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Dobha Scheme: झारखंड में करोड़ों रुपये खर्च कर बने डोभा गायब, कई जिलों का है यही हाल, पढ़े पूरी रिपोर्ट

कृषि विभाग ने वर्ष 2016-17 और 2017-18 में करीब 1.5 लाख डोभा का निर्माण कराया था. इस पर करीब 400 करोड़ रुपये खर्च किये गये. बाद में तकनीकी परेशानी के कारण इस स्कीम को कृषि विभाग ने बंद कर दिया था. जिलों में करोड़ों की लागत से बने डोभा में मिट्टी भर गयी है और वह गायब हो गये हैं.

रांची, मनोज लाल : राज्य के जिलों में करोड़ों की लागत से बने डोभा में मिट्टी भर गयी है और वह गायब हो गये हैं. किसानों की जमीन पर भी डोभा खोद दिया गया है, पर उन्हें लाभ नहीं मिल रहा है. इस कारण किसानों की जमीन भी बर्बाद हो गयी और पटवन का साधन भी नहीं मिला. ऐसे में किसान योजना के साथ ही सरकारी सेवकों को कोस रहे हैं. डोभा की योजना फेल होने, सरकारी राशि और ग्रामीणों को बड़ी क्षति होने पर प्रभात खबर ने जिलों में फैक्टशीट की जांच करायी. डोभा की स्थिति पर ग्राउंड रिपोर्ट करायी गयी. संवाददाता ने कार्यस्थल पर जाकर योजनाएं देखीं. इस पर पेश है स्पेशल रिपोर्ट.

कृषि विभाग ने डोभा निर्माण पर 400 करोड़ खर्च कर दिये

कृषि विभाग ने वर्ष 2016-17 और 2017-18 में करीब 1.5 लाख डोभा का निर्माण कराया था. इस पर करीब 400 करोड़ रुपये खर्च किये गये. बाद में तकनीकी परेशानी के कारण इस स्कीम को कृषि विभाग ने बंद कर दिया था. कृषि विभाग का डोभा 10 फीट गहरा था. 15 से लेकर 30 फीट तक इसकी लंबाई-चौड़ाई थी. इस पर कृषि विभाग किसानों को 90 फीसदी अनुदान देता था. कृषि विभाग के स्कीम बंद हो जाने के बाद इस पर ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है. कई स्थानों पर बिना उपयोग के ही डोभा पड़े हुए हैं. इसका उद्देश्य सूखे के समय में फसलों को आपातकालीन सिंचाई की व्यवस्था देना था.

ग्रामीण विकास विभाग ने मनरेगा के तहत वर्ष 2016-17 से वर्ष 2021-22 तक कुल 170583 डोभा का निर्माण कराया था. वहीं 45000 डोभा पर काम चल रहा है, हालांकि कुल 214793 डोभा लिये गये थे. 2016-17 में 107585, वर्ष 2017-18 में 18883, वर्ष 2018-19 में 13069, वर्ष 2019-20 में 12251, वर्ष 2020-21 में 18044 और वर्ष 2021-22 में 751 डोभा बनाये गये.

गढ़वा जिले में डोभा का नहीं हुआ काम

गढ़वा जिले में मात्र 35 प्रतिशत ही डोभा का निर्माण हुआ है. यहां 4899 डोभा स्वीकृत हुए थे. इसमें से 1359 डोभा ही बने हैं. 3540 डोभा का निर्माण कार्य चल रहा है. इसमें से सबसे खराब स्थिति नगरउंटारी प्रखंड की है, जहां 74 स्वीकृत डोभा में से मात्र 11 ही बनाया जा सका है. शेष सभी 63 डोभा निर्माणाधीन हैं. बरडीहा प्रखंड में 176 डोभा में से 79 डोभा पूरा हो गया है, जबकि बड़गड़ प्रखंड में स्वीकृत 51 डोभा में 24, भंडरिया में 40 में से चार, भवनाथपुर में 62 में से 17, विशुनपुरा में 43 में से सात, चिनिया में 191 में 35, डंडा में 146 में से 31, धुरकी में 389 में 43, गढ़वा सदर में 439 में 179, कांडी में 87 में 47, रंका में 994 में 332 और सगमा में 94 में सात डोभा ही पूरा हो पाया है.

एक दर्जन से अधिक पशु मरे

यहां मनरेगा से डोभा बने हैं. लाभुकों ने बताया कि डोभा के कारण उनका खेत बर्बाद हो गया है. इन डोभा में गिर कर करीब एक दर्जन पशुओं की मौत हुई है. कई जंगली जानवर मरे हैं. खेतों में खोदकर छोड़े गये अधूरे डोभा के कारण किसानों को परेशानी हो रही है.

चतरा : डोभा खेत बन गये, पानी का पता नहीं

रघुवर सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2016-17 में डोभा बनना शुरू हुआ था. चतरा जिले की हर पंचायत में 50-60 डोभा बनाये गये. पंचायत स्तर पर मनरेगा व भूमि संरक्षण विभाग से डोभा का निर्माण किया गया. दो साल में जिले में करीब 10 हजार से अधिक डोभा का निर्माण किया गया. जिसमें करोड़ों खर्च हुए. पंचायत स्तर पर प्रति डोभा का निर्माण 70 हजार से ढाई लाख रुपये तक में किया गया, जबकि भूमि संरक्षण विभाग के द्वारा 60-65 हजार में प्रति डोभा बना. डोभा निर्माण का उद्देश्य जल संरक्षण कर जल का संचय करना था. लेकिन जिस उद्देश्य से डोभा का निर्माण किया गया, वह सफल नहीं हुआ. अधिकांश डोभा सूखे पड़े हैं. डोभा खेत बनते जा रहे हैं.

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कुंदा : डोभा में भर रही मिट्टी, एक बूंद पानी नहीं

कुंदा प्रखंड के बैरियाचक में 2016-17 में 25/25 का डोभा का निर्माण 22 हजार की लागत से किया गया था. डोभा का निर्माण जल संचय को लेकर किया गया. लेकिन डोभा बनने का लाभ किसानों को नहीं मिला. दिन-प्रतिदिन डोभा मिट्टी से भरता जा रहा है. डोभा में एक बूंद भी पानी नहीं हैं. बरसात में भी यहां पानी नहीं रहता है.

गिद्धैर : डोभा के स्थल चयन में लापरवाही

गिद्धौर प्रखंड में भूमि संरक्षण विभाग से कई डोभा का निर्माण किया गया. अलग-अलग साइज के डोभा में अलग-अलग राशि खर्च की गयी. 100/100 साइज का डोभा 4.65 लाख की लागत से बनाया गया. डोभा के स्थल चयन में लापरवाही बरती गयी. गिद्धौर के महेंद्र दांगी के खेत में 2016-17 में डोभा निर्माण कराया गया.

निर्माण कार्य को अधूरा रहने के कारण कर दिया गया बंद

हजारीबाग के डाड़ी प्रखंड में पिछले कुछ वर्षों के अंदर 120 से अधिक डोभा का निर्माण किया गया है. इसमें से कई डोभा को निर्माण कार्य अधूरा रहने पर क्लोज कर दिया गया है. 47 डोभा का निर्माण कार्य अब भी चल रहा है. प्रखंड की होन्हेमोढ़ा पंचायत के कुर्रा गांव में गाजा गंझू की जमीन पर नाला के नजदीक वर्ष 2016-17 में 100 गुना 100 का डोभा निर्माण शुरू किया गया था. बरसात के मौसम में नाला में पानी आया और यह डोभा बह गया. इसके बाद इस योजना को क्लोज कर दिया गया. अधिकतर डोभा में पानी बरसात के मौसम के बाद नहीं रहता है. हेसालौंग सहित कुछ पंचायतों में कई डोभा में मिट्टी भर गयी है.

सिल्ली में लाखों खर्च के बाद भी नहीं दिख रहे डोभा

रांची जिले के सिल्ली प्रखंड के विभिन्न गांव में कुल चार हजार से ज्यादा डोभा बनाये गये हैं. इनमें से ज्यादातर डोभा जिला प्रशासन की ओर से बनाये गये हैं. इनमें भूमि संरक्षण विभाग की ओर से भी कुछ डोभा शामिल हैं. एक डोभा पर करीब 35 हजार रुपये खर्च किये गये थे. लेकिन इनमें से ज्यादातर डोभा गायब हो गये हैं. पैसे की निकासी और बंदरबांट की नीयत से इनमें से कई डोभा तो तालाबों के भीतर ही बनाये गये हैं. जो पानी भरने के साथ ही समाप्त हो गये. अधिकतर डोभा से ग्रामीणों को कोई लाभ नहीं हो रहा है. बीडीओ पावन आशीष लकड़ा ने बताया कि डोभा के टूटने या खराब होने पर इसकी मरम्मत के लिए किसी राशि का प्रावधान नहीं है . किसान चाहे, तो मनरेगा से मरम्मत करा सकता है.

तमाड़ की 23 पंचायतों में डोभा से लाभ नहीं मिला

तमाड़ प्रखंड की 23 पंचायतों में लगभग 640 डोभा का निर्माण मनरेगा और भूमि संरक्षण विभाग ने कराया है. डोभा से किसानों को कोई लाभ नहीं हो रहा है. किसान फनी राम महतो ने बताया कि डोभा से केवल जमीन को बर्बाद होने के अलावा कुछ नहीं किया गया. सरकारी राशि का दुरुपयोग हुआ है. दोनों ही प्रकार का डोभा निर्माण बेकार की योजना साबित हुई.

इटकी के खेतों में अधिकांश डोभा का नामोनिशान मिटा

इटकी प्रखंड के खेतों में जल संचय के नाम पर बने अधिकांश डोभा का नामोनिशान मिट गया है. जानकारी के अनुसार, वर्ष 2019 से 2022 तक मनरेगा के तहत प्रखंड में हजारों की संख्या में डोभा बनाये गये. वित्तीय वर्ष 2021-22 में 522 डोभा का निर्माण कराया गया. विभिन्न साइज के बनाये गये डोभा के निर्माण के नाम पर लाखों रुपये खर्च किये गये, लेकिन एक ही बरसात में अधिकांश डोभा क्षतिग्रस्त होकर बेकार हो गये. अधिकांश डोभा में बरसात के पानी का जमाव ही नहीं हो सका. इस संबंध में सियारटोली के कृषक मित्र राजेश्वर महतो का कहना है कि यहां के लिए डोभा का निर्माण उचित नहीं है. अधिकांश डोभा ऊपरी भूमि पर बनाये गये. इस कारण नीचे की भूमि पर पानी सूखने से पूर्व ही डोभा का पानी सूख गया. मोरों के एक अन्य किसान सह प्रखंड के कृषक मित्र नंदलाल महतो का भी मानना है कि डोभा यहां की भूमि के लायक नहीं है.

गुमला में 20 हजार से अधिक डोभा गायब

गुमला जिले में 20 हजार डोभा गायब हो गये हैं. अधिकांश डोभा फिर खेत में तब्दील हो गये हैं, या तो फिर झाड़फूस उग आयी है. यहां एक डोभा 22 हजार से 60 हजार रुपये तक में खोदा गया, लेकिन सभी बेकार हैं. अधिकारी से लेकर मनरेगाकर्मी व बिचौलियों ने मिलकर डोभा के नाम पर लूट की है. यहां गड्ढा को डोभा दिखाकर पैसा निकाल लिया गया. कहीं 10 फीट गहरा गड्ढा खोदना था, तो वहां पांच से छह फीट गड्ढा खोदकर पैसा निकाल लिया गया. आज 90 प्रतिशत डोभा गायब हैं. वर्ष 2021 से पहले मनरेगा से 20 हजार से अधिक डोभा खोदे गये थे. कहीं डोभा है, तो उसका कोई उपयोग नहीं है. कुछ गिने-चुने डोभा को छोड़ दिया जाये, तो अधिकांश डोभा बेकार पड़े हैं. और किसानों के लिए यह उपयोगी नहीं हैं.

पालकोट में डोभा की राशि की बंदरबांट की गयी

पालकोट में मनरेगा के तहत 14 पंचायतों में डोभा खोदे गये थे, लेकिन इसमें सरकारी राशि की बंदरबांट की गयी है. मजदूरों को अबतक मजदूरी तक नहीं मिली. . लाभुक मुनू मुंडा ने बताया कि डोभा निर्माण आज से तीन साल पहले हुआ था. हमलोग अपने डोभा में मजदूरी की, लेकिन पूरा डोभा खोदा नहीं गया. लाभुक रंथु उरांव ने बताया कि उन्हें भी पैसा नहीं मिला. डाड़ी प्रखंड में 120 डोभा में से कई को अधूरे छोड़ दिया गया.

खूंटी के रनिया में डोभा बेकार दर्जनों जानवर डूब कर मरे

रनिया में डोभा में अब तक दर्जनों जानवरों के डूब कर मर जाने की बात सामने आयी है. वर्तमान में डोभा की स्थिति इतनी बदहाल है कि डोभा की चारों ओर बड़ी-बड़ी झाड़ियां उग गयी हैं. किसानों ने मछली पालन भी किया था, लेकिन सारी मछलियां मर गयीं. डोभा निर्माण से लोगों को लाभ के बजाय सिर्फ क्षति पहुंची है. रनिया प्रखंड की सभी सात पंचायतों में लगभग 202 डोभा का निर्माण हुआ था. बीडीओ संदीप कुमार भगत ने बताया कि निर्माण के बाद मरम्मत कार्य भी कराने का आदेश सरकार से मिला था, लेकिन डोभा की मरम्मत नहीं हो पायी.

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