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झारखंड के संताल आदिवासियों ने कफन प्रथा पर लगायी रोक, बदले में देने होंगे पीड़ित परिवार को धन राशि

कफन सिर्फ घर और अपने गोतिया के लोग ही देंगे. अन्य रिश्तेदार और गांव के लोग कफन के बदले नकद राशि देंगे. मौके पर उपस्थित सभी लोग एक जगह धन जमा कर पीड़ित परिवार को देंगे.

हजारीबाग, रामगढ़ व बोकारो जिले के संताल आदिवासी बहुल गांवों में कफन प्रथा पर रोक लगा दी गयी है. सोमवार को चुरचू प्रखंड के आदिवासी बहुल गांव कजरी भुरकुंडा में आयोजित संताल समाज बैठक में उक्त निर्णय लिया गया. बैठक के बाद जानकारी दी गयी कि तीन जिले में कफन प्रथा को समाप्त कर दुखी परिवार के परिजनों को सहयोग राशि देकर सहायता प्रदान किये जाने का प्रस्ताव पारित किया गया है.

कफन सिर्फ घर और अपने गोतिया के लोग ही देंगे. अन्य रिश्तेदार और गांव के लोग कफन के बदले नकद राशि देंगे. मौके पर उपस्थित सभी लोग एक जगह धन जमा कर पीड़ित परिवार को देंगे. इससे परिवार की आर्थिक मदद हो सकेगी. बैठक में जोड़ाकारम, परसाबेड़ा, रामदागा, बहेरा, फूसरी, बदुलतवा, फागूटोला, चनारो, लगनाबेड़ा सहित अन्य गांवों से आये लोग मौजूद थे.

दरअसल, कजरी भुरकुंडा में सोमवार को झरी मांझी उर्फ बंडा मांझी (40) के निधन पर संताल समाज के लोग जुटे थे. इस दौरान सभी ने कफन प्रथा पर बारी-बारी से अपने विचार रखे. लोगों ने कहा कि अगर कफन की जगह पीड़ित परिवार को नकद राशि दी जाये, तो उसकी मदद होगी.. मौके पर श्याम मरांडी, मनोज मुर्मू, विंसेंट टुडू, रबी मुर्मू, किसान मुर्मू, प्रभू मुर्मू व अन्य ग्रामीण उपस्थित थे.

क्या है कफन प्रथा

सदियों से संथाल समाज में कफन प्रथा प्रचलित है. इसके अनुसार, किसी के घर में मृत्यु होने पर शामिल होनेवाले हर व्यक्ति को अपने साथ ढाई मीटर का कफन लाना पड़ता था. शव के साथ ही कफन को जला दिया जाता है.

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