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पटना में घर की छत पर उगा रहे जरूरत की ऑर्गेनिक सब्जियां, बिहार सरकार भी कर रही मदद, जानें कैसे

पिछले दो साल में कोरोना महामारी ने बहुत कुछ बदला है. लोगों के रहनसहन का ढंग तो बदला ही, खेती- बाड़ी के तौर-तरीके में भी बहुत कुछ बदलाव आया है. इस बीच एक नया ट्रेंड राजधानी के लोगों में देखने को मिला है छत पर बागवानी का.

जूही स्मिता, पटना

पिछले दो साल में कोरोना महामारी ने बहुत कुछ बदला है. लोगों के रहनसहन का ढंग तो बदला ही, खेती- बाड़ी के तौर-तरीके में भी बहुत कुछ बदलाव आया है. इस बीच एक नया ट्रेंड राजधानी के लोगों में देखने को मिला है छत पर बागवानी का. हालांकि ऐसी बागवानी पहले भी होती थी, लेकिन कोरोना ने इसमें तेजी ला दी. लोग घरों में बंद रहे, तो उन्हें घर की छत पर ही कुछ उगाने का जज्बा आया और नतीजा दिखा छत पर ‘ऑर्गेनिक गार्डनिंग’ का. कभी लोग सिर्फ फूलदार पौधे लगाकर अपने घर की छत को सजाते थे, लेकिन अब फल और सब्जियां भी गमले में उगा कर रसोई की जरूरतें पूरी की जा रही हैं. कुछ लोग तो इसे पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं. ऐसे लोग केमिकल खाद न डालकर कंपोस्ट और गोबर से उपज ले रहे हैं. अगर छोटा परिवार हो तो हर दिन की सब्जी या फल की खपत इन्हीं छतों से पूरी हो रही है.

दो हजार स्क्वायर फुट में बनाया गार्डन

इस्ट बोरिंग कैनाल रोड के रहने वाले मनोहर सिंह बताते हैं कि वे साल 2000 से ही छत पर गार्डनिंग कर रहे हैं. इनके छत पर 350 गमले हैं , जिनमें फल-फूल और सब्जियां लगी हैं. 2000 स्क्वायर फुट में बने इस गार्डन में गमलों के अलावा क्यारियां भी हैं, जिसमें केला, पपीता, आंवला आदि के पौधे लगे हैं. सेंटर में घास का लॉन भी है. गार्डनिंग की वजह से उनके छत पर चिड़ियों के अलावा तितलियां और मधुमक्खियां भी नजर आ जाती हैं. वे बताते हैं कि उनके गार्डन में हर सीजन के फल और सब्जियां लगाये जाते हैं जिसकी देख-रेख वे खुद करते हैं.अभी उनके गार्डन में बंद गोभी, कद्दू, बैंगन, टमाटर, लहसुन, प्याज, सेम, फ्रेंच बिन्स आदि है.

ब्रजेश बाहर से नहीं खरीदते सब्जियां

कंकड़बाग के रहने वाले ब्रजेश तिवारी पिछले 20 वर्षों से टेरेस गार्डनिंग कर रहे हैं. वे बताते हैं कि बचपन से ही मुझे गार्डनिंग का शौक है. बाजार की सब्जियों में काफी ज्यादा केमिकल का यूज किया जाता है, जो खाने में टेस्टी नहीं होती, उल्टे वो हमें बीमार बनाती हैं. ऐसे में घर की नेचुरल तरीके से उगी सब्जियां पौष्टिकता से भरपूर होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक साबित होती हैं. अपने गार्डन में खाद के तौर पर गोबर और घर से निकलने वाले फलों और सब्जियों के छिलके से मैं खुद कंपोस्ट खाद तैयार करता हूं और उसी का यूज करता हूं. गार्डन में इतनी सब्जियां हो जाती हैं कि बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती. मुख्य रूप से मैं सीजनल सब्जियों को उगाता हूं. टेरेस गार्डनिंग के चलते स्वच्छ हवा और ताजी सब्जियां हमें आसानी से मिल जाती हैं.

बिहार सरकार की है ‘छत पर बागवानी’ योजना

आजकल शहरों में भी फार्मिंग की तरह गार्डनिंग का चलन बढ़ता जा रहा है. अभी तक सरकार खेती-किसानी के लिए योजनाएं चलाती रही थी, लेकिन अब शहरों में हरियाली बढ़ाने के लिए गार्डनिंग को प्रमोट किया जा रहा है. इसके लिए बिहार सरकार द्वारा ‘छत पर बागवानी’ योजना चलायी जा रही है. इसके तहत घर की छत या गार्डन में ऑर्गेनिक सब्जियां और फल उगाने के लिए 25,000 रुपये तक का अनुदान दिया जाता है. इस स्कीम का लाभ लेकर आप भी अपने घर पर दो गार्डनिंग यूनिट लगा सकते हैं. शिक्षण संस्थान और अपार्टमेंट में भी गार्डनिंग यूनिट के लिए सब्सिडी दी जाती है. बागवानी निदेशालय पटना में गार्डनिंग को प्रमोट करने के लिए छत पर बागवानी योजना चला रही है. इस स्कीम के तहत घर की छत पर 300 वर्ग फीट के खुले स्थान पर गार्डनिंग यूनिट स्थापित की जा सकती है, जिसकी लागत 50,000 रुपये निर्धारित हुई है. यदि आपकी गार्डनिंग यूनिट में शुरुआती खर्च 50,000 रुपये आ रहा है तो 50 प्रतिशत सब्सिडी या 25,000 रुपये का अनुदान हासिल कर सकते हैं.

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