बीरभूम, मुकेश तिवारी: बीरभूम जिले के जयदेव केंदुली स्थित अजय नदी में रविवार सुबह मकर संक्रांति के मद्देनजर जयदेव केंदुली मेला में आये कदम खंडित घाट पर लाखों पूर्णार्थियो ने डुबकी लगाई . इस दौरान बीरभूम जिला पुलिस द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए थे. जगह जगह CCTV कैमरा ,अग्निशमन सुरक्षा के उपाय व व्यवस्था किए गए थे. नदी के किनारे गीत गोविंद के रचयिता कवि जयदेव का जन्म स्थान है .
अनेक विद्वानों का कहना है कि उनका जन्म स्थान उड़ीसा के केंदुली श्मशान में हुआ था . इसके वावजूद लाखो पूर्णार्थियो का समागम कवि जयदेव की इस पावन भूमि पर प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति से शुरू होकर करीब 10 दिनों तक चलता रहता है . जयदेव्, लखन सेन के दरबार के कवि थे. इस गांव में ही जयदेव द्वारा प्रतिष्ठित राधा -माधव की प्रतिमा मौजूद है .जिस आसन पर बैठकर जयदेव ने ज्ञान प्राप्त किया था.
बताया जाता है कि मुगल शासक काल में जयदेव केंदुली सेन पहाड़ी परगना के रूप में जाना जाता था .औरंगजेब के फरमान के बाद उक्त परगना बर्दवान के महाराजा कृष्ण राम राय को सौंप दिया गया. इस गांव के ही निवासी जुगल किशोर मुखोपाध्याय बर्दवान राज दरबार के कवि थे.1683 में बर्दवान की महारानी ब्रज किशोरी ने उक्त केंदुली गांव में जयदेव के जन्म स्थल पर राधा विनोद मंदिर की स्थापना की .1860 में निर्वाक वैष्णव संप्रदाय द्वारा राधा रमण बृजवासी द्वारा केंदुली गांव में कुल गुरु जयदेव के जन्म स्थल पर निर्वाह आश्रम का प्रतिष्ठा किया गया था .
बीसवीं शताब्दी के शुरुआती दौर में राधा वल्लभ मंदिर प्रतिष्ठित यहां पर हुई .वर्तमान में मंदिर और आश्रम के कारण केंदुली गांव धार्मिक तीर्थ स्थल के रूप में परिणत हुआ है .प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के उपलक्ष में इस स्थान पर मेला बैठता है .कथित है कि कई सौ वर्ष पूर्व जयदेव मकर संक्रांति के प्रातः बर्दवान के कटवा गंगा नदी में स्नान करने जाते थे .एक बार अस्वस्था के कारण नहीं जा पाए .देवी गंगा स्वप्न में आकर जयदेव को बोली केंदुली के अजय नदी स्थित कुंडली घाट पर कमल का फूल तैरता हुआ दिखाई यदि दे तो समझ लेना मैं स्वयं यहां आयी हूं.बताया जाता है कि प्रातः सूर्य की पहली किरण के निकलते ही जयदेव अपने साथ कुछ ग्रामीणों को लेकर उक्त घाट पर पहुँचे. देखा कि घाट पर कमल का फूल अजय नदी में तैरता हुआ आ रहा. फिर क्या था ,तभी से अजय नदी को गंगा का स्वरूप मानकर प्रतिवर्ष यहां मकर संक्रांति के रुप से पूजन की विधि चालू हो गयी.
शीतलहर व कड़ाके की ठंड के बीच मकर संक्रांति में अजय नदी के उक्त घाट पर गंगा स्नान अथवा पूर्ण स्न्नान होना आरम्भ हो गया . प्रत्येक वर्ष लाखों लोग घाट पर स्नान हेतु आते हैं .1982 में बीरभूम जिला प्रशासन ने मेला का शुरुआत किया . पहले पहल 107 अखाड़े यहां लगते थे .वर्तमान में 300 से ज्यादा अखाड़ा यहां लग रहा हैं .बाउल, कीर्तन ,लोक गीत आदि अखाड़े यहां लगते हैं . आठ सौ के करीब शौचालय तैयार किया गया है . बाउल, लोक, कीर्तनिया गायकों का समागम यहां देखने लायक है.
पुलिस अधीक्षक नागेंद्रनाथ त्रिपाठी ने पत्रकारों को बताया कि मकर संक्रांति के मौके पर जयदेव मेले में कड़ी सुरक्षा की व्यवस्था की गई है. इस बार मेले में एसजीएफ खुफिया ड्रोन कैमरों सहित अत्याधुनिक सुरक्षा प्रणालियां स्थापित की गई है. घाटों सहित हर अखाड़े व पंडाल में सीसीटीवी कैमरे, विशेष मोबाइल वैन, कंट्रोल रूम भी मेले के बाहर पर्याप्त निगरानी के साथ उपलब्ध कराए गए है. तकरीबन 2500 पुलिस बल सहित नागरिक स्वयंसेवक को जयदेव मेले में तैनात किया गया है.