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झारखंड: राज्यपाल को भेजने से पहले विधि विभाग ने खतियान विधेयक को करार दिया था असंवैधानिक, जानें क्या कहा था

विधि विभाग की इस राय के बावजूद राज्य सरकार ने इस विधेयक को राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा. राज्यपाल रमेश बैस ने विधेयक की जांच के बाद राज्य सरकार को लौटा दिया.

रांची, शकील अख्तर: 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता और नौकरी से संबंधित विधेयक की समीक्षा के बाद विधि विभाग ने ही उसे असंवैधानिक करार दिया था. साथ ही यह भी लिखा कि स्थानीयता के आधार पर नियुक्तियों को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है, विधानसभा को नहीं.

विधि विभाग की इस राय के बावजूद राज्य सरकार ने इस विधेयक को राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा. राज्यपाल ने विधेयक की जांच के बाद राज्य सरकार को लौटा दिया. राज्यपाल ने भी अपनी आपत्ति में इस बात का जिक्र किया है कि नौकरियों को आरक्षित करने से संबंधित कानून बनाने का अधिकार सिर्फ पार्लियामेंट को है, राज्य की विधानसभा को नहीं. इसलिए यह विधेयक विधि सम्मत नहीं है और न ही संविधान सम्मत.

विधेयक पर विधि विभाग ने सात दिसंबर को अपनी राय कार्मिक विभाग को भेजी थी. विधानसभा से यह बिल 11 नवंबर को ही पारित हो चुका था. झारखंड सरकार ने स्थानीयता को परिभाषित करने के लिए तैयार विधेयक (झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022) कैबिनेट से पारित कराने के बाद विधानसभा में पेश किया था.

विधानसभा में इस विधेयक में संशोधन करते हुए एक प्रावधान (6 ‘क’) जोड़ा गया. विधेयक के खंड-6 ‘क’में यह जोड़ा गया कि राज्य में तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियां स्थानीय लोगों को ही दी जायेंगी. इस संशोधन के साथ विधेयक पारित होने के बाद इसे कार्मिक प्रशासनिक सुधार विभाग में लौटा दिया गया.

इसके बाद कार्मिक विभाग ने विधेयक की समीक्षा के लिए विधि विभाग के पास भेजा. विधि विभाग ने संशोधित विधेयक की समीक्षा की और उसे असंवैधानिक करार दिया. विधि विभाग ने विधेयक को असंवैधानिक करार देने के लिए हाइकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और संविधान पीठ के फ़ैसलों को बतौर उदाहरण पेश किया.

अपनी राय में कई फैसलों का उल्लेख किया है विधि विभाग ने : विधि विभाग ने अपनी राय के पक्ष में पांच जजों के बेंच द्वारा एवीएस नरसिम्हा राव व अन्य बनाम आंध्र प्रदेश व अन्य के मामले में दिये गये फैसले को आधार बनाया. इसके अलावा सी लीला प्रसाद राव व अन्य बनाम आंध्र प्रदेश व अन्य, केशवानंद भारती बनाम केरल, वामन राव बनाम भारत सरकार, एसआर चौधरी बनाम पंजाब सरकार, अजय हसिया बनाम खालिद मुजीब, सत्यजीत कुमार बनाम राज्य सरकार के मामले में दिये गये फैसलों को भी बतौर उदाहरण पेश किया.

विधि विभाग ने इन फैसलों के हवाले से यह लिखा कि यह संशोधन माननीय न्यायालयों के फैसलों के अनुरूप प्रतीत नहीं होता है. विधि विभाग ने विधेयक में किये गये संशोधन की व्याख्या करते हुए यह लिखा कि इस संशोधन का तात्पर्य यह है कि तृतीय व चतुर्थ वर्गीय पद स्थानीय व्यक्तियों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षित हो जायेगा.

साथ ही अन्य नागरिकों के अलावा अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के वैसे सदस्य भी राज्य सरकार के तृतीय व चतुर्थ वर्गीय पदों पर नौकरी पाने के योग्य नहीं रहेंगे, जो इस विधेयक में परिभाषित स्थानीय की परिभाषा के दायरे में नहीं आयेंगे.

विधि विभाग ने विधेयक में किये गये इस संशोधन को संविधान के अनुच्छेद 14,1 5 और 16(2) में प्रदत्त मूल अधिकारों के विपरीत बताया. साथ ही यह भी कहा कि स्थानीयता के आधार पर नौकरियों को आरक्षित करने से संबंधित कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है. राज्य सरकार स्थानीयता के आधार पर नौकरियों को आरक्षित करने का कानून नहीं बना सकती.

राज्यपाल की शक्तियों का भी उल्लेख :

विधि विभाग ने विधेयक की समीक्षा के दौरान पांचवी अनुसूची में राज्यपाल की शक्तियों का भी उल्लेख किया. इसमें यह कहा गया कि पांचवी अनुसूची के पैरा-5 (1) में राज्यपाल को यह शक्ति है कि वह अनुसूचित क्षेत्र में किसी कानून को लागू होने से रोकें या उसमें संशोधन करें. उप विधि परामर्शी सुनील दत्त द्विवेदी ने विधेयक की समीक्षा के बाद अपनी राय से संबंधित रिपोर्ट अपर विधि परामर्शी को भेजी.

अपर विधि परामर्शी की राय के बाद इसे विधि सचिव के पास भेजा गया. विधि सचिव नलिन कुमार की टिप्पणी के बाद विधेयक कार्मिक प्रशासनिक विभाग को लौटा दी गयी. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा कि उपरोक्त समीक्षा कर दी गयी है. संशोधित विधेयक विधानसभा से पारित किया जा चुका है.

विधि विभाग ने लिखा

विधेयक में संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16(2) में प्रदत्त मूल अधिकारों के विपरीत है

स्थानीयता के आधार पर नौकरियों को आरक्षित करने से संबंधित कानून बनाने का अधिकार सिर्फ पार्लियामेंट को है, राज्य की विधानसभा को नहीं

स्थानीयता विधेयक : एक नजर में

11 नवंबर : विधानसभा से बिल पास हुआ लेकिन इससे पहले इसमें प्रावधान 6-क जोड़ा गया

04 दिसंबर : कार्मिक ने विधि विभाग को बिल भेजा

07 दिसंबर : विधि ने कार्मिक को राय भेजी

11-12 दिसंबर : राज्यपाल को बिल भेजा गया

29 जनवरी : राज्यपाल ने बिल वापस किया

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