Budget Expectations : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केंद्रीय बजट की घोषणा करेंगी. साल के बहुप्रतीक्षित वित्तीय और आर्थिक प्रस्तुति से पहले अधिकांश उद्योग क्षेत्रों को केंद्रीय बजट 2023-2024 से काफी उम्मीदें हैं. शिक्षा जगत में भी कोविड-19 के दौरान स्कूल बंद होने से सभी शैक्षणिक स्तर प्रभावित हुए. शिक्षा जगत, शिक्षक और छात्रों को भी इस साल के बजट से काफी उम्मीदें हैं. आइए, जानते हैं कि क्या हैं शिक्षा जगत की उम्मीदें…
बताते चलें कि कोरोना महामारी के दौरान स्कूल बंद होने से शिक्षा के क्षेत्र में लाखों छात्र प्रभावित हुए थे. छात्रों की एक बड़ी आबादी को कोरोना के प्रभाव में स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. इससे शिक्षा जगत में पहले ही बड़ा नुकसान हो चुका है. राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2021 में कोरोना से शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले नुकसान को स्पष्ट किया गया है. शिक्षाविदों और विशेषज्ञों की मानें, तो कोरोना महामारी की वजह से शिक्षा की गुणवत्ता में कई स्तरों पर संतुलन बिगड़ गया.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षक प्रशिक्षण और प्रौढ़ शिक्षा के लिए बजट आवंटन 2021-22 में 250 करोड़ था, जो 2022-23 में घटकर 127 करोड़ रह गया. भले ही समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) ने 2022-23 में बजटीय आवंटन में 6000 करोड़ की वृद्धि देखी. फिर भी यह 2020-21 के बजटीय आवंटन से कम था. इसलिए, यह उम्मीद की जाती है कि इस वर्ष शिक्षक प्रशिक्षण और एसएसए को एनईपी 2020 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अधिक बजट प्राप्त होगा.
मीडिया की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि शैक्षिक सेवाओं पर जीएसटी (वस्तु एवं सेवाकर) को 10 साल की अवधि के लिए हटा दिया जाना चाहिए. इसमें एड-टेक, प्रशिक्षण, कोचिंग और अन्य संबंधित शैक्षणिक गतिविधियां शामिल हैं. शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि यह वास्तव में समझ में नहीं आता कि शिक्षा पर गतिविधियों से जीएसटी और शिक्षा उपकर एकत्र किया जा रहा है.
शिक्षा क्षेत्र में मानव संसाधन के क्षमता निर्माण के लिए एक अलग कोष बनाया जा सकता है. यह शिक्षा में प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के साथ-साथ भारत में सरकारी और निजी संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता को उन्नत करेगा. वर्तमान में, शिक्षकों के लिए ऑनलाइन शिक्षा या प्रशिक्षण के लिए दीक्षा प्लेटफॉर्म मौजूद है, लेकिन नियमित शिक्षकों की बुनियादी तकनीकी समझ में सुधार करने की आवश्यकता है और संस्थानों को तकनीकी क्षेत्र में उचित प्रतिस्पर्धा के साथ अपने स्वयं के सीखने के प्लेटफॉर्म के साथ आने की अनुमति दी जानी चाहिए.
शिक्षा क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि पूर्व-प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भौतिक बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षित मानव संसाधनों की जरूरत है. हाल ही में भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति के माध्यम से एक नए ढांचे पर जोर दिया है, जिसमें पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को विधिवत शामिल किया गया है. इसके लिए वित्तीय उपाय अभी भी आधे-अधूरे हैं. पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के प्रति कोई स्पष्ट नीति और निवेश योजना नहीं है. इस वर्ष सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह पूर्व-प्राथमिक शिक्षा और मुख्यधारा की शिक्षा में इसके एकीकरण की दिशा में एक स्पष्ट दृष्टि प्रदान करे.
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शिक्षा विशेषज्ञों की राय यह भी है कि माध्यमिक शिक्षा स्तर से ही विद्यालयों में व्यावसायिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए. यह एक अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसके लिए सरकार से निर्णायक प्रयास की आवश्यकता है. केवल कुछ चुनिंदा स्कूलों में माध्यमिक शिक्षा स्तर से आगे व्यावसायिक पाठ्यक्रम चल रहे हैं. नई शिक्षा नीति के मानदंडों के अनुसार, छात्रों को उनके कैरियर चयन के प्रारंभिक चरण में व्यावसायिक शिक्षा के लिए मौका दिया जाना चाहिए. इससे भारत में कार्यबल के कौशल विकास के लिए इसके दूरगामी परिणाम होंगे.
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