रांची जिला प्रशासन ने अप्रैल 2011 में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाकर इस्लामनगर के 1100 से ज्यादा कच्चे-पक्के मकानों को जमींदोज कर दिया था. प्रशासन की इस कार्रवाई से बेघर हुए लोगों ने हाइकोर्ट की शरण ली. हाइकोर्ट ने आदेश दिया कि बेघरों हुए लोगों को उसी जमीन पर फ्लैट बनाकर उन्हें बसाया जाये.
सर्वे के बाद जिला प्रशासन ने 444 लाभुकों की सूची तैयार की, लेकिन इसमें भी खेल हो गया. जिनके घर टूटे, उनमें से ज्यादातर के नाम इस सूची में शामिल नहीं किये गये. वहीं, मात्र 291 लोगों के लिए ही फ्लैट बनाया जा रहा है, जो आज तक पूरा नहीं हुआ है. पढ़िये इस्लामनगर के बेघरों के दर्द की दूसरी किस्त…
वर्ष 2011 के अप्रैल का महीना था. अचानक सुबह-सुबह पुलिस घर में आ धमकी. पुलिसवाले बोले : घर खाली करो, इसे तोड़ा जाना है. हमने कहा : घर खाली करने के लिए थोड़ा समय दिया जाये, लेकिन पुलिसवाले बोले : पांच मिनट में खाली करो. बात करते-करते जेसीबी भी आ गया और सबसे पहला मकान मेरा ही तोड़ दिया. दो दिन अभियान चला.
उस दौरान पूरे इस्लामनगर के 1100 से ज्यादा कच्चे-पक्के मकान तोड़ दिये गये. हमलोग हाइकोर्ट गये. वहां से आदेश हुआ कि जिनके घर टूटे हैं, उन सभी को उसी जगह फ्लैट बनाकर दिया जाये. हमें लगा कि देर से ही सही, हमें आशियाना मिल जायेगा. यही सोचकर हम यहां पर तिरपाल खींचकर पिछले 11 साल से यहां जमे हुए हैं.
अब जाकर पता चला कि फ्लैट आवंटन के लिए रांची नगर निगम ने जिन 291 बेघरों की लिस्ट बनायी है, उसमें तो हमारा नाम ही नहीं है. सुनकर हमारे पैरों तले जमीन खिसक गयी. अब आप ही बताइए न बाबू… इस उम्र में हम अब कहां जायें…?
यह पीड़ा हाजरा खातून की है, जो आज भी इस्लामनगर में झोपड़ी बनाकर रह रही है. उसे उम्मीद है कि सरकार ने जिस तरह से उसका घर तोड़ा, एक न एक दिन उसे घर देगी. हाजरा कहती हैं : घर टूटने के बाद हम यहीं पर झोपड़ी बनाकर रहने लगे. एक साल बात पति का निधन हो गया. कुछ दिन बाद जवान बेटे की भी मौत हो गया. इस पर भी प्रशासन वालों की चालाकी देखिए, घर टूटनेवालों की लिस्ट में हमारा नाम ही नहीं डाला. कुछ ऐसी ही दास्तां शमां परवीन की भी है.
जब घर टूटा, तो हमसे कहा गया कि जिनके घर टूटे हैं, वे आवास लेने के लिए अपने सारे कागजात के साथ जिला प्रशासन के पास आवेदन दें. हमने दर्जनों बार जिला प्रशासन और नगर निगम के पास अपने कागजात जमा किया. लेकिन, जब लाभुकों की सूची तैयार हुई, तो उसमें हमारा नाम ही नहीं था. अब बताइए हम कहां जायें. इस्लामनगर का हर बेघर शख्स ऐसी ही परेशानियों का सामना कर रहा है. नगर निगम ने बेघरों की जो सूची बनायी, उसमें से अधिकतर ऐसे लोगों के नाम शामिल नहीं किये गये, जिनके घर अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान तोड़े गये थे.
अतिक्रमण हटाओ अभियान से प्रभावित 300 से अधिक परिवार आज भी इस्लामनगर में ही झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. उनमें उम्मीद बाकी है कि सरकार उनकी परेशानी समझेगी और जिनके नाम लाभुकों की सूची में शामिल नहीं किये गये हैं, उन्हें भी एक न एक दिन घर बनाकर देगी. ये लोग साफ कहते हैं : हम कहीं नहीं जानेवाले हैं. नगर निगम हमें घर बना कर दे.
अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान बेघर हुई इस्लामनगर की आबदा खातून का पीड़ा इससे भी बड़ी है. उन्होंने बताया कि जिस दिन घर टूटा, उसके छह दिन बाद ही बेटी का शादी थी. घर टूट जाने के कारण मलबे के बीच ही सड़क पर छोटा सा पंडाल बनाकर बेटी की शादी की. लेकिन, लाभुकों की सूची में उनका नाम नहीं है. यहीं रहनेवाली इशरत जहां कहती हैं : मैं दाई का काम करती हूं, पति रिक्शा चलाते हैं. इसी जगह पर पली-बढ़ी. मेरा भी घर टूटा, लेकिन लिस्ट में मेरे घर के किसी व्यक्ति का नाम ही नहीं है. अब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि लिस्ट बनाने में जिला प्रशासन और नगर निगम ने किस तरह की मनमानी की है.
सरकार और नगर निगम के स्तर से लाभुकों की जो लिस्ट बनायी गयी है, वह त्रुटिपूर्ण है. जब यहां 1100 लोगों के घर तोड़े गये, तो मात्र 291 फ्लैट किस आधार पर बनाये जा रहे हैं. सरकार से हमारी मांग है कि वह नये सिरे से यहां सर्वे कराये और जितने भी लोग छूट गये हैं, उन सभी को भी फ्लैट दिये जायें. यहां जमीन की कमी नहीं है. तीन एकड़ जमीन अब भी खाली है.
– नाजिमा रजा, पार्षद, वार्ड नंबर-16