा-अर्चना करने पर जन्मपत्री के सभी ग्रहदोष दूर हो जाते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा (Tripuri Purnima) भी कहा जाता है.
चंद्र ग्रहण भी लगेगा
चंद्र ग्रहण सर्वार्थ सिद्धि योग और प्रवर्धमान योग में लगेगा. यह उपछाया चंद्र ग्रहण वर्ष का अंतिम चंद्रग्रहण होगा. किंतु भारत में यह ग्रहण दिखाई नहीं देगा. इसका प्रभाव देश पर नहीं पड़ेगा. सूतक भी नहीं लगेगा. समस्त धार्मिक मांगलिक कृत्य होंगे. मंदिरों के कपाट भी खुले रहेंगे.
तुलसी पूजा का भी है विधान
तुलसी की पूजा करें. तुलसी को मां लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है. कार्तिक पू्र्णिमा को ही तुलसी पृथ्वी पर वनस्पति के रूप में आई. इसलिए आज के दिन उनकी पूजा का विधान है। मान्यता है कि ऐसे करने वालों पर माता लक्ष्मी कृपा बरसाती हैं.
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा कहने का मुख्य कारण
कार्तिक पूर्णिमा को मनाने का कारण और मान्यता है कि त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस ने प्रयाग में एक लाख साल तक घोर तप किया जिससे ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे दीर्घायु का वरदान दिया. इससे त्रिपुरासुर में अहंकार आ गया और वह स्वर्ग के कामकाज में बाधा डालने लगा व देवताओं को आए दिन तंग करने लगा. इस पर सभी देवी देवताओं ने शिव जी से प्रार्थना की कि उन्हें त्रिपुरासुर से मुक्ति दिलाएं. इस पर भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर नामक राक्षस को मार डाला था. तभी से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा कहा जाने लगा.
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि: 30 नवंबर 2020
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 29 नवंबर 2020 को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 30 नवंबर 2020 को दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक
यहां जानें चंद्र ग्रहण की तिथि और समय
चंद्र ग्रहण कल यानि 30 नवंबर दिन सोमवार की दोपहर 1 बजकर 04 मिनट से शुरू होगा और शाम 5 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगा. चंद्र ग्रहण का परमग्रास दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर को होगा.
कार्तिक पूर्णिमा व्रत की पूजन विधि
पूर्णिमा के दिन सुबह किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है. स्नान के बाद राधा-कृष्ण का पूजन और दीपदान करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन गाय, हाथी, घोड़ा, रथ और घी का दान करने से संपत्ति बढ़ती है और भेड़ का दान करने से ग्रहयोग के कष्टों दूर होते हैं. कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने वाले अगर बैल का दान करें तो उन्हें शिव पद प्राप्त होता है. कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने वालों को इस दिन हवन जरूर करना चाहिए और किसी जरुरतमंद को भोजन कराना चाहिए.
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और दान करना दस यज्ञों के समान पुण्यकारी माना जाता है. शास्त्रों में इसे महापुनीत पर्व कहा गया है. कृतिका नक्षत्र पड़ जाने पर इसे महाकार्तिकी कहते हैं. कार्तिक पूर्णिमा अगर भरणी और रोहिणी नक्षत्र में होने से इसका महत्व और बढ़ जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली भी मनाई जाती है.
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि
पूर्णिमा तिथि आरंभ 29 नवंबर दिन रविवार की दोपहर 12 बजकर 47 मिनट पर
पूर्णिमा तिथि समाप्त 30 नवंबर दिन सोमवार की दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक
इस दिन भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार
पुराणों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर ही भगवान विष्णु ने धर्म, वेदों की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था.
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यहां जानें व्रत विधि
कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने से एक दिन पहले प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए. कार्तिक पूर्णिमा का व्रत फल, दूध और हल्के सात्विक भोजन के साथ किया जाता है. यदि आप बूढ़े, बीमार या गर्भवती हैं, तो आपको यह 'निर्जला' व्रत करने की सलाह नहीं दी जाती.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन करें दीप दान
कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप दान का भी विशेष महत्व है. देवताओं की दिवाली होने के कारण इस दिन देवताओं को दीप दान किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दीप दान करने पर जीवन में आने वाले परेशानियां दूर होती है.
कार्तिक पूर्णिमा 2020 तिथि
इस वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर को मनाई जाएगी. वहीं, इस दिन चद्र ग्रहण भी लग रहा है. पूर्णिमा तिथि 29 नवंबर की दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर 30 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी.
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरारी का अवतार लिया था और इस दिन को त्रिपुरासुर के नाम के एक असुर को मार दिया था. यही कारण है कि इस पूर्णिमा का एक नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है. इस प्रकार भगवान शिव ने इस दिन अत्याचार को समाप्त किया था. इसलिए, देवताओं ने राक्षसों पर भगवान शिव की विजय के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन दीपावली मनाई थी. कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की विजय के उपलक्ष्य में, काशी (वाराणसी) के पवित्र शहर में भक्त गंगा के घाटों पर तेल के दीपक जलाकर और अपने घरों को सजाकर देव दीपावली मनाते हैं.
देव दीपावली की पहली कथा
देव दीपावली की कथा महर्षि विश्वामित्र से जुड़ी है. मान्यता है कि एक बार विश्वामित्र जी ने देवताओं की सत्ता को चुनौती दे दी. उन्होंने अपने तप के बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया. यह देखकर देवता अचंभित रह गए. विश्वामित्र जी ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी. इस पर देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगे, जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा. उनको यह हार स्वीकार नहीं थी.
तब उन्होंने अपने तपोबल से उसे हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी. इससे देवता भयभीत हो गए. उन्होंने अपनी गलती की क्षमायाचना तथा विश्वामित्र को मनाने के लिए उनकी स्तुति प्रारंभ कर दी. अंतत: देवता सफल हुए और विश्वामित्र उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए. उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी. इससे सभी देवता प्रसन्न हुए और उस दिन उन्होंने दिवाली मनाई, जिसे देव दीपावली कहा गया.
News Posted by: Radheshyam Kushwaha