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बिहार के 18 जिलों के भूजल में बढ़ी आर्सेनिक की मात्रा, गॉल ब्लैडर कैंसर की संभावना अधिक

डॉ. कृतिगा श्रीधर ने कहा कि इस अध्ययन से प्रारंभिक अंतर्दृष्टि समान देश के संदर्भों के लिए भी उपयोगी हो सकती है जो पीने के पानी में पित्ताशय की थैली के कैंसर और पीने के पानी में आर्सेनिक की उच्च मात्रा के बोझ का अनुभव करते हैं.

बिहार के 18 जिलों के भूजल में आर्सेनिक की बढ़ी मात्रा ने यहां के लोगों की चिंता बढ़ा दी है. आर्सेनिक की उच्च सांद्रता के कारण जिलों में पित्ताशय के कैंसर से संक्रमित रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक कुमार घोष ने बताया कि विशेषज्ञों द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया है कि राज्य के 38 जिलों में से 18 जिलों ने भूजल में आर्सेनिक की उच्च मात्रा पायी गयी है.

बक्सर, भोजपुर और भागलपुर सबसे अधिक प्रभावित 

इन जिलों के लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन की 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर की स्वीकार्य सीमा से अधिक आर्सेनिक सांद्रता वाला पानी पी रहे हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित जिले बक्सर, भोजपुर और भागलपुर हैं. उन्होंने कहा कि भूजल में सबसे अधिक आर्सेनिक दूषितकरण (1906 माइक्रोग्राम प्रति लीटर) बक्सर जिले में है. घोष ने कहा कि अब अध्ययन में पित्ताशय की थैली के कैंसर के संभावित जोखिम कारक के रूप में आर्सेनिक की उच्च सांद्रता सामने आयी है.

46 हजार नमूनों का किया गया विश्लेषण

विशेषज्ञों ने निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले 18 जिलों के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र किये गये 46,000 भूजल नमूनों का विश्लेषण किया. आर्सेनिक दूषितकरण से गंभीर रूप से प्रभावित बिहार के जिलों में बक्सर, भोजपुर, भागलपुर, सारण, वैशाली, पटना, समस्तीपुर, खगड़िया, बेगूसराय, मुंगेर आदि शामिल हैं जो कि गंगा नदी के तट के करीब स्थित हैं.

पीने के पानी में आर्सेनिक और पित्ताशय की थैली के कैंसर के बीच संबंध पर अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च के कैंसर एपिडेमियोलॉजी, बायोमार्कर्स एंड प्रिवेंशन जर्नल में नवीनतम अध्ययन पत्र भी प्रकाशित हुआ है. घोष ने कहा, ‘‘इस अध्ययन ने भारत के दो आर्सेनिक प्रभावित राज्यों बिहार और असम में 15-70 साल की अवधि के प्रतिभागियों के बीच पीने के पानी में आर्सेनिक के संपर्क में पित्ताशय की थैली के कैंसर के जोखिम की जांच की.

इन संस्थानों के सहयोग से हुआ अध्ययन 

यह अध्ययन भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल हेल्थ, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल, कैंसर संस्थान के डॉ. भुवनेश्वर बरुआ, महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र, आइआइटी खड़गपुर, लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के सहयोग से किया गया.’

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विशेषज्ञों ने कहा

अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. कृतिगा श्रीधर ने कहा कि इस अध्ययन से प्रारंभिक अंतर्दृष्टि समान देश के संदर्भों के लिए भी उपयोगी हो सकती है जो पीने के पानी में पित्ताशय की थैली के कैंसर और पीने के पानी में आर्सेनिक की उच्च मात्रा के बोझ का अनुभव करते हैं. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की डॉ. पूर्णिमा प्रभाकरन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे यह अध्ययन जल जीवन मिशन 2024 और समान स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल के सतत विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित है.

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