भागलपुर (दीपक राव): कभी बिहार-झारखंड के संयुक्त प्रदेश में औद्योगिक हब के रूप में भागलपुर की पहचान थी. इतना ही नहीं देश व दुनिया में आज भी भागलपुर सिल्क सिटी के रूप में नाम रह गया, जबकि सरकारी उदासीनता के कारण पहचान लगभग खत्म होता जा रहा है. अब भी प्रदेश में सिल्क सिटी के कारण औद्योगिक राजधानी के रूप में भागलपुर की पहचान है.
प्रदेश के उद्योग विभाग ने खुद इस बार टॉप परफॉर्मर व टॉप बॉटम परफॉर्मर की सूची तैयार की. इसमें भागलपुर का स्थान नहीं है. टॉप फाइव में सबसे शीर्ष पर नालंदा है. ऐसे में कहा जा उद्योग लगाने वाले जिले में भागलपुर फिसड्डी साबित होती जा रही है. ऐसी स्थिति रही तो भागलपुर में कुछ नहीं बचेगा.
इस्टर्न बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के महासचिव आलोक अग्रवाल ने बताया कि भागलपुर में वर्ष 1950 से लेकर 1990 तक का काल उद्योग की दृष्टि से स्वर्णिम काल रहा. पूरे देश में भागलपुर प्रक्षेत्र की पहचान एक औद्योगिक हब के रूप में थी. न केवल बड़ी संख्या में, बल्कि सूक्ष्म और छोटे औद्योगिक इकाइयां खुली, अपितु यह राज्य का पहला जिला था जहां काशी इस्पात, अरुण केमिकल्स, भागलपुर स्पन सिल्क मिल, विक्रमशिला सहकारिता सूत मिल और भारत सरकार के उपक्रम मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज़ ऐसी मध्यम श्रेणी की औद्योगिक इकाइयाें की स्थापना भी हुई थी. भागलपुर के अलावा सुल्तानगंज व कहलगांव में कई दाल और तेल मिल लगी थी.
1970 में भागलपुर शहर के बरारी क्षेत्र में उद्योग विभाग ने वृहद औद्योगिक प्रांगण की स्थापना की. इस औद्योगिक प्रांगण में उद्योग लगाने के इच्छुक उद्यमियों को रियायती दर पर शेड व भूमि उपलब्ध करायी गयी. इसका परिणाम यह हुआ कि न केवल मध्यम दर्जे की काशी इस्पात व मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज़ की स्थापना हुई. 40 से अधिक छोटी औद्योगिक इकाइयां खड़ी हुई. इसमें ट्रांसफार्मर से लेकर कीटनाशक दवाएं, पेंट, बिजली के तार, एल्यूमीनियम के कंडेक्टर, सिल्क वस्त्र, जूते, लौहारी समान, एल्युमीनियम के बरतन आदि तैयार होने लगे.
शहरी क्षेत्र में राम बंशी सिल्क मिल, बेनी सिल्क मिल, केके मार्का सरसों तेल मिल, शिव शंकर फ्लावर मिल, शिव गौरी फ्लावर मिल, शिव मिल, उमा शंकर तेल मिल आदि ऐसी औद्योगिक इकाइयां थी. इनके उत्पाद की मांग पूरे प्रदेश समेत नेपाल तक थी. भागलपुर के शारदा ग्रीटिंग कार्ड्स की अपनी अलग पहचान थी. भागलपुर के हवाई अड्डा के निकट भी शिव शंकर रोलिंग मिल की स्थापना हुई थी. जहां मकान में लगने वाला छड़ तैयार होता था.
औद्योगिक सलाहकार सीए प्रदीप झुनझुनवाला ने बताया कि भागलपुर आज भी प्रदेश में औद्योगिक राजधानी की पहचान रखता है, लेकिन लगातार शासन व प्रशासन की उदासीनता के कारण बड़ी व नयी औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं हो पायी. वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अशोक जिवराजका ने बताया कि 80 के दशक में पूरे प्रदेश में बिजली संकट औद्योगिक विकास में बाधक बना. अधिकतर बड़े व मध्यम उद्योग 1980 से 1990 के बीच बंद हो गये.
भागलपुर में आज भी उद्योग के नाम पर चौक-चौराहे व मोहल्ले हैं. इसमें बाल्टी कारखाना चौक, दाल मिल गली-सिकंदरपुर, गंजी मिल परिसर-तिलकामांझी, गुड़ बाजार के नाम पर गुड़हट्टा आदि है. वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अशोक जिवराजका ने बताया कि 50 के दशक में तिलकामांझी में केजरीवाल परिवार ने गंजी मिल की स्थापना की. यहां की बनी गंजी बिहार-झारखंड संयुक्त प्रदेश में आपूर्ति होती थी. उसी तरह बाजोरिया परिवार बौंसी-हंसडीहा मार्ग पर गुड़हट्टा चौक के आगे बाल्टी कारखाना खोला. वहीं 1960 में हमिरवासिया परिवार ने सिकंदरपुर में दाल मिल खोला. 1970 में सागरमल किशोरपुरिया ने हवाई अड्डा के समीप रोलिंग मिल खोला था. यहां लोहा का छड़ बनता था. अधिकतर उद्योग 20 से 25 साल ही चल पाया.
उद्योग विभाग की ओर से जारी टॉप फाइव डिस्ट्रिक्ट में नालंदा सबसे ऊपर है. इसके बाद शेखपुरा, मुंगेर, समस्तीपुर, लखीसराय व शिवहर शामिल है. टॉप बॉटम जिले में जमुई, गया, सीतामढ़ी, कैमूर व मधेपुरा शामिल है. भागलपुर अभी पूरे प्रदेश में 10वें स्थान पर पहुंच गया, जो कि कभी शीर्ष पर था. नालंदा में पीएमइजीपी, पीएमएफएमइ, एमएमयूवाइ, एमएसएमइ, स्टार्ट-अप में मिलाकर 59 प्रतिशत तक उद्योग लगाया गया, जबकि भागलपुर में लोगों ने 49 प्रतिशत उद्योग लगाने में दिलचस्पी ली.