पटना. मकर संक्रांति का त्योहार आते ही मिथिला के लोगों को भूकंप की डरावनी याद आ जाती है. 15 जनवरी, 1934 के भूकंप के यूं तो 89 साल बीत गये, लेकिन आज भी मिथिला में उसकी निशानी भूकंप की भयावहता को बयां कर रही है.
बुजुर्ग बताते हैं कि धरती डोली और चीख-पुकार के बीच केवल बचा रह गया मलवा. कई लोग तो चीख तक नहीं पाये और धरती ने उन्हें निगल लिया. तबाही के बाद जो लोग बचे थे, उनके चारों ओर मलवा ही मलवा बिखरा था. कोई घर ऐसा नहीं बचा था, जो इस तबाही की चपेट में नहीं आया हो. खेतों में दरारें पड़ गयी थी और चारों ओर हाहाकार मचा था.
तत्कालीन दरभंगा जिले के राजनगर (अब जिला मधुबनी) शहर के लिए भूकंप अभिशाप रहा है. यह शहर भूकंप के केंद्र में शामिल होने के कारण इस प्राकृतिक आपदा से सबसे अधिक प्रभावित हुआ. वैसे तो राजनगर में भूकंप कई बार आया, लेकिन 15 जनवरी 1934 का भूकंप इस शहर के लिए विनाशकारी रहा था.
दोपहर के समय आये भूकंप ने राजनगर के रमेश्वर विलास पैलेस को चंद मिनटों में मलवे में तब्दील कर दिया. राजनगर को ब्रिटिश वास्तुकार डॉ एम ए कोरनी ने मन से बनाया था. कहा जाता है कि कोरनी तिरहुत के महाराजा के कर्जदार थे और कर्ज चुकाने के बदले उन्होंने अपने हुनर को यहां ऐसे उकेरा कि वो वास्तुविदों के आदर्श बन गये.
दस्तावेज बताते हैं कि राजनगर को बसाने की प्रक्रिया 1926 तक चलती रही. राजनगर राजमहल ही नहीं सचिवालय और टाउनशिप के अंदर बने कुल 11 मंदिरों में भी अदभुत वास्तुशिल्पी का दीदार होता है. इस परिसर का निर्माण की प्रक्रिया खत्म होते ही 1934 के भूकंप ने इस पूरे शहर को तहस-नहस कर दिया. भूकंप ने इस शहर को गुलजार होने से पहले ही खंडहर में बदल दिया.
दोपहर के समय आये भूकंप ने पूरे बिहार को अस्त-व्यस्त कर दिया था और चारों ओर तबाही का मंजर था. इस भूकंप में जहां लगभग 1434 लोगों की मौत हुई थी, बिहार के कई शहर मलवे में तब्दील हो गये थे. धन-बल की भी भारी क्षति हुई थी.
इस विनाश लीला में लोगों को राहत पहुंचाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ संपूर्णानंद जैसे लोगों ने कुदाल व डलिया उठाये थे. पंडित मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू, खान अब्दुल गफ्फार खान, यमुना लाल बजाज, आचार्य कृपलानी जैसे लोगों ने बिहार में आकर राहत कार्य में सहयोग किया थे. यह अब तक का सबसे बड़ा राहत अभियानों में से था.
1934 के विनाशकारी भूकंप में दरभंगा पूरी तरह तबाह हो गया था. यहां तक कि दरभंगा महाराज भी कई दिनों तक बेघर टेंट में रहे. भूकंप के बाद दरभंगा शहर को नये सिरे से बसाया गया. आज का दरभंगा मूलरूप से भूकंप के बाद का बना हुआ बिहार का पहला प्लान सिटी है. तत्कालीन बिहार विधानपरिषद ने दरभंगा इम्प्रुवमेंट ट्रस्ट के माध्यम से दरभंगा का प्लान क्रियान्वित करने का विधेयक पास किया.दरभंगा इम्प्रुवमेंट ट्रस्ट ही आज का दरभंगा नगर निगम है.
टाउनशिप विकसित करने के लिए दरभंगा महाराज ने ट्रस्ट को लाखों रुपये दिये थे. वास्तुकार टेम्प्ले ने दरभंगा का डिजाइन किया, जहां चौड़ी सड़कें, हर आठ-दस घरों के बाद चौराहा है, बाजार, पार्क, अस्पताल आदि के लिए जगह निर्धारित की गयी. आज का दरभंगा पूरी तरह आधुनिक रूप से बसा हुआ है दरभंगा है. यह दरभंगा 1934 के बाद बड़े ही तकनीकी व खूबसूरत ढंग से बसाया गया था, लेकिन बाद के दिनों में अतिक्रमण ने शहर का रूप रंग बदल दिया. वैसे बार-बार भूकंप का प्रकोप इस शहर के लोगों का दिल दहला देता है.