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JMM Foundation Day: नशाबंदी और झारखंडियों काे राेजगार 50 साल से झामुमाे का रहा मुख्य मुद्दा

50 साल में झारखंड का पूरा परिदृश्य बदल गया है. चार फरवरी, 1973 काे गाेल्फ मैदान में प्रस्ताव पारित कर झारखंड मुक्ति माेरचा ने जाे संकल्प लिया था, उसमें से कई पूरे हाे चुके हैं लेकिन कई अभी अधूरे हैं. सबसे बड़ी उपलब्धि है अलग झारखंड राज्य का बनना.

धनबाद, अनुज कुमार सिन्हा : आज (4 फरवरी) जेएमएम का स्थापना दिवस है. ठीक 50 साल पहले 4 फरवरी, 1973 काे धनबाद के गाेल्फ मैदान में झारखंड मुक्ति माेरचा का पहला खुला महाधिवेशन हुआ था. वह झारखंड आंदाेलन के लिए ऐतिहासिक दिन था. तब शिबू साेरेन, विनाेद बिहारी महताे और एके राय की संयुक्त ताकत उस दिन दिखी थी. लाख से ज्यादा लाेग सभा में माैजूद थे. बड़ी रैली थी. तब विनाेद बिहारी महताे अध्यक्ष थे और शिबू साेरेन महासचिव. उस दिन से झारखंड मुक्ति माेरचा से लंबा सफर तय कर लिया है और अलग झारखंड राज्य पाने के बाद आज सत्ता में है.

50 साल में झारखंड का पूरा परिदृश्य बदल गया है. चार फरवरी, 1973 काे गाेल्फ मैदान में प्रस्ताव पारित कर झारखंड मुक्ति माेरचा ने जाे संकल्प लिया था, उसमें से कई पूरे हाे चुके हैं लेकिन कई अभी अधूरे हैं. सबसे बड़ी उपलब्धि है अलग झारखंड राज्य का बनना. इसके लिए झारखंड मुक्ति माेरचा के सैकड़ाें कार्यकर्ताओं काे शहादत देनी पड़ी. लेकिन स्थानीयता, राेजगार, नशाबंदी, भाषा-संस्कृति की लड़ाई आज भी जारी है. मुख्यमंत्री हेमंत साेरेन जिन मुद्दाें काे आज जनता के बीच लेकर जा रहे हैं, उसकी बुनियाद शिबू साेरेन ने 50 साल पहले रखी थी. इन 50 सालाें में विनाेद बिहारी महताे, निर्मल महताे लेकर शिबू साेरेन तक अध्यक्ष बने. सभी की प्राथमिकता लगभग एक ही रही.

झारखंड मुक्ति माेरचा जानता था कि नशाखाेरी से कितना नुकसान हाे रहा है और यही कारण था कि 1973 के पहले महाधिवेशन में ही महासचिव की हैसियत से शिबू साेरेन ने झारखंड में नशांबदी का प्रस्ताव लाया था. जब 1980 में शिबू साेरेन पहली बार सांसद बने ताे संसद में दिये गये अपने पहले भाषण में भी नशाबंदी का मामला उठाया था. जब निर्मल महताे झामुमाे के केंद्रीय अध्यक्ष बने ताे 1986 में रांची के महाधिवेशन में उन्हाेंने कहा था-सरकार शिक्षा के बजाय दारू पिलाने पर ज्यादा जाेर दे रही है. उसी समय यानी 1986 में ही निर्मल महताे ने स्कूल तक की शिक्षा स्थानीय भाषाओं में देने की मांग की थी.

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आज भी यही मांग हाे रही है. पहले महाधिवेशन में ही झारखंडियाें काे राेजगार देने की बात कही गयी थी. 1973 में ही शिबू साेरेन ने प्रस्ताव रखा था-झारखंड में हाेनेवाली नियुक्तियाें काे झारखंडी बेराेजगाराें से भरा जाये और आरक्षण नीति काे सभी स्तर पर लागू किया जाये. झारखंडी भाषाओं काे संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज किया जाये. 50 साल में राज्य ताे बन गया, लेकिन इन मुद्दाें का समाधान नहीं हाे सका है. झारखंडी बेराेजगाराें का मामला आज भी राजनीतिक-कानूनी दावपेंच के बीच झूल रहा है.

झारखंड मुक्ति माेरचा सत्ता में है और उसने दुमका में एक दिन पहले हुई झारखंड दिवस रैली में भी नशाबंदी पर जाेर दिया. स्थापना काल से नशाखाेरी के खिलाफ झामुमाे रहा है. खुद शिबू साेरेन ने अपने पूरे आंदाेलन में नशाबंदी लागू करने का प्रयास किया. अब इस पर सरकार काे कठाेर फैसले लेने की जरूरत है ताकि झारखंड में पूर्ण नशाबंदी लागू हाे सके.

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