पटना. बिहार भीषण ठंड की चपेट में है. प्रदेश के कई जिलों में शिमला से भी ज्यादा सर्दी पड़ रही है. शीतलहर और पाला की असर आम, लीची, आलू, सरसो, अरहर समेत अन्य रबी के फसल पर देखने को मिल रहा है. ठंड के कारण आम के पत्ते तेजी से गिर रहे है. वहीं आलू की फसल में झुलसा बीमारी फैल रही है. शीतलहर व ठंड के मौसम में दिन खुलते ही किसानों को आम के मंजर को मधुआ कीट से बचाने तथा अरहर, सरसो या अन्य पीले फूल वाले पौधों पर लाही का आक्रमण ज्यादा होता है. जिससे फसल की क्षति होती है. ऐसी स्थिति में किसान आम के बेहतर मंजर तथा सरसो, अरहर के बचाव के लिए इमोडा क्लोप्रीड 17.8 फीसदी एसएल या क्लोरीपाइरीफास नामक रसायन का छिड़काव करें. यदि इसमें किसान सतर्कता नहीं बरतते है तो, उन्हें भारी क्षति उठानी पड़ सकती है. जिला कृषि पदाधिकारी के अनुसार फरवरी माह में आम में मंजर आने का समय होता है. जबकि अरहर, सरसों में फूल लगने के साथ-साथ अब दाने भी पड़ने का समय आ गया है.
सारण जिल के कृषि पदाधिकारी श्यामबिहारी सिंह के अनुसार इमोडा क्लोप्रीड 17.8 फीसदी एसएल या क्लोरीपाइरीफास नामक रसायण का उपयोग किसान आसमान साफ होने पर ही करें. बारिश की स्थिति में उनके द्वारा किये गये छिड़काव से संबंधित रसायन बह जाते है. जिससे फायदा नहीं होता है. उन्होंने बताया कि पेड़ों की जड़ों पर मधुआ कीट आम में मंजर लगने से पूर्व चढ़ जाते है. जैसे ही आम मंजर लगती है तथा मंजर में दाने निकलते है. वैसे ही मधुआ कीट उनके रस को चूसकर बर्बाद कर देता है. ऐसी स्थिति में आम का मंजर लगने से पूर्व एकमिलीलीटर इमोडा क्लोप्रीड को तीन लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से मधुआ कीट का असर समाप्त हो जाता है. इसी प्रकार पीले फुल वाले फसलों खासकर अरहर, सरसो में जब पूरी तरह फूल निकल गये हो तथा अब उसमें दाना लगने वाला हो तो, इमोडा क्लोप्रीड का छिड़काव इसी मात्रा में करें.
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बागवानी के जानकार और दवा बिक्रेता के अनुसार सबसे पहले आम के पेड़ों की जड़ चारों तरफ पांच से छह फीट ऊंचाई तक चूना तथा कॉपर क्लोरीपाइरीफास मिलाकर सफेदी कराये. साथ ही आम के पेड़ के चारों तरफ बनाये गये घेरा में पेड़ के आयु के अनुसार खाद एवं उर्वरक डाले तथा क्लोरीपाइरीफास दो मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर घेरे में डाल दे. इससे आम के पेड़ में बोरार नामक कीड़ा क्षति नहीं पहुंचा पाता है. बेहतर फल लगने के साथ-साथ मंजर के निकले दानों का शत प्रतिशत बचाव हो सकता है. किसी भी स्थिति में शीतलहर के दौरान इन दोनों रसायण का छिड़काव नहीं किया जाना चाहिये.