एनएचआरसी ने झारखंड के रिनपास और सीआइपी सहित देश के 46 सरकारी मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों की बदहाली पर सवाल उठाया है. उसने स्थिति को दयनीय और अमानवीय करार दिया है. यह खुलासा सर्वे और स्थल निरीक्षण के दौरान हुआ. इस संबंध में एनएचआरसी ने मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों की गंभीर स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है.
केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण सचिव, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, राज्य के मुख्य सचिवों व प्रमुख स्वास्थ्य सचिवों, पुलिस महानिदेशक तथा पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी की गयी है. इसके अलावा सभी राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेशों के देशभर के 46 मानसिक संस्थानों के निदेशकों से छह सप्ताह में विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है. राज्य के मुख्य सचिवों, स्वास्थ्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को एक कार्रवाई रिपोर्ट पेश करनी होगी.
आयोग ने पूछा है कि कैसे ठीक किये गये रोगियों को मानसिक अस्पतालों में उनकी स्वतंत्रता को कम करके अवैध रूप से रखा जा रहा है. अस्पताल के कर्मचारियों सहित स्वास्थ्य पेशेवरों की भर्ती प्रक्रिया की स्थिति, समय सीमा, अनुकूल माहौल बनाने के लिए किये गये उपाय, एमफिल कोर्स के लिए प्रोफेसरों की नियुक्ति, जहां भी आवश्यक हो, पर्याप्त संख्या में शिक्षण स्टाफ के साथ, आपातकालीन सेवाओं की स्थिति सहित अन्य मसलों पर आंकड़े मांगे गये हैं. भोजन और वास्तविक भुगतान के लिए सरकार द्वारा स्वीकृत राशि से संबंधित विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया गया है.
एनएचआरसी ने कहा है कि मानसिक स्वास्थ्य संस्थान दयनीय परिस्थितियों में हैं और बहुत ही दयनीय प्रबंधन का चित्रण करते हैं. मानसिक रूप से बीमार रोगियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. ठीक किये गये मरीजों को अस्पतालों में अवैध रूप से रखा जा रहा है. उन्हें उनके घर या समुदाय में नहीं भेजा जा रहा है. मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में डॉक्टरों और कर्मचारियों की भारी कमी है.