पटना के पुराने सचिवालय स्थित राजधानी जलाशय में ठंड के मौसम में हजारों की संख्या में विदेशी पक्षी पहुंचते हैं. इस बार राजधानी जलाशय में दुर्लभ बैकल टील पक्षी के कलरव ने पक्षी प्रेमियों के साथ ही यहां घूमने आने वाले लोगों का भी अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. इस दुर्लभ पक्षी को नवंबर के अंतिम सप्ताह में देखा गया. बैकल टील के विचरण ने राजधानी जलाशय के साथ ही राज्य के लिए भी एक नया रिकॉर्ड बना दिया है.
बैकल टील पूर्वी साइबेरिया से प्रजनन कर दक्षिणी चीन एवं जापान तक सर्दियों में अपना आशियाना बनाते हैं. ज्यादातर यह पक्षी दूसरे पक्षियों के झुंड में रहना ही पसंद करते हैं. बैकल टील की एक खासियत यह भी है कि इसके अंडे छह से नौ रंगों के होते हैं. राजधानी जलाशय में आने वाले विदेशी पक्षियों में मुख्य रुप से नॉर्दन शोबलर, गढ़वाल, कॉमन कूट, कॉम्ब डक, पोचार्ड, टफ्टेड आदि जैसे पक्षियों की चहचहाहट से जलाशय अक्तूबर से फरवरी तक गुलजार रहता है. फिलहाल मेहमान पक्षियों की सुरक्षा को देखते हुए पर्यावरण विभाग के सचिव इसे प्रतिबंधित एरिया बनाने का निर्देश दिया है. यहां केवल नेचर फोटोग्राफर, पर्यावरणविद, पक्षी विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं को जाने की अनुमित प्रदान की गयी है.
दुर्लभ प्रजाति “बैकल टील” को देख कर पर्यावरणविद् और नेचर फोटोग्राफरों की खुशी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. फोटोग्राफर बीके जैन ने बताया कि ऐसे बैकल टील को झुंड के बीच और फोटोग्राफी करना एक कठिन कार्य है, जिसे खींचकर मैं एक रोमांचकारी अनुभव कर रहा हूं.उन्होंने बताया कि .यह सुदूर पूर्व का एक पक्षी है, जो पूर्वी साइबेरिया से प्रजनन कर दक्षिणी चीन एवं जापान तक सर्दियों में रहता है, हालांकि समय-समय पर यह यूरोप संयुक्त राज्य अमेरिका ( विशेष रूप से अलास्का ) और ऑस्ट्रेलिया में भी यदा-कदा रिकार्ड किया गया है.
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बैकल टील पहली बार इसे बिहार में देखा गया है. ज्यादातर यह अन्य प्रजाति के डंकों के झुण्डों के बीच रहना पसंद करता है. “बैकल टील” घास और झाड़ियों जैसी वनस्पतियों में छिपे पानी के पास सूखी जमीन पर घोंसला बनाना पसंद करते हैं, यह एक साथ छह से नौ हल्के हरे रंग के अंडे देती है जिसे वह 24 दिनों के बाद बच्चे निकलते हैं.