झारखंड में अब एक बार अपराध किया और पकड़े गये तो अगले 75 वर्षों तक पुलिस आपका पीछा नहीं छोड़ेगी. यही नहीं इतने वर्षों तक आपके अपराधी होने का निशान भी नहीं मिटेगा. क्रिमिनल प्रोसिजर (आइडेंटिफिकेशन) एक्ट 2022 के तहत अब जिला में पुलिस केस में गिरफ्तार अपराधियों के हस्ताक्षर से लेकर फ्रिंगर प्रिंट, रेटिना का फोटो लिया जायेगा. इसके अलावा यौन हिंसा के केस और सात से अधिक सजा वाले केस में आरोपियों का डीएनए प्रोफाइल लेकर सुरक्षित रखा जायेगा.
इसके लिए हर अपराधियों का एक यूनिक नंबर होगा. यह रिकॉर्ड अगले 75 वर्षों तक राज्य में सीआइडी के पास और राष्ट्रीय स्तर में एनसीआरबी के पास सुरक्षित रहेगा. इसका फायदा यह होगा कि आरोपी का पूरा डिजिटल रिकॉर्ड पुलिस के पास होगा. अपराधी द्वारा दूसरे बाहर किसी राज्य में अपराध करने पर वहां उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर अपराधी की पहचान कर कार्रवाई करने में पुलिस को आसानी होगी.
एक्ट के तहत राज्य के अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सीआइडी आइजी असीम विक्रांत मिंज और एसपी कार्तिक एस ने मिलकर स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) तैयार कर लिया है. इसके आधार पर राज्य के सभी जिलों के एसपी को अगले 12 माह माह के लिए कार्रवाई का टास्क दिया गया है. सीआइडी के अधिकारियों के अनुसार, उक्त एक्ट के तहत योजना के क्रियान्वयन के लिए भारत सरकार के स्तर से एनसीआरबी को नोडल एजेंसी बनाया गया था.
वहीं राज्य में सरकार के स्तर से सीआइडी को नोडल एजेंसी बनाया गया है. आरंभ में 24 जिलों की पुलिस को फ्रिंगरप्रिंट मशीन उपलब्ध करा दिया गया है. इसके तहत फ्रिंगर प्रिंट लेने का काम भी शुरू कर दिया गया है.
पहचान देने से इनकार करने पर पुलिस अधिकारी संबंधित आरोपी के खिलाफ धारा 186 के तहत केस दर्ज कर विधिपूर्वक कार्रवाई कर सकेंगे. आइपीसी की धारा 186 पुलिस को यह अधिकार प्रदान करती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी लोकसेवक के आदेश का उल्लंघन कर अपनी मर्जी से बाधा डालेगा, उसे इस जुर्म के लिए दंडित किया जायेगा.