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हर वर्ष छूट जाते हैं गंगासागर मेले में सैकड़ों लोग, 5 फीसदी ऐसे भी जो जानबूझकर छोड़ देते हैं अपनों को

गंगासागर मेले में अपने परिजनों या फिर साथियों से बिछुड़ जाने के कई कारण होते हैं. अगर कुछ सावधानियां बरती जायें, तो इससे बचा जा सकता है.

कोलकाता, आनंद कुमार सिंह: कभी कहा जाता था कि सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार. वजह थी कि वहां जाने का रास्ता कठिन था. मेले का अनुभव भी कभी अपने आप में बड़ा मुश्किल था. लेकिन इसके अतिरिक्त वहां जो समस्या दशकों से चली आ रही है, वो है मेले में भटक जानेवालों की. अधिकतर लोग जो मेले में भटक जाते हैं, उनकी अपने परिजनों से मुलाकात देर-सबेर हो जाती है, पर सैकड़ों ऐसे भी लोग होते हैं, जो मेले के आखिर तक अपने परिजनों से नहीं मिल पाते हैं.

परिजनों से मिलाने का जिम्मा ‘बजरंग परिषद’ पर

बीते 106 वर्षों से गंगासागर मेले में भटक जानेवालों को उनके परिजनों से मिलाने का जिम्मा ‘बजरंग परिषद’ पर है. मेला परिसर में अपने कैंप के जरिये परिषद की ओर से लाउडस्पीकर पर लापता लोगों के संबंध में घोषणा की जाती रहती है. परिषद के सेवा सचिव प्रेमनाथ दूबे बताते हैं कि मकर संक्रांति के तीन दिन पहले से प्रतिदिन 5000 से 6000 लोग भटक जाते हैं. इनमें अधिकतर लोग अपने परिजनों से मिल जाते हैं.

भीड़ की वजह से कुछ लोग भटक जाते हैं

गंगासागर मेले में अपने परिजनों या फिर साथियों से बिछुड़ जाने के कई कारण होते हैं. अगर कुछ सावधानियां बरती जायें, तो इससे बचा जा सकता है. लोगबाग सबसे अधिक गंगासागर में स्नान के दौरान बिछुड़ते हैं. किनारे जिस चौकी पर वे अपना कपड़ा छोड़ते हैं, जब लौट कर आते हैं, तो वहां चौकी ही नदारद होती है. वजह है कि जिस साधु या व्यक्ति ने वहां चौकी लगायी होती है, ज्वार की वजह से वह उसे वहां से हटा देती है. स्थान के संबंध में मेले में नये आये व्यक्ति की उतनी समझ नहीं होती और वह रास्ते को समझ नहीं पाता और लाखों की भीड़ में अपनों से बिछुड़ जाता है. नहाने के दौरान ही एक और घटना हो जाती है.

गंगासागर में यदि कोई थोड़े गहरे पानी में चला जाये, तो डुबकी के बाद जब वह सिर उठाता है, तो लहरों की वजह से बालू के कटाव के कारण वह थोड़े अलग रास्ते में चला जाता है. मसलन अगर वह घाट नंबर एक पर नहा रहा था, तभी वह घाट नंबर दो पर भी पहुंच सकता है. ऐसे में एक बार फिर से वह भटक जाता है. इससे बचने के लिए घाट नंबर को याद रखा जा सकता है. साथ ही सभी परिजन किसी स्थल को तय कर सकते हैं कि भटकने की स्थिति में वह वहां पहुंच जायें. यदि कोई बड़े समूह के साथ गंगासागर मेले में पहुंचता है, तो बेहतर होगा कि सभी एक तरह का बैंड पहन लें. उस पर उनकी झोपड़ी आदि का नंबर लिखा जा सकता है. अन्य महत्वपूर्ण नंबर भी उस पर लिखे जा सकते हैं.

अपनों का साथ छूट जानेवालों में ज्यादातर बुजुर्ग

वैसे तो मेले में हजारों लोग अपनों से बिछुड़ जाते हैं, पर सैकड़ों लोग ऐसे भी हैं, जो मेले के आखिर तक अपने परिजनों से मिल नहीं पाते. गत वर्ष कोविड-19 के दौरान हुए मेले को छोड़ दें, तो हर वर्ष करीब 100-150 ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें आखिर तक लेनेवाला कोई नहीं होता. पुलिस व प्रशासन के सहयोग से उन लोगों को उनके घरों तक पहुंचाया जाता है. छूट जानेवाले अधिकतर लोगों की उम्र 60 वर्ष से अधिक की ही होती है. इन लोगों को उनके घर पहुंचाना आसान नहीं होता. कई मामलों में उनकी भाषा समझना भी कठिन होता है. ऐसे व्यक्ति को लाना पड़ता है, जो उनकी भाषा समझ सके. उसके जरिये उनका पता समझ कर घर पहुंचाया जाता है. कई मामलों में बुजुर्ग अपना पता भी ठीक से नहीं बता पाते. पुराने समय में नक्शा दिखा कर उनसे पूछा जाता था. अब गूगल ने हालात सहज कर दिये हैं. कई बार बुजुर्ग पता ना बता पाने पर भी अपने इलाके में होनेवाले विशेष मेले या खास आयोजन के बारे में बता देते हैं. उसके जरिये भी उनका पता निकाला जाता है.

प्रेमनाथ दूबे बताते हैं कि छूट जानेवालों में से ऐसे पांच फीसदी लोग भी होते हैं, जिनसे बात करने पर लगता है कि उन्हें जानबूझ कर छोड़ दिया गया होगा. यह आशंका निराधार नहीं है. जब स्वयंसेवक उन्हें उनके घर पहुंचाते हैं, तो मिलनेवाली प्रतिक्रिया से इस आशंका को बल मिलता है. कई मामलों में घरवाले खुशी जताते हैं, तो कुछ मामलों में उनका व्यवहार रूखा भी होता है. परिजनों को लौटाते वक्त स्वयंसेवकों का परिजन कई बार स्वागत करते हैं, तो कई बार उनके लिए पानी तक नहीं पूछते. शायद जानबूझ कर ही उन्होंने अपने रिश्तेदार को गंगासागर में छोड़ दिया था.

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