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Special Story: मकर संक्रांति से है गंगासागर का संबंध- शंभुनाथ

गंगासागर का संबंध मकर संक्रांति से है. 14 या 15 जनवरी को हर साल मकर संक्रांति आती है. इस दिन सूर्य उत्तरायण में मकर रेखा की ओर बढ़ता है. देश के विभिन्न प्रांतों में मकर संक्रांति का अभिनंदन कई तरह से किया जाता है.

गंगा हिमालय से चलकर, हरिद्वार, प्रयाग और बनारस होते हुए कोलकाता के निकट गंगासागर तक 2510 किलोमीटर की लंबी यात्रा करके आज भी बह रही है. यह विश्व भर के लोगों के लिए एक आध्यात्मिक आकर्षण है, क्योंकि एक महान सभ्यता के विकसित होने की गवाह है. मकर संक्रांति के अवसर पर यह एक खास अर्थ से दीप्त हो जाती है. यह अर्थ गंगासागर में स्नान करके मोक्ष तक सीमित नहीं है. यह कपिल मुनि की तपस्या से लेकर मकर संक्रांति के दिन नवता के अभिनंदन और व्यक्ति के संपूर्ण सृष्टि से संबंध तक विस्तृत है. गंगा का सागर से मिलन सदियों तक एक महान संदेश देता आया है.

गंगासागर से जुड़ी कथा के केंद्र में हैं कपिल मुनि. इनसे जुड़ी कई घटनाएं पुराकथाओं में हैं. कपिल एक वैदिक ऋषि और सांख्य दर्शन के जन्मदाता माने जाते हैं. कृष्ण ने ‘गीता’ में कपिल को मुनि कहा है, जो निरीश्वरवादी थे. महाभारत में वे ज्ञान को उच्चतम मानने वाले तपस्वी के रूप में देखे गये हैं. कपिल बताते हैं कि कर्म करते समय अहिंसा, निरहंकार, उदारता, विनय और त्याग जरूरी है.

कपिल अहंकार को दोष मानते हुए विनय को श्रेष्ठ बताते थे. एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा सगर के 60 हजार पुत्र अपने अश्वमेध के घोड़े को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे. उन्होंने अपने साम्राज्य की शक्ति के अहंकार में कपिल पर घोड़े की चोरी का आरोप लगाया और उन्हें अपमानित किया. इसपर कपिल ने सगर के 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया. यह साम्राज्य की शक्ति पर ज्ञान की महत्ता का प्रतिपादन है.

ज्ञान का ही एक पक्ष है करुणा. इसलिए जब राजा सगर के वंशज भगीरथ ने आकर क्षमा मांगी, तो कपिल मुनि ने शांतिपूर्ण तपस्या, साधना का मार्ग बताया. भगीरथ की तपस्या सफल हुई. गंगा सागर तक आयी. सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष मिला. यह कथा है, जिसमें मोक्ष से यह संदेश कम महत्वपूर्ण नहीं है कि शक्ति को अहंकार नहीं करना चाहिए और ज्ञान का एक प्रमुख तत्व है करुणा. उल्लेखनीय है कि इन्हीं कपिल मुनि के नाम पर बुद्ध के शिष्यों ने कपिलवस्तु नगर का निर्माण कराया था, जो नेपाल में है. इस तरह कपिल मुनि का संबंध जितना ‘गीता’ से है, उतना बौद्ध धर्म से भी है.

गंगासागर का संबंध मकर संक्रांति से है. 14 या 15 जनवरी को हर साल मकर संक्रांति आती है. इस दिन सूर्य उत्तरायण में मकर रेखा की ओर बढ़ता है. देश के विभिन्न प्रांतों में मकर संक्रांति का अभिनंदन कई तरह से किया जाता है. तमिलनाडु में पोंगल, असम में बिहू, पंजाब-हरियाणा आदि में लोहड़ी, गुजरात में उत्तरायण तथा हिंदी क्षेत्र में इस पर्व को खिचड़ी कहते हैं. इस दिन लोग तिल-गुड़ खाते हैं. इस पर्व को नेपाल में ‘माहो संक्रांति’, थाईलैंड में ‘सोंक्रांत’, कंबोडिया में ‘मोहा सोक्रांत’, म्यांमार में ‘थिइयान’, लाओस में ‘पि या लो’ कहा जाता है. इसका अर्थ है कि मकर संक्रांति देश-देशांतर तक हर्ष-उल्लास का स्रोत है.

मकर संक्रांति आग में पुरातन के विसर्जन और नवता के स्वागत का पर्व है. असम में नया धान आने पर पूरा राज्य मकर संक्रांति के दिन बिहू नृत्य में झूम उठता है. गुजरात में लोग पतंग उड़ाते हैं, आसमान छोटा पड़ जाता है. इस समय ओड़िशा की कुछ जनजातियां टुसु उत्सव मनाती हैं. सनातन परंपरा में नवता के ऐसे भव्य स्वागत को देखकर ऐसा लगता है कि पुरातन चीजों से चिपके रहना भारतीय प्रकृति नहीं है.

मकर संक्रांति में गंगा स्नान का खास महत्व है. कड़ाके की ठंड में भी दूर-दूर से लाखों की संख्या में लोग गंगासागर आते हैं या गंगा स्नान करते हैं. गीजर के गरम पानी से नहाने वालों के लिए यह सब अद्भुत लग सकता है, जैसे-मेला, नंगे साधुओं का जमावड़ा या भीड़-भाड़! इस दिन लोगों का दान-भाव भी जगा रहता है.

सम्राट हर्षवर्धन इसी दिन दान देते थे. कहा गया है कि राजा तब तक दान करता था, जब तक उसका सबकुछ खत्म न हो जाये. वह अपना राजसी वस्त्र तक दे डालता था. आज भी काफी नागरिकों में दान और सेवा भाव है, जो इस देश की परंपरा है. गंगा भी तो सदैव देती रही है, जबकि अधिकांश लोगों ने गंगा से ‘देना’ सीखने की जगह उसे महज पाप धोने की मशीन समझ लिया.

हिंदी के छायावादी कवि प्रसाद ने गंगासागर का एक सुंदर चित्र खींचा है, ‘ हे सागर संगम अरुण नील’. गंगा अरुण है, समुद्र नीला है. हमारा भारत भी कई रंगों का मेला है. गंगा का हिमालय से निकल कर समुद्र में मिलना यह संदेश देता है कि जीवन अनंत है. यह जीवन सीमाओं को तोड़ कर अपने ‘स्व’ का विस्तार करने के लिए है. अपने मन को बड़ा बनाने के लिए है. गंगा का सागर से मिलन का अर्थ है अपने चित्त को बड़ा बनाओ, समुद्र-सा विशाल. उल्लेखनीय है कि गंगासागर तीर्थ या मकर संक्रांति का पर्व पुरोहित तंत्र से मुक्त है. यह लोकोत्सव है.

गंगासागर हर देशवासी के लिए एक अपूर्ण आकांक्षा का पर्व है, क्योंकि देश वही है, सागर वही है, पर प्रदूषण के कारण गंगा वही नहीं है!

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