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रांची में भी हो सकती है धनबाद अग्निकांड जैसी घटना, 3000 भवनों में सुरक्षा के इंतजाम नहीं, फिर भी नक्शा पास

कागजों पर भी सभी मानकों को पूरा दिखाया गया है. कुल मिलाकर हमारी जिंदगी खतरे में है. बुधवार को जब प्रभात खबर की टीम ने इन भवनों का जायजा लिया, तो कई बहुमंजिली इमारतों में फायर फाइटिंग की सुविधा लचर दिखी

धनबाद में अगलगी की घटना के बाद भय का आलम है. राजधानी की असुरक्षित बहुमंजिली इमारतों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. राजधानी के तीन हजार भवनों और मॉल के पास फायर डिपार्टमेंट का एनओसी है, पर हकीकत में यहां पर फायर फाइटिंग की सुविधाएं नदारद या नहीं के बराबर हैं. इसके बावजूद एनओसी के साथ-साथ भवनों का नक्शा भी नगर निगम ने स्वीकृत कर दिया है.

कागजों पर भी सभी मानकों को पूरा दिखाया गया है. कुल मिलाकर हमारी जिंदगी खतरे में है. बुधवार को जब प्रभात खबर की टीम ने इन भवनों का जायजा लिया, तो कई बहुमंजिली इमारतों में फायर फाइटिंग की सुविधा लचर दिखी. दूसरी ओर इसके बाद भी इन भवनों की ना तो कभी जांच होती है और ना ही कार्रवाई. ऐसे में कोई हादसा होने पर लोगों की जान बचाना और रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना मुश्किल साबित होगा.

बताते चलें कि जब भवनों के लिए नक्शे को मंजूरी दी जाती है, तो इसमें यह शर्त रखी जाती है कि फायर फाइटिंग के सारे प्रावधानों को पूरा करना होगा. इसके लिए एनओसी के लिए फायर डिपार्टमेंट के पास भेजा जाता है. वहां से एनओसी मिलने के बाद जब फाइल निगम के पास आती है, तो वह इसे स्वीकृत कर देता है. इसके बाद जब बिल्डिंग बनकर तैयार हो जाती है, तो इसमें फायर फाइटिंग के मानकों का निरीक्षण करने कोई नहीं जाता है. ऐसे में बिल्डर की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह मानकों को पूरा करे या नहीं. अधिकतर में कागजों में ही फायर फाइटिंग का उपकरण लगा हुआ है.

शहर में 15 बिल्डिंग 12 मंजिल से ऊपर की :

पिछले पांच सालों में रांची शहर में काफी संख्या में ऊंची बिल्डिंग का निर्माण हुआ है. इनमें से 15 बिल्डिंग ऐसी हैं, जिन्हें 12 मंजिल से ऊपर बनाने की अनुमति दी गयी है. इसमें से सात कांके रोड, लालपुर चौक में दो और अरगोड़ा चौक व कटहल मोड़ मार्ग में छह बिल्डिंग हैं. इन भवनों में से सबसे अधिक ऊंचाई वाला भवन लालपुर बाजार के समीप स्थित बिल्डिंग हैं. इसकी ऊंचाई 22 मंजिला है.

फायर ब्रिगेड के पास भी सुविधा नहीं :

राजधानी में चार फायर ब्रिगेड स्टेशन धुर्वा , डोरंडा, आड्रे हाउस तथा पिस्का मोड़ में हैं. लेकिन इनके पास सिर्फ 15 बड़ी तथा चार छोटी फायर ब्रिगेड की गाड़ियां है. 15 साल पुराना एक हाउड्रोलिक प्लेटफार्म है, जो 14 मंजिला बिल्डिंग में रेस्क्यू कर सकता है. पेट्रोलियम पदार्थों की आग के लिए पंद्रह बड़े वाहन में फोमवाले दो वाहन है़ं यदि 22 वें मंजिल में आगजनी की कोई बड़ी घटना हो जाये, तो राहत या बचाव कार्य करना फायर ब्रिगेड के भरोसे नही हो सकता है. छोटे फायर ब्रिगेड वाहन में मात्र 200 लीटर पानी रहता है. संकीर्ण गलियों में यदि आग लगी तो राजधानी में मात्र चार छोटे फायर ब्रिगेड वाहन से आग पर काबू पाना मुश्किल होगा.

क्या है गाइडलाइन :

जी टू या 15 मीटर से ज्यादा सभी भवनों को बहुमंजिली इमारतों की श्रेणी में रखा जाता है. बहुमंजिली इमारत के लिए फायर ब्रिगेड के लिए अलग से गाइडलाइन है. गाइडलाइन में मुख्य रूप से हर बहुमंजिली अपार्टमेंट में अंडर ग्राउंड स्टैटिक टैंक होना चाहिए. उस टैंक की कैपेसिटी 50 से 80 हजार लीटर की होनी चाहिए़ उसके अलावा छत पर भी 60-80 लीटर हजार का टैंक होना चाहिए. हर फ्लैट पर हाइडेंट निकल बॉक्स होना चाहिए. उस बॉक्स में हॉज पाइप रहता है.

उसमें हॉज रिल होता है , जो 60 फीट का होता है. इतना ही नहीं, बेसमेंट पर स्पींक्लर होना चाहिए, जो हर फ्लोर पर पहुंच सके़ हर फ्लोर पर दो से चार सीज फायर उपकरण होने चाहिए़, जिससे आग लगने पर इसका आम लोग प्रयोग कर आग को प्राथमिक रूप से काबू कर सकें. हर फ्लोर पर पोर्टेबल फायर फाइटिंग रखना जरूरी है. उक्त सारी प्रक्रिया जिस बहुमंजिली इमारतों में होती है, उन्हें ही फायर का एनओसी दिया जाता है.

निरीक्षण में नहीं मिली फायर फाइटिंग की पर्याप्त व्यवस्था :

पिस्का मोड़ पर ओझा मार्केट के निकट शिव जगदीश टावर और श्रीराम रेसिडेंसी आदि छोटे फ्लैट हैं, लेकिन इन दोनों में फायर सेफ्टी का प्रबंध नहीं हैं. सोसाइटी में रहने वाले रंजीत कुमार ने बताया कि सुरक्षा मानक का ख्याल तो रखा ही जाना चाहिए. निर्माण के समय ही इसका अनुपालन होना चाहिए था और इस पर बिल्डर का ध्यान होना चाहिए था.

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