छपरा में मकर संक्रांति पर इस दफा मौना चौक पर दही का मेला लगेगा. इसमें दूर दराज से आए लोग अपनी दही लेकर आयेंगे. इसको लेकर विशेष तैयारी की गई है. ताकि दही बेचने और खरीदने वालों को किसी प्रकार का कोई परेशानी नहीं हो. शहर में मकर संक्रांति के दिन सुबह सात बजे से ही शहर के मौना चौक का नजारा देखने लायक रहता है. गांव-देहात से माथे पर मटकी में दही लिये सैकड़ों ग्रामीण दही बेचने के लिए मौना चौक पर इकट्ठा होते हैं. एक कतार में सजी दही की इन दुकानों पर सुबह से ही भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है.
दही बेचने आये लोगों और ग्राहकों की भीड़ देखकर यहां का नजारा किसी मेले से कम नहीं लगता. जिले में संक्रांति के दिन अलग-अलग जगहों पर लगने वाले दही मेले और चक्की गुड़ से बनने वाला चूड़ा और फरुही की लाई इस त्योहार को हर साल उमंग से सराबोर कर देता है. ब्याहता बेटियों की ससुराल खिचड़ी का कलेवा भेजने का चाव आज भी मायके के लोगों में देखने को मिलता है.
खिचड़ी सिर्फ एक पर्व ही नहीं, बल्कि बेटी की ससुराल और मायके के बीच के रिश्तों को प्रगाढ़ करने का एक श्रेष्ठ माध्यम है. सारण के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भले ही आधुनिकता का प्रभाव बढ़ा है, लेकिन आज भी खिचड़ी नजदीक आते ही घरों में चूड़ा की खुशबू परंपराओं की जीवंतता की सहज अनुभूति कराती है. शादी के बाद परायी हो गयी बेटियां हर साल मायके से खिचड़ी के पहले इस खास न्योते का इंतजार करती हैं. चूड़ा, कसार, तिलकुट, लाई भेज मायके वाले बेटी की ससुराल से रिश्तों में मिठास बढ़े इसकी कामना करते हैं. मकर संक्रांति के एक माह पहले से ही घरों में लाई-तिलवा बनना शुरू हो जाता है. हालांकि शहर में आज चूड़ा, लाई और तिलकुट का बाजार बढ़ा है.
खिचड़ी में चावल का महत्व है. सारण का अधिकतर क्षेत्रफल नदियों से घिरा है. यहां बाढ़ की संभावना हमेशा बनी रहती है. पहले सारण में गेहूं की तुलना में चावल की खेती ज्यादा मात्रा में की जाती थी. ठंड शुरू होने के दो माह पहले ही घरों में चावल का स्टॉक कर लिया जाता था. ऐसा आज भी होता है. ठंड में दो माह तक किसान कहीं आते-जाते नहीं थे. खासकर दिसंबर और जनवरी में. कोई जरूरी कार्य भी इन दिनों नहीं होता था. मकर संक्रांति के समय मौसम अनुकूल होता है. सूर्य की गर्मी बढ़ती है. नयी फसल के स्वागत और नये कार्यों को उत्साह के साथ पूरा करने के संकल्प के साथ मकर संक्रांति के दिन भोजपुरी क्षेत्र में गृह देवताओं को खिचड़ी का भोग भी लगाया जाता है.
कुछ बुजुर्गों व पतंजबाजी के कद्रदान पूर्व के वर्षों में प्रमुख स्थानों पर पतंजबाजी कराते हैं. शहर के राजेंद्र स्टेडियम में स्थानीय युवकों की टीम द्वारा पतंगबाजी का आयोजन किया जाता है. बच्चों में पतंगबाजी का उत्साह को बरकरार रखने के लिए शहर के कई दुकानदारों ने इस साल भी डिजाइनर पतंगे और स्वदेश में निर्मित धागों का स्टॉक उपलब्ध रखा है. शहर में पतंग के लिए बनायी गयीं छोटे-छोटे दुकानों पर पांच रुपये से लेकर 250 रुपये तक के आकर्षक पतंग उपलब्ध हैं. दिलवाली, कोहली, पांड्या व चमगादड़ ब्रांड पतंगों के अलावा आरी, अधियल, पवन तथा अद्धा ब्रांड की लोकल पतंगों के भी काफी खरीदार हैं.