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पूर्वी सिंहभूम डीसी विजया जाधव ने बदल दी सबर बच्ची की जिंदगी, अनाथ ‘सोमवारी’ को लिया गोद

पिता की चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई थी कि ठीक दो महीने बाद आठ अप्रैल को अचानक मां जोबनी सबर (24 वर्ष) की भी मौत हो गयी. वह भी टीबी से पीड़ित थीं. उस समय वह सात साल की थी

संदीप सावर्ण, जमशेदपुर: मैंने ईश्वर को नहीं देखा है, लेकिन कल्पना करती हूं कि ईश्वर होंगे तो कैसे होंगे. सोचती हूं कि ईश्वर होंगे तो जरूर मेरी बड़ी मम्मी (पूर्वी सिंहभूम की उपायुक्त विजया जाधव) के जैसे होंगे. यह कह कर गालूडीह की आठ साल की सोमवारी सबर फफक-फफक कर रो पड़ती है. काफी संभालने के बाद आठ साल की सोमवारी कहती है, उसके पिता लालटू सबर (25 वर्ष) की फरवरी, 2022 में मौत हो गयी. उन्हें टीबी थी.

अभी पिता की चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई थी कि ठीक दो महीने बाद आठ अप्रैल को अचानक मां जोबनी सबर (24 वर्ष) की भी मौत हो गयी. वह भी टीबी से पीड़ित थीं. उस समय वह सात साल की थी. जब मां का शव पड़ा था, तो उसे लगा कि वह सो रही है. वह सोच रही थी कि आज मां कितनी देर तक सोयेगी. उसे खाना नहीं देगी क्या?

लेकिन बाद में सभी ने कहा कि अब वह कभी नहीं उठेगी. अब खाना-पीना कौन देगा, यह किसी को नहीं पता. चारों तरफ अंधेरा छा गया. लेकिन आज उसकी जिंदगी बदल गयी है. उपायुक्त विजया जाधव ने सोमवारी को गोद ले लिया है. सोमवारी का दाखिला गोलमुरी स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय में कराया गया है, जहां उपायुक्त ना सिर्फ नियमित उसके पठन-पाठन का ख्याल रखती हैं, बल्कि खान-पान ,कपड़े, खिलौने से लेकर तमाम व्यवस्था करती हैं.

हर साल 24 जनवरी को देश राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाता है. इस स्टोरी को प्रकाशित करने का हमारा उद्देश्य है कि आप भी मदद के लिए आगे आयें और विकास में सहभागी बनें. सोमवारी से मिलने के बाद जीने का नजरिया बदल गया. उपायुक्त विजया जाधव बताती हैं कि कई बार आपको छोटी-छोटी घटनाएं जीवन में बड़ी सीख देती हैं. उन्हीं में से एक है सोमवारी सबर. उस मासूम के साथ ईश्वर ने जो किया, वह किसी पर भी पहाड़ टूटने के बराबर था.

आठ साल की बच्ची से बात करने के बाद जो आत्मविश्वास का संचार मुझमें होता है वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं. बैक टू बैक मीटिंग, निरीक्षण, जनता की समस्याओं का समाधान, कोर्ट केस, जनता दरबार, वीआइपी ड्यूटी समेत अन्य कार्यों में व्यस्त रहने के बाद जब कभी थक जाती हूं, खुद से बात करने का मन करता है तो सोमवारी से मिलने चली जाती हूं. उससे मिलने के बाद जीवन की सच्चाई से सीधा सामना होता है. वह मुझे पूरी आत्मीयता के साथ बड़ी मम्मी कहती है. उसके रूप में मुझे एक बिटिया मिली है. मैं सोमवारी का आजीवन ख्याल रखूंगी.

2008 में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की हुई शुरुआत. भारत में हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और भारत सरकार की ओर से 2008 में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत की गयी. राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य समाज और विभिन्न क्षेत्रों में लड़कियों के साथ की जाने वाली असमानता, भेदभाव और शोषण को लेकर जागरूकता फैलाना है.

टीचर बनना चाहती हूं :

सोमवारी. गोलमुरी में रहने वाली सोमवारी सबर कहती है कि वह विलुप्त हो रही आदिम जनजाति से ताल्लुक रखती है. मां-पिता दोनों नहीं हैं. लेकिन अब बड़ी मम्मी पढ़ा रही हैं. कोई कमी नहीं है. वह बड़ा होकर टीचर बनना चाहती है.

बेटियों की मदद करें, देश बदलेगा

उपायुक्त कहती हैं कि उन्होंने भले सोमवारी के रूप में एक बच्ची को गोद लिया है, उसकी मदद की है, लेकिन उसके जैसी हजारों-लाखों बेटियां देश में हैं, जिन्हें अगर थोड़ी सी मदद लोग कर दें तो वह भी अपने जीवन में सुधार ला सकती हैं. राष्ट्रीय बालिका दिवस को सिर्फ एक दिवस के रूप में मनाने के बजाय शपथ लेने की जरूरत है कि किसी जरूरतमंत बेटी की मदद करेंगे.

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