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रांची के आड्रे हाउस में 19 राज्यों के कलाकारों की 140 से अधिक कलाकृतियां लोगों को कर रही आकर्षित

प्रदर्शनी में जिन करीब 70 कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित हुई हैं, उन सभी कलाकारों ने डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान, रांची द्वारा पतरातू में आयोजित सात दिवसीय द्वितीय राष्ट्रीय जनजातीय एवं लोक चित्रकला शिविर में इन्हें उकेरा है.

रांची के आड्रे हाउस की आर्ट गैलरी में इन दिनों नौ दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय एवं लोक चित्रकला प्रदर्शनी लगी हुई है. इस प्रदर्शनी में झारखंड सहित करीब 19 राज्यों के राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त कलाकारों और लोक चित्रकारों की 140 से अधिक कलाकृतियां प्रदर्शित हैं. इस प्रदर्शनी का एक हिस्सा नीलम नीरद की जादोपटिया पेंटिंग्स भी हैं.

जादोपटिया चित्रकला को बढ़ावा दे रही कलाकारों की टीम

नीलम जादोपटिया चित्रकला की वरिष्ठ कलाकार हैं और इस चित्रकला शैली को समृद्धि देने की दिशा में निरंतर कार्य कर रही हैं. जादोपटिया संताल परगना की जनजातीय चित्रकला शैली है और आज देश की अन्य चित्रकला शैलियों की तरह लोकप्रिय है. इसे इस ऊंचाई तक पहुंचाने में नीलम नीरद और उनके कलाकारों की टीम की अहम भूमिका है.

70 कलाकारों की पेंटिंग्स की लगी है प्रदर्शनी

इस प्रदर्शनी में नीलम नीरद की टीम के पारंपरिक कलाकार निताई चित्रकार, दशरथ चित्रकार, जियाराम चित्रकार और जयधन चित्रकार की भी जादोपटिया कलाकृतियां प्रदर्शित हैं. इस प्रदर्शनी में जिन करीब 70 कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित हुई हैं, उन सभी कलाकारों ने डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान, रांची द्वारा पतरातू में आयोजित सात दिवसीय द्वितीय राष्ट्रीय जनजातीय एवं लोक चित्रकला शिविर में इन्हें उकेरा है.

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इस प्रदर्शनी में नीलम नीरद की ‘बाहा’ और ‘खुंछाऊं’ पेंटिंग दर्शकों को आकर्षित कर रही हैं और शैली विशेष के चित्रांकन के साथ-साथ संताल जनजातीय समाज के सांस्कृतिक जीवन मूल्यों से भी परिचित करा रही हैं. ये दोनों कलाकृतियां संताल जनजाति के सांस्कृतिक जीवन और जातीय मिथक पर केंद्रित हैं. ‘बाहा’ और ‘खुंटाऊं’, दोनों संताली भाषा के सांस्कृतिक शब्द हैं. ‘बाहा’ का अर्थ होता है फूल.

संतालों का पर्व है ‘बाहा’

‘बाहा’ संतालों का पर्व भी है, जो फागुन माह में तब मनाया जाता है, जब गांव-जंगल के पेड़ फलों से भर जाते हैं. यह अनुष्ठान, उत्सव और आनंद का पर्व है. जाहेरथान (संतालों के पूजा स्थल) में विशेष पूजा-अनष्ठान के बाद यह पर्व आरंभ होता है. यह संतालों की होली है, जो सादे पानी से खेली जाती है. ‘बाहा’ संतालों की नृत्य शैली भी और गीत भी. ‘बाहा’ पर्व पर इन सभी का सम्मिलन होता है. जादोपटिया पेंटिंग में इस पर्व के इन सभी अवयवों को कागज या कपड़े के टुकड़े से बने लंबवत पट पर श्रृंखलाबद्ध रूप में चित्रित किया जाता है. नीलम नीरद ने इसके मूल अवयव को एकल कैनवास पर उकेरा है.

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क्या है ‘खुंटाऊं’

‘खुंटाऊं’ संतालों के सबसे बड़े पर्व सोहराय से संबद्ध है. पांच दिनों के सोहराय के तीसरे दिन पशुओं (गाय-बैल) की पूजा की जाती है. उस दिन गाय को गांव के मुख्य स्थान पर खूंटा जाता है. उसके चारों ओर वृत्ताकार परिधि खींची जाती है. इस परिधि के भीतर जमीन पर ‘खोड़’ (अल्पना) बनाया जाता है. उसके मध्य में अंडा रखा जाता है. लोग परिधि के बाहर से नगाड़ा बजाकर और शोर करके गाय को हड़काते (छेड़ते) हैं. गाय के खुर से जिसका अंडा टूटता है, वह स्वयं को भाग्यशाली मानता है.

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नीलम नीरद की यह कलाकृति भी दर्शकों को प्रभावित कर रही है. नीलम कहती हैं कि जादोपटिया चित्रकला की रेंज बड़ी है, जिन्हें एकल कैनवस पर उतारना बहुत सुखद अनुभूति देता है. वह बताती हैं कि इस राष्ट्रीय स्तर के चित्रकला शिविर में भाग लेना उनके लिए बहुत उपयोगी रहा. उन्हें देश की अन्य लोक एवं पारंपरिक चित्रकला शैलियों की रैखिक बारीकियों और मिथकीय मूल्यों से जादोपटिया चित्रकला की शैलीगत विशेषताओं और मिथकीय समनताओं को जानने-समझने का बड़ा अवसर मिला.

ख्यातिप्राप्त कलाकारों की कलाकृतियां देख रहे लोग आड्रे हाउस

इसका गुणात्मक प्रभाव उनकी आने वाली जादोपटिया कलाकृतियों में भी दिखेगा. वह कहती हैं कि आड्रे हाउस की आर्ट गैलरी में आयोजित नौ दिवसीय प्रदर्शनी में देश के ख्यातिप्राप्त कलाकरों की कलाकृतियों के बीच अपनी और अपनी टीम की कलाकृतियों के प्रदर्शन से वह बेहद उत्साहित हैं. उनके लिए सबसे सुखद यह है कि लोग इस आर्ट गैलरी में जादोपटिया चित्रकला को देख रहे हैं. इससे इसे और आगे ले जाने में मदद मिलेगी.

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