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मुलायम सिंह यादव को ‘पद्म विभूषण’ के सियासी मायने, भाजपा के मास्टर स्ट्रोक का 2024 में अखिलेश कैसे देंगे जवाब

मुलायम सिंह यादव को 'पद्म विभूषण' देने की घोषणा के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अब तक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है. पार्टी के ट्विटर अकाउंट से आज भी भाजपा पर निशना साधा गया. सपा स्वयं इसे लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर भाजपा के सियासी ​स्ट्रोक के तौर पर देख रही है.

Lucknow: उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और देश के रक्षामंत्री रह चुके समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्मविभूषण सम्मान दिए जाने के ऐलान के बाद सैफई में जश्न का माहौल है. यहां के लोगों के लिए मुलायम सिंह यादव सिर्फ एक नाम और नेता नहीं, बल्कि अभिभावक रहे. अब उनको ‘पद्म विभूषण’ देने की घोषणा के बाद लोग बेहद खुश हैं.

सम्मान के हकदार थे नेताजी

पूर्व सांसद तेज प्रताप सिंह यादव के मुताबिक नेताजी इसके हकदार थे. उन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवा में गुजारा. मुलायम सिंह के भतीजे और जिला पंचायत अध्यक्ष अभिषेक यादव ने कहा कि नेता जी को सम्मान मिलना परिवार के लिए गौरव की बात है. वहीं सैफई के प्रधान रामफल बाल्मीकि ने कहा कि नेता जी का जीवन गरीबों की भलाई में ही बीता है, उन्हें जितना सम्मान दिया जाए उतना ही कम है.

भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग

हालांकि मुलायम के समर्थकों में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो चाहता है कि उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा जाए. सपा संरक्षक के निधन के बाद से ही इसकी मांग की जा रही थी. वहीं उन्हें ‘पद्म विभूषण’ देने की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर लोग एक बार फिर अपनी मांग दोहराते नजर आए.

भाजपा नेताओं ने किया स्वागत

इन सबके बीच इस मामले को भाजपा की दूरगामी सियासत से भी जोड़कर देखा जा रहा है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत ‘पद्म विभूषण’ पुरस्कार से सम्मान उनकी राष्ट्र सेवा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है. देश, प्रदेश और समाज के प्रति उनके योगदान सदैव स्मरणीय हैं. वहीं मुलायम की छोटी बहू और भाजपा नेता अपर्णा यादव ने कहा कि पूजनीय पिताजी को पद्म भूषण पुरस्कार से विभूषित किए जाने पर मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के इस निर्णय का स्वागत करती हूं.

भाजपा के सियासी स्ट्रोक के बीच अखिलेश की चुप्पी

सबसे अहम बात है कि इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अब तक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है. पार्टी के ट्विटर अकाउंट से आज भी भाजपा पर निशना साधा गया. माना जा रहा है कि सपा स्वयं इसे लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर भाजपा के सियासी ​स्ट्रोक के तौर पर देख रही है. भाजपा चुनावी रणनीति के तहत लगातार ओबीसी वर्ग को साधने में जुटी हुई है. इस बार मुलायम के जरिए उसने पिछड़ों को अपने पाले में लाने का दांव चला है.

मंडल कमंडल की राजनीति में दोनों दल धुर विरोधी

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक मंडल कमंडल की राजनी​ति में भाजपा और सपा दोनों एक दूसरे के धुर विरोधी रहे. भाजपा नेता पूर्व में मुलायम सिंह यादव का नाम कारसेवकों के दमन और राम मंदिर के विरोधी के तौर पर पर इस्तेमाल करते रहे हैं. इसके अलावा विभिन्न मौकों पर उन्हें मुल्ला मुलायम भी कहने से पीछे नहीं हटे.

पीएम मोदी को दी थी दोबारा सरकार बनाने की शुभकामनाएं

ऐसे में मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से सम्मानित करने के निर्णय को सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है. हालांकि व्यक्गित तौर पर मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं से बेहद अच्छे संबंध रहे. मुलायम ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को फिर सरकार बनाने की शुभकामनाएं देकर सियासी हलचल पैदा कर दी थी. इसके बावजूद दोनों दलों की सियासी विचाराधारा पूरी तरह से अलग है.

अखिलेश के लिए भाजपा को घेरना होगा मुश्किल

अब भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह अपने वैचारिक विरोधियों का भी पूरा सम्मान करती है. साथ ही पिछड़ों के सम्मान के लिए प्रतिबद्ध है, जबकि सपा और अन्य दल उनके वोटबैंक पर सिर्फ सियासत करते नजर आते हैं. ऐसे में अखिलेश यादव के लिए भाजपा को इस मुद्दे पर घेरना अब मुश्किल होगा.

लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनाएगी पार्टी

लोकसभा चुनाव में भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भगवा खेमा मुलायम को सम्मान देने का मुद्दा बनाए और कहे कि अखिलेश यादव ने जहां पुत्र होते हुए पिता का अपमान किया, वहीं मोदी सरकार ने उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि क्योंकि मुलायम को ‘पद्म विभूषण’ देने की घोषणा के बाद सपा के अधिवेशन के पुराने वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिसमें परिवार की कलह खुलकर सामने आ गई थी. इसके बाद अखिलेश यादव स्वयं पाटी के अध्यक्ष बन गए थे, जबकि पिता को इस पद से हटाकर उन्होंने संरक्षक बना दिया था.

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