दीपक राव
भागलपुर. रेशम नगरी के रूप में पूरी दुनिया में पहचान रखने वाला भागलपुर में अब लिनेन को बढ़ावा मिलने लगा है. सिल्क के सूत के अभाव में बुनकरों का रूझान लिनेन की ओर बढ़ने लगा है. इतना ही नहीं चार साल पहले लिनेन की साड़ियाें को तैयार करना प्रयोग रूप में शुरू हुआ, लेकिन दो साल पहले कोरोना महामारी के कारण पूरे सिल्क सिटी का कारोबार थमा रहा. अब एक बार फिर कारोबार रेस में आ रहा है. कोरोना काल के बाद एक वर्ष में ही महानगरों में भागलपुरी लिनेन की साड़ियों की मांग चौगुनी तक बढ़ गयी. ठंड का असर कम होने के बाद गर्मी ने दस्तक दे दी है. ऐसे में भागलपुर के बुनकरों के लिए लिनेन कपड़े का कारोबार आशा की किरण के रूप दिख रहा है. दरअसल दो साल के कोरोना काल में बुनकरों का कारोबार चौपट होने के बाद रूस व यूक्रेन युद्ध का साइड इफैक्ट भी सिल्क उद्योग पर पड़ा. फिर ठंड में कारोबार थम सा गया था.
बुनकर क्षेत्र से जुड़े लोगों की मानें, तो सिल्क का कारोबार पहले भागलपुर से 500 से 1000 करोड़ रुपये सालाना था, वहीं घटकर 50 से 100 करोड़ रुपये पर आ गया. अब लिनेन का कारोबार 200 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. बुनकर प्रतिनिधि मो इबरार अंसारी ने बताया कि 2010 में भागलपुर में लिनेन के कपड़े का प्रचलन बढ़ा. सिल्क से सस्ता और सिल्क जैसा ही आनंद देने वाला कपड़ा होने पर लोगों का रूझान लिनेन की ओर बढ़ने लगा. 2017-18 में प्रयोग के तौर पर लिनेन की साड़ियां तैयार की गयी. अब यहां की बनी लिनेन की साड़ियों की मांग दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु व चेन्नई जैसे महानगरों में बढ़ गयी.
लिनेन व सिल्क वस्त्रों के उद्यमी स्वपन सिन्हा ने बताया कि महानगरों की महिलाओं को सस्ता और बेहतर लुक देने वाली साड़ी चाहिए. उन्होंने यह भी बताया कि बेंगलुरु, गुजरात व मुंबई में भी लिनेन के कपड़े तैयार होते हैं, लेकिन सस्ता नहीं होता. यहां पर प्लेन, चेक, पल्लू बॉर्डर पर पहले साड़ी तैयार की गयी. इस बार जकार्ड पर भी साड़ियां तैयार की जा रही है. लिनेन की साड़ियां 1000 से 2000 तक बेहतर है. वहीं सिल्क की साड़ियां 2200 से लेकर 5000 रुपये तक उपलब्ध है. अभी लिनेन की साड़ियां नरगा, हसनाबाद, चंपानगर, नाथनगर क्षेत्र में बन रही है, जबकि सिल्क की साड़ियां पुरैनी, हुसैनाबाद, दरियापुर, मिर्जाफरी आदि क्षेत्रों में हो रही है.
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बुनकर संघर्ष समिति के अध्यक्ष नेजाहत अंसारी ने बताया कि बुनकर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सिल्क की जगह अन्य धागे जैसे सूती, लिनेन आदि से भी कपड़े तैयार करने लगे हैं. 30 फीसदी बुनकर अब महानगरों में दूसरे के लूम चलाने को विवश हैं. सिल्क व लिनेन उद्यमी प्राणेश राय ने बताया कि गुजरात सूरत में भागलपुरी सिल्क के नाम पर पॉलिस्टर धागा से उसी स्वरूप में साड़ियां व कपड़े तैयार किये जा रहे हैं. इसे भागलपुरी सिल्क के नाम पर सस्ता कपड़ा बेच रहे हैं. इससे भागलपुरी सिल्क की बदनामी हो रही है. लोग भागलपुरी सिल्क का नाम सुनकर ही परहेज करने लगे हैं.