16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पटना के बेमिसाल टीचर्स, जो दिव्यांग बच्चों की जिंदगी संवारने में दे रहे अपना योगदान

पटना में कुछ ऐसे शिक्षक हैं जो आम बच्चों की तरह ही दिव्यांग बच्चों को भी निपुण बना रहे हैं. ऐसे शिक्षकों का कहना है कि विकास के साथ साथ हमें दिव्यांग बच्चों को लेकर अपनी सोच बदलनी होगी. शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों की मदद करने वाले ऐसे टीचर्स पर एक रिपोर्ट

जूही स्मिता, पटना: आम बच्चों के पढ़ने के लिए कई सारे विकल्प हैं, लेकिन जो मानसिक और शारीरिक रूप से लाचार हैं उन्हें शिक्षित होने के लिए कई बार संघर्ष करना होता है. हालांकि, पटना शहर में कई ऐसे टीचर्स हैं, जो ऑटिज्म, नेत्रहीन और मूक-बधिर बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ समाज और लोगों के बीच अपना स्थान बनाने में मदद कर रहे हैं. ऐसे शिक्षकों का कहना है कि विकास के साथ साथ हमें दिव्यांग बच्चों को लेकर अपनी सोच बदलनी होगी.

35 सालों से मूक-बधिर बच्चों को शिक्षित कर रहे डॉ आनंद मूर्ति

कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस में डॉ आनंद मूर्ति कॉमर्स पढ़ाते हैं लेकिन उन्हें साइन लैंग्वेज की अच्छी जानकारी भी है. यही वजह हैं कि वे पिछले 35 सालों से शहर और अन्य शहरों के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के मूक-बधिर बच्चों को मुफ्त में शिक्षित कर रहे हैं. अब तक वे 500 से ज्यादा स्टूडेंट्स को पढ़ा चुके हैं. डॉ आनंद कहते हैं कि ऐसे बच्चों को सिर्फ पढ़ाना काफी नहीं होता है बल्कि उनमें आत्मविश्वास पैदा करने की जरूरत होती है.

पिछले 23 सालों से नेत्रहीन छात्राओं को कर रहीं शिक्षित

अंतरज्योति बालिका विद्यालय की प्राचार्या राजश्री दयाल बताती हैं कि साल 1999 में उन्होंने स्कूल ज्वाइन किया था. इसके बाद उन्होंने ब्रेल लिपि की एक साल की ट्रेनिंग ली. यहां पर 100 से ज्यादा बच्चियां रहती हैं. बच्चियों को पहले छह बिंदुओं के बारे में सिखाया जाता है जिसे ढढ़ कहते हैं. इस भाषा के लिए अलग से स्लेट कार्ट, गाइड और स्टाइलस (कलम) आता है. इसकी मदद से छात्राएं अपने पठन-पाठन का कार्य करती हैं. ब्रेल पढ़ने और लिखने में बच्चियों को 6 से 12 महीने लग जाते हैं.

14 सालों से ऑटिस्टिक बच्चों को पढ़ाने में दे रहीं योगदान

ऊषा मनाकी बताती हैं कि उन्हें ग्रेजुएशन करने के बाद उन्हें ऑटिस्टिक और इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी वाले बच्चों को पढ़ाने का मौका मिला. इन बच्चों का विकास आम बच्चों की तरह नहीं होता है. इनके सीखने और समझने की प्रक्रिया आम बच्चों के मुकाबले बहुत कम होती है. ऐसे में इनके साथ धैर्य और प्यार से इनके आवश्यकताओं को समझना पड़ता है और फिर इन्हें समझाना होता है. मैंने इन बच्चों बेहतर तरीके से पढ़ाने के लिए स्पेशल बीएड किया. इन बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ना ही मेरे जिंदगी का मकसद है.

2019 से साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर का कर रहीं काम

आशियाना की रहने वाली मोनिका सिंह बताती हैं कि उन्होंने 2019 में दीघा स्थित जेफ वीमेन फाउंडेशन ऑफ बिहार में साइन लैंग्वेज एंटरप्रेटर के तौर पर कार्य करना शुरू किया. वे बताती हैं कि उनके माता-पिता दोनों डेफ है. ऐसे में उनसे संपर्क करने के लिए उन्होंने साइन लैंग्वेज को सीखना शुरू किया. फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न वे इस हुनर से अन्य लोगों की मदद करने में करें. वे दीघा स्थित एनजीओ में इंटरप्रेटर हैं. एनजीओ से ऑनलाइन जुड़ी महिलाओं की बातों को सभी के समक्ष रखती हैं.

Also Read: बिहार से यूपी, ओडिशा और झारखंड जाना होगा आसान, इन रूटों पर चलेंगी 140 से अधिक नयी बसें, देखें लिस्ट

स्पीच रीडिंग और पिक्चर कार्ड के जरिये पढ़ाते हैं बधिर बच्चों को

उमंग बाल विकास के संस्थापक सतीश कुमार यहां बधिर बच्चों को स्पेशल एजुकेटर के तौर पढ़ाते हैं. वे बताते हैं कि साल 2002 में जब उनका भतीजा बधिर हो गया, तो उन्होंने उस वक्त उसकी परेशानियों को देखा. तब उन्होंने इसके लिए स्पेशल ट्रेनिंग एक साल ली. इसके बाद उन्होंने भतीजे को पढ़ाने के साथ अन्य बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. आज भतीजा बैंक में है. उनकी संस्था में बच्चों स्पीच रीडिंग, पिक्चर कार्ड, और टीचिंग लर्निंग मेटेरियल के माध्यम से बच्चों को शिक्षित किया जाता है.

https://www.youtube.com/watch?v=Cq-AZmrJPH0

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें