पटना. ‘मकर संक्रांति’ को लेकर आज पूरे दिन श्रद्धालु गंगा स्नान कर पूजा-पाठ और दान- पुण्य करेंगे. मान्यता है कि सूर्यदेव की उपासना, उदारता, दान और धर्मपरायणता का यह पर्व जीवन में उत्साह और उमंग का संचार बढ़ता है. सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक पर्व सांस्कृतिक एकता और सद्भाव की मिठास दिलों में घोलता है. इस दिन पुण्यकाल में गंगा स्नान करने से शारीरिक कष्ट का नाश होता है. वहीं अन्न, वस्त्र, द्रव्य, तिल, गुड़ आदि के दान से महापुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन दान-पुण्य करने से उसका सौ गुणा पुण्य फल प्राप्त होता है. वहीं शनिवार को भी कई लोगों ने मकर संक्रांति का पर्व मनाया. सुबह स्नान कर लोगों ने लाई, चूरा, तिल की मिठाई आदि का आनन्द लिया. जबकि रात में खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण किया. कहा जाता है कि खिचड़ी न केवल व्यंजन है, बल्कि शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करती है. वहीं शास्त्र सम्मत विधि से पर्व मनाने वाले आज यह त्यौहार मनाएंगे.
सनातन धर्म में उदया तिथि से पर्व मनाने की परंपरा रही है. सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश शनिवार यानी 14 जनवरी की देर रात 02:53 बजे हुआ था. इसलिए इसका पुण्यकाल आज 15 जनवरी को पूरे दिन रहेगा. आज मकर संक्रांति के दिन जयद् योग का संयोग भी बन रहा है. आज सनातन धर्मावलंबी गंगा स्नान, तीर्थ स्नान, कर श्रीहरिविष्णु, सूर्यदेव व अपने इष्टदेव तथा कुलदेवता की पूजा कर ऊनी वस्त्र, तिल, कंबल, जूता, धार्मिक पुस्तक, अन्न, स्वर्ण आदि का दान करना विशेष पुण्य फलदायक होता है.
ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा के मुताबिक भगवान सूर्य शनिदेव के पिता हैं. सूर्य और शनि दोनों ही ग्रह पराक्रमी हैं. ऐसे में जब सूर्य देव मकर राशि में आते हैं तो शनि की प्रिय वस्तुओं के दान से भक्तों पर सूर्य की कृपा बरसती है. साथ ही मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है. मकर संक्रांति के दिन तिल निर्मित वस्तुओं का दान शनिदेव की विशेष कृपा को घर परिवार में लाता है. सूर्य मकर से मिथुन राशि तक उत्तरायण में और कर्क से धनु राशि तक दक्षिणायन रहते हैं.
Also Read: आज जयद् योग में मकर संक्रांति का पर्व शुभ, राशि के अनुसार करें दान-पुण्य, होगी उन्नति
आज मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है. इस दिन ही महर्षि प्रवहण को प्रयाग के तट पर गंगा स्नान से सूर्य भगवान से पांच अमृत तत्वों की प्राप्ति हुई थी. ये तत्व हैं-अन्नमय कोष की वृद्धि, प्राण तत्व की वृद्धि, मनोमय तत्व यानी इंद्रीय को वश में करने की शक्ति में वृद्धि, अमृत रस की वृद्धि यानी पुरुषार्थ की वृद्धि, विज्ञानमय कोष की वृद्धि यानी तेजस्विता.
https://www.youtube.com/watch?v=78EeDvvzmsM