अक्षय कुमार की फ़िल्म ‘पैडमैन’ नौ फ़रवरी को रिलीज़ हो रही है.
फ़िल्म के रिलीज़ होने से पहले सैनिटरी पैड्स पर लगने वाली 12 फ़ीसदी जीएसटी का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है.
इसको कम करने की मांग अलग-अलग जगहों से दोबारा उठने लगी है.
सैनिटरी पैड पर जीएसटी से आपत्ति
एक मामला दिल्ली हाइकोर्ट में भी चल रहा है. जेएनयू की ज़रमीना इसरार ख़ान ने सैनिटरी नैपकिन पर 12 फ़ीसदी जीएसटी लगाने के फ़ैसले को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है.
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इसके आलावा चेंज डॉट ओआरजी पर कांग्रेस की लोकसभा सांसद सुष्मिता देव की तरफ से याचिका भी शुरू की गई है.
हालांकि, इस याचिका पर केन्द्रीय महिला एंव बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने प्रतिक्रिया देते हुए गेंद वित्त मंत्री के पाले में डाल दी थी.
उन्होंने चेंज डॉट ओआरजी की याचिका पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, "वित्त मंत्री जी इको फ्रेंडली और बायो डिग्रेडेबल नैपकिन पर 100 फ़ीसदी टैक्स छूट पर विचार कीजिए. ऐसा होने पर महिलाएं इको फ्रेंडली और बायो डिग्रेडेबल नैपकिन अपने आप ही चुनने लगेंगी."
कांग्रेस की लोकसभा सांसद सुष्मिता देव ने बीबीसी से बातचीत में कहा वो आज भी अपनी मांग पर कायम हैं. और उनके साथ 3 लाख़ से ज्यादा लोग हैं.
जीएसटी पर सरकार की दलील
लेकिन अब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस पर सफाई दी है.
एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सैनिटरी पैड पर 12 फ़ीसदी जीएसटी क्यों है, इससे पहले ये पता लगाने की ज़रूरत है कि पैड्स पर जीएसटी कम करने की मांग किसकी है.
सैनिटरी पैड्स पर जीएसटी कम करने की मुहिम को वित्त मंत्री महिला आंदोलन मानने को तैयार नहीं हैं.
उन्होंने आशांका जताई है कि इस आंदोलन के पीछे कुछ चाइनीज़ कंपनियों का हाथ है.
पूरे मामले को हम ऐसे समझ सकते हैं.
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भारतीय और चाइनीज़ कंपनियों में होड़
जीएसटी लागू होने से पहले हर उत्पाद पर टैक्स होता था. ये सीधे उत्पाद पर लगते थे, या उस उत्पाद में इस्तेमाल होने सामान पर लगता था जिसे एम्बेडेड टैक्स कहते थे.
जेटली का कहना है कि सैनिटरी पैड्स पर पहले टैक्स हुआ करता था साढ़े 13 फ़ीसदी का. जीएसटी काउंसिल ने सर्वसम्मति से उसे घटा कर 12 फ़ीसदी कर दिया.
लेकिन 12 फ़ीसदी जीएसटी के बाद भी सैनिटरी पैड्स बनाने वाली भारतीय कंपनियों को दाम उससे भी कम पड़ता है. वजह है पैड्स पर मिलने वाला इनपुट क्रेडिट.
इनपुट क्रेडिट का मतलब ये कि पैड्स में इस्तेमाल होने वाले एड्हेसिव, नेट या फिर दूसरे मटीरियल पर टैक्स पहले ही चुकाया जा चुका होता है.
ऐसे में भारतीय कंपनियों को सैनिटरी पैड्स पर टैक्स 3 से 4 फ़ीसदी ही लगता है.
वित्त मंत्री के मुताबिक गांव में जिन सेल्फ़ हेल्फ ग्रुप में सैनिटरी पैड्स बनाने का काम होता है, उनकी सालाना आय 20 लाख से कम होती है, ऐसे में उन पर कोई टैक्स नहीं लगता.
कितना सुरक्षित है सैनिटरी पैड का इस्तेमाल?
जेटली का कहना है कि मान लीजिए हम इस टैक्स को कम कर दें, तो भारतीय कंपनियों को 3-4 फ़ीसदी का लाभ मिल जाएगा.
लेकिन जितनी चाइनीज़ कंपनियां हैं और जिनको 12 फ़ीसदी कस्टम ड्यूटी के आलावा आईजीएसटी देना पड़ता है उनको ज़ीरो टैक्स देना पड़ेगा.
इसका मतलब है कि मेक इन इंडिया कैम्पेन के तहत जो भी भारतीय कंपनी सैनिटरी पैड्स बनाती है उनका ब्रांड एकदम समाप्त हो जाएगा.
ऐसा करने पर पूरे मार्केट में केवल चाइनीज़ कंपनियां छा जाएंगी.
इसलिए जब हम जीएसटी काउंसिल में सामान पर जीएसटी दर तय करते हैं तो सोशल मीडिया कैम्पेन देख कर नहीं करते.
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सरकार की दलील से कितने सहमत हैं लोग?
लेकिन वित्त मंत्री की इस दलील से कोई सहमत नहीं दिख रहा.
बीबीसी से बातचीत में सुष्मिता ने कहा कि इनपुट क्रेडिट के नाम पर सरकार लोगों को बेवकूफ़ बना रही है.
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में पैडवूमैन के नाम से मशहूर माया विश्वकर्मा का कहना है कि जिस इंडियन ब्रांड को बढ़ावा देने की बात जेटली जी कह रहे हैं वो है कहां?
उनके मुताबिक, "गांव में भी स्टे फ़्री जैसे ब्रांड ही बिकते हैं. महिलाएं उन्हीं को खरीदने को मजबूर हैं. भारतीय कंपनियां विदेशी कंपनियों के मुकाबले कहीं नहीं हैं."
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